दोहे भारतीय साहित्य की एक महत्वपूर्ण विधा हैं, जो संक्षिप्त और सटीक रूप में गहरी बातें कहने के लिए प्रसिद्ध हैं। दोहे में केवल दो पंक्तियां होती हैं, लेकिन इन पंक्तियों में निहित अर्थ और संदेश अत्यंत गहरे होते हैं। एक दोहा छोटा सा होता है, लेकिन उसमें जीवन की बड़ी-बड़ी बातें समाहित होती हैं। यह संक्षिप्तता के साथ गहरे विचारों को व्यक्त करने का एक अद्भुत तरीका है। दोहों का रहस्य कॉलम की 57वीं कड़ी में पढ़ें मंजू अजमेरा का लेख…
“मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।
कहीं कभी हरि पाइए, मन ही की प्रतीति।।”
कबीर दास जी का यह प्रसिद्ध दोहा जीवन के गहरे सत्य को उजागर करता है। यह केवल एक आध्यात्मिक विचार नहीं है, बल्कि यह मनोविज्ञान, समाज, धर्म और व्यावहारिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह दोहा हमें यह सिखाता है कि मनुष्य की हार या जीत बाहरी परिस्थितियों पर निर्भर नहीं करती, बल्कि यह उसकी मानसिक स्थिति पर निर्भर करती है।
यदि कोई व्यक्ति अपने भीतर आत्मविश्वास, श्रद्धा और सकारात्मक सोच बनाए रखता है, तो वह किसी भी कठिनाई पर विजय प्राप्त कर सकता है। यदि कोई व्यक्ति अपने मन से हार मान लेता है, तो वह कभी सफल नहीं हो सकता, चाहे परिस्थितियाँ अनुकूल हों। लेकिन यदि वह अपने मन को मजबूत रखता है, तो वह कठिनाइयों के बावजूद भी जीत हासिल कर सकता है।
जीवन में कई बार हमें चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। जो लोग मानसिक रूप से दृढ़ रहते हैं, वे कठिन परिस्थितियों से भी बाहर आ जाते हैं। उदाहरण स्वरूप, यदि कोई छात्र परीक्षा की तैयारी करते हुए यह सोचता है कि वह असफल हो जाएगा, तो उसकी हार निश्चित है। लेकिन यदि वह आत्मविश्वास के साथ प्रयास करता है, तो सफलता संभव है। इसी प्रकार, यदि कोई व्यक्ति व्यावसायिक क्षेत्र में अपने प्रयासों के प्रति आशावान रहता है, तो उसे सफलता मिल सकती है।
इतिहास में कई ऐसे उदाहरण हैं जिन्होंने इस सिद्धांत को प्रमाणित किया है। भक्त प्रह्लाद ने कठिन परिस्थितियों में भी भगवान पर विश्वास बनाए रखा, जिससे अंततः उनकी विजय हुई। इसी तरह, अर्जुन जब युद्ध में मोहग्रस्त हो गए थे, तब श्री कृष्ण ने उन्हें गीता का उपदेश दिया और उनके मन को मजबूत किया, जिससे वह विजयी हो सके।
समाज में व्यक्ति की स्थिति भी उसके मानसिक दृष्टिकोण पर निर्भर करती है। यदि कोई व्यक्ति अपने मन से हार मान लेता है, तो वह समाज में पिछड़ जाता है, लेकिन यदि वह दृढ़ निश्चय रखता है, तो वह समाज में उन्नति कर सकता है।
जीवन में आने वाली कठिनाइयों का सामना हमें मन से हार मानकर नहीं, बल्कि आत्मबल के साथ करना चाहिए। मन की शक्ति से ही व्यक्ति नई ऊँचाइयों तक पहुँच सकता है। आत्म-साक्षात्कार और मुक्ति के लिए मन का संयम और विश्वास आवश्यक है।
यदि हम इस दोहे के संदेश को समझकर अपने जीवन में उतारें, तो हम हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकते हैं और अपने मन को सशक्त बनाकर जीवन को सार्थक बना सकते हैं।
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