मुनि श्री सुधासागर जी महाराज अपने प्रवचनों के माध्यम से आध्यात्मिक चेतना से परिचय करवा रहे हैं। वे कटनी के समीप बहोरीबंद अतिशय तीर्थ में विराजित हैं। नित प्रवचनों से जैन समाज को धर्म प्रभावना दे रहे हैं। कटनी से पढ़िए राजीव सिंघई मोनू की यह खबर…
कटनी। पहली बात यह कि हम दुनिया के संबंधों की उपयोगिता नहीं समझते, हम पर को यूज करना चाहते है पर मानकर। पर की वस्तु पर मानकर यूज करेंगे तो वह अपराध है, उसी वस्तु को यदि हम विधि पूर्वक, धर्म पूर्वक, समाज पूर्वक, परिवार पूर्वक, कानून पूर्वक अपना बनाकर के ग्रहण करेंगे तो वह पर तो है लेकिन, अपराध की कोटि में नही आएगा। यह प्रबोधन मुनि श्री सुधासागर जी महाराज ने अपने प्रवचन में दिया। उन्होंने कहा कि पर वस्तु को भोगने, देखने, सुनने, सम्बन्ध बनाने की मनाही नहीं है, पर वस्तु को ग्रहण करने के लिए कानून, विधि, समाज, धर्मशास्त्र है। शास्त्रों में सर्वज्ञ भगवान ने पर वस्तु को ग्रहण करने की मनाही नहीं की क्योंकि, संसार अवस्था में कोई भी वस्तु स्वतंत्र रह ही नहीं सकती, उसको कहीं न कहीं पर का सहारा लेना ही पड़ेगा, अपनी आत्मा को छोड़कर के। अपनी आत्मा के सहारे के बिना चल जाएगा लेकिन, पर के सहारे के बिना नहीं चलेगा।
पर के सहारे के बिना तुम जी नहीं पाओगे
जैन साधु दीक्षा लेते समय ही संकल्प करता है कि तिल तुष् मात्र भी परिग्रह मेरा नहीं है और प्रकृति का ये नियम है पर के सहारे के बिना तुम जी नहीं पाओगे, अब ये दोनों विरोधी बातें है। जिनवाणी माँ कहती है कि तू किसी की तरफ देखेगा भी नहीं, गर्दन भी नहीं हिलाएगा, कुछ भी नहीं करना तुझें। ओहो जिनवाणी की ये कठोर बातें सुनकर के आनंद आता है।
मेरी माँ है, मेरा अहित तो कभी कर ही नहीं सकती।
जन्म -जन्म तक ऐसी माँ मिलती रहें, ये नदी किनारे मेरे अहित के लिए नहीं भेज रही है, इसी में मेरा हित है क्योंकि वो मेरी माँ है, मेरा अहित तो कभी कर ही नहीं सकती। मुझे दुःख देने का तो सवाल ही नहीं। माँ को सुलाने के साथ जगाना भी पड़ता है, चादर खिंचती है, डाँट देती है, यहाँ तक कि नहीं उठता तो थप्पड़ मार देती है। सही बेटे होओगें तो गुस्सा नहीं करोगे, अंदर से आवाज आएगी कि माँ जगा रही है तो नियम से मेरा जागने में ही हित है, नहीं तो माँ क्यों जगाएगी।
ज्ञानी बालक को जगाने वाली माँ अच्छी लगती है
कभी- कभी माँ को मन मारकर वो कार्य करना पड़ता है जो बेटे को दुखदाई है। ऐसी ही है हमारी जिनवाणी माँ, मुमुक्षु स्वीकार कर लेता है कि माँ ने कहा है तो नियम से ये कष्ट उठाये बिना मेरा कल्याण नहीं हो सकता। अज्ञानी बालक को सुलाने वाली माँ अच्छी लगती है और ज्ञानी बालक को जगाने वाली माँ अच्छी लगती है। जगाने वाली माँ तुम्हें अच्छी लगने लग जाए तो तुम्हें मातृत्व छाया मिलना चालू हो गया, माँ का आशीर्वाद तुम्हे फलना शुरू हो गया। सुलाने वाली माँ तुम्हें अच्छी लग रही है तो समझना न तुम्हे माँ मिली है, न तुम बेटा हो, तुमने जन्म जरूर लिया है पशुओं के समान। यदि मनुष्य की माँ मिली है तो उस समय अच्छी लगना चाहिए जिस समय वह जगा रही है।
उनकी वसीयत नहीं फलेगी
यदि तुम्हे पिता इसलिए अच्छे लग रहे कि तुम्हे जो चाहिए, जब चाहिए, वह देते है। नहीं, अभी तुम्हें पिता का आशीर्वाद, उनकी वसीयत नहीं फलेगी। तुम इस वंश में वो चीज नहीं पा पाओगे, जो तुम्हारे पूर्वजों के पास था क्योंकि तुम्हें पिता इसलिए अच्छे लग रहे हैं कि वह तुम्हारी हर इच्छा पूरी कर रहे हैं। उस दिन पूछ रहा हूँ जिस दिन पिता तुम्हारी कोई इच्छा पूरी न करें तब वह कैसे लग रहे है? यदि बुरी लग रहे हैं तो अब तुम्हें पिता का आशीर्वाद, उनकी वसीयत नहीं फलेगी।
पहले गुरु की शरण में चले जाओ
अपराध करने के बाद तुम गुरु की शरण में जाओगे तो ये महा अपराध है क्योंकि तुम्हारे कारण से तुम्हारा गुरु, भगवान भी अपराधी की कोटि में आ सकता है, इसलिए कार्य करने के पहले गुरु की शरण में चले जाओ, जिससे तुम्हारी और गुरु महाराज दोनों की इज्जत बचे इसलिए अपराध करने के पहले हमें मंदिर जाना है। क्यों भेजा गया हमें सुबह मंदिर, मूल कारण है कि हमें दिन में अपराध करना है, न जाने क्या कार्य करना पड़े इसलिए भगवान मैं सुबह तेरे दर्शन करने आया हूँ कि मेरे से कोई गलत कार्य न हो जाए।
पहली धोक मैं मंदिर में दूँगा क्योंकि…
जैन भगवान पूर्णत: निरपराधी है, पापों से मुक्त है, अचौर्य व्रत है, इसलिए जैन दर्शन के भगवानों को संकट मोचक नहीं, मंगलकारी कहा। मंगल कार्य के पहले किया जाता है, इसलिए सुबह उठकर पहले मन्दिर, कोई कार्य शुरू करने के पहले पहली पाती, पहला नारियल मंदिर में जाएगा, पहली धोक मैं मंदिर में दूँगा क्योंकि, मैं घर से बाहर जा रहा हूँ। यदि तुम्हें ऐसा डाउट दिख रहा है कि यह कार्य करें या न करें तो करने के पहले बड़ों से, गुरु से पूछे, अनुमति मिलेगी तो ठीक, नहीं मिलेगी तो नहीं करूँगा, अब आपको गुरु की सिद्धि हो जाएगी।
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