जैन धर्म क आठवें तीर्थंकर भगवान चंद्रप्रभु जी का मोक्ष कल्याणक इस बार 6 मार्च गुरुवार को आ रहा है। भगवान चंद्रप्रभु ने फाल्गुन कृष्ण सप्तमी के दिन मोक्ष प्राप्त किया था। भगवान के मोक्ष कल्याणक पर दिगंबर जैन समाज के विभिन्न मंदिरों, चैत्यालयों में पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ मोक्ष कल्याणक पर विधान होंगे। श्रीफल जैन न्यूज की विशेष प्रस्तुति में उपसंपादक प्रीतम लखवाल की ओर से यह संकलित जानकारी पढ़िए…
इंदौर। जैनधर्म के आठवें तीर्थंकर भगवान चंद्रप्रभु तीन माह का छद्मस्थ काल व्यतीत कर भगवान दीक्षावन में नागवृक्ष के नीचे फाल्गुन कृष्ण सप्तमी के दिन केवल ज्ञान को प्राप्त हुए थे। ये चंद्रप्रभु भगवान समस्त आर्य देशों में विहार कर धर्म की प्रवृत्ति करते हुए सम्मेदशिखर पर पहुंचे। एक माह तक प्रतिमा योग से स्थित होकर फाल्गुन कृष्ण सप्तमी के दिन ज्येष्ठा नक्षत्र में सायंकाल के समय शुक्लध्यान द्वारा सर्वकर्म को नष्ट कर सिद्धपद को प्राप्त हुए थे। इनके गर्भ और जन्म कल्याणक के बारे में पुराणों में वर्णित है कि अनंतर जब इनकी छह माह की आयु बाकी रह गई, तब जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में चंद्रपुर नगर के महासेन राजा की लक्ष्मणा महादेवी के यहां रत्नों की वर्षा होने लगी। चैत्र कृष्ण पंचमी के दिन गर्भ कल्याणक महोत्सव हुआ एवं पौष कृष्ण एकादशी के दिन भगवान चंद्रप्रभ का जन्म हुआ।
भगवान चंद्रप्रभु का तप कल्याणक
किसी समय दर्पण में अपना मुख देख रहे थे कि भोगों से विरक्त होकर देवों द्वारा लाई गई ‘विमला’ नाम की पालकी पर बैठकर सर्वर्तुक वन में गए। वहां पौष कृष्ण एकादशी के दिन हजार राजाओं के साथ दीक्षा ले ली। पारणा के दिन नलिन नामक नगर में सोमदत्त के यहां आहार हुआ था।
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