मुनि श्री सुधासागर जी महाराज इन दिनों कटनी के बहोरीबंद अतिशय तीर्थ में अपनी देशना से धर्म प्रभावना बढ़ाकर जैन समाज और अनुयायियों को धर्म, कर्म, दान और सहयोग के प्रति प्रेरित कर रहे हैं। उनकी धर्मसभा में बड़ी संख्या में धर्मावलबियों की उपस्थिति नजर आ रही है। कटनी से पढ़िए राजीव सिंघई की यह खबर…
कटनी। सामान्य से हम दुनिया को देखते हैं तो न हमें गिरने का विचार आता है, न उठने का विचार आता है, न जागने का भाव आता है न सोने का भाव आता है, न रुकने का भाव आता है, न चलने का भाव आता है। बनने की कोई खुशी नहीं है और मिटने का कोई गम नहीं है लेकिन, उपलब्धि भी कुछ नहीं है। यह बात मुनि श्री सुधासागर जी महाराज ने कटनी के बहोरीबंद में धर्मसभा में श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कही।
उन्होंने कहा कि जब सामान्य दृष्टि हमारी बनती है तो व्यक्ति शून्य या निर्विकल्प हो जाता है लेकिन, यह निर्विकल्पता अकर्मण्यता कहलाती है। सब कुछ करने के बाद निर्विकल्प होना साधना कहलाती है। कुछ नहीं कर पाना और निर्विकल्प होना यह अकर्मण्यता कहलाती है। हाथ पर हाथ रखकर दो ही व्यक्ति बैठते हैं या तो जो कुछ कर नहीं पा रहा है या फिर जिसने सब कुछ कर लिया है। संसारी नहीं खाए तो कहते है कि खाने को नहीं है और परमार्थी जिंदगी भर नहीं खाए तो कहते है तपस्वी, उपवासी है। एक को मिला नहीं है और एक ने खाया नहीं है। साधु गरीब से भी गरीब हालात में जीता है तो भी वह तीन लोक में पूज्य परमेष्ठी और आदर्श होता है।
ईमानदार व्यक्ति को परखना चाहिए
90 प्रतिशत जितने बच्चे सुसाइड करते हैं, माँ-बाप, परिवार के कारण करते हैं क्योंकि, वो कहते है कि हम असफल होकर वापस घर कैसे जाएंगे, सब ने बड़ी उम्मीद करके भेजा है और हम पास नहीं होंगे तो वह सुसाइड कर लेता है। इसलिए माता-पिताओं से कहना है कि बच्चों से इतनी ज्यादा अपेक्षाएं मत करो कि बच्चें को सुसाइड का भाव आ जाए, उसकी योग्यता समझो कितना वो कर सकता है।
धंधे पानी में यदि घाटा लग जाए तो तुम प्राण लेते हो, अरे नहीं कर पा रहा है तो क्या करें, हां, बेईमान होना अलग चीज है, ईमानदार व्यक्ति को परखना चाहिए। ईमानदार, असमर्थ, भाग्यहीन, अज्ञानी व्यक्ति को टॉर्चर नहीं। जो समर्थ होकर नहीं कर रहा है, उसे टॉर्चर करो। असमर्थ व्यक्ति को यदि टोकोगे तो तुम्हे हत्या का दोष लगेगा क्योंकि तुम पोलियो वाले से बार-बार कह रहे हो कि दिनभर घर पर पड़े रहते हो।
सभी तीर्थंकर 46 मूलगुण मंडित होते हैं
क्यों है एनर्जी पारसनाथ में, क्यों है वो संकटमोचक, उनके नाम, उनकी मूर्ति में वो एनर्जी है जो बाकी 23 तीर्थंकरों में नहीं है। सभी तीर्थंकर 46 मूलगुण मंडित होते हैं लेकिन, भक्तों ने पारसनाथ को क्यों महिमा मंडित किया, मात्र उन्होंने जिंदगी में एक विशेष काम किया था, जिस पर दुनिया कभी दया नहीं करती, जिसको देखकर दुनिया मारती है। उसे देखकर उन्होंने बचाने का भाव किया था। तीर्थंकर थे, राजकुमार थे, मनोरंजन के लिए जा रहे थे लेकिन, एक नाग-नागिन को जलते देखकर बचाने के लिए उतर गए, न बचा पाए लेकिन, बचाने का भाव तो किया, इसलिए जो व्यक्ति दुःखी है, परेशान है वे व्यक्ति पारसनाथ का नाम लेते है। इस प्रसंग से शिक्षा लो कि साथ उसका दो, जिसका कोई साथ नहीं देता। दया उस पर करो, जिस पर कोई दया नहीं करता, सहयोग उसका करो जिसका कोई सहयोग नहीं करता, किस्मत भी जिसका साथ नहीं दे रही हो उसका साथ दो, रोटी उसे खिलाओ, जिसके पास रोटी नहीं है।
त्याग कर देने का नाम है साधु, साधना, त्यागी
दो व्यक्तियों को दान देना-एक वह जिन्होंने रोटी छोड़ दी है, एक वह जिनकी किस्मत में रोटी है नहीं। या तो अपना जीवन उनको समर्पित कर दो, जो तुमसे आगे है, पुण्यवान है, पवित्र है, जो पापों से मुक्त हो गए, वो खेती, व्यापार नहीं करना चाहते क्योंकि, उनको पाप नजर आ रहा है। सारे पाप कर सकता है व्यक्ति फिर भी त्याग कर देने का नाम है साधु, साधना, त्यागी। असमर्थ या पलायनवादी का नाम नहीं है, पाप नहीं कर पाया तो पाप छोड़ दिए। किनको छाया देना है जो जगत को छाया देने वाला है। जगत को छाया देने वाले को जो छाया देता है वो छत्ता नहीं, छत्र कहलाता है। जो स्वयं छाया से रहित हो गए, ऐसे व्यक्ति को छाया दे देना, जाओ सारी दुनिया तुम्हें मिटाने आएगी और तुम्हारा बाल भी बांका नहीं होगा।
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