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दोहों का रहस्य -52 दया अहंकार का विषय नहीं है, बल्कि यह प्रेम का स्वाभाविक रूप है : सच्चा धर्म वही है, जिसमें किसी के प्रति भी निर्दयता न हो


दोहे भारतीय साहित्य की एक महत्वपूर्ण विधा हैं, जो संक्षिप्त और सटीक रूप में गहरी बातें कहने के लिए प्रसिद्ध हैं। दोहे में केवल दो पंक्तियां होती हैं, लेकिन इन पंक्तियों में निहित अर्थ और संदेश अत्यंत गहरे होते हैं। एक दोहा छोटा सा होता है, लेकिन उसमें जीवन की बड़ी-बड़ी बातें समाहित होती हैं। यह संक्षिप्तता के साथ गहरे विचारों को व्यक्त करने का एक अद्भुत तरीका है। दोहों का रहस्य कॉलम की 52वीं कड़ी में पढ़ें मंजू अजमेरा का लेख…


“दया कौन पर कीजिए, का पर निर्दय होय।

साईं के सब जीव हैं, किरी कंजर दोय॥”


इस दोहे का गहरा अर्थ यह है कि जब सभी प्राणी ईश्वर के बनाए हुए हैं, तो किसी एक पर दया दिखाना और किसी अन्य के प्रति निर्दयी होना, यह दर्शाता है कि हमारी दया सच्ची नहीं, बल्कि अहंकार से ग्रस्त है। कबीर इस पाखंडपूर्ण दयाभाव को उजागर कर रहे हैं और हमें यह सिखा रहे हैं कि सच्चा प्रेम और करुणा हर जीव के प्रति समान रूप से होना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति सच्ची भक्ति और ईश्वर से सच्चा संबंध रखना चाहता है, तो उसे सभी जीवों के प्रति समान प्रेम और करुणा रखना आवश्यक है।

यदि हम किसी व्यक्ति को दया का पात्र मानते हैं, तो इसका अर्थ यह हुआ कि हम उसे अपने से निम्न समझ रहे हैं। जब तक हमारे मन में यह भेदभाव बना रहेगा, तब तक हमारा प्रेम और दया सच्चे नहीं हो सकते। दया अहंकार का विषय नहीं है, बल्कि यह प्रेम का स्वाभाविक रूप है।

“साईं के सब जीव हैं”

इस पंक्ति का गहरा अर्थ यह है कि संसार का हर प्राणी—चाहे वह मनुष्य हो, पशु-पक्षी हो, या कीट-पतंगे—सभी ईश्वर के बनाए हुए हैं। जब सभी एक ही स्रोत से आए हैं, तो फिर किसी को तुच्छ और किसी को महान मानने की मानसिकता क्यों? सभी प्राणी एक समान हैं, क्योंकि वे सभी उसी परमात्मा की सृष्टि का हिस्सा हैं।

“का पर निर्दय होय”

इसका अर्थ यह है कि यदि आप किसी पर दया कर रहे हैं, लेकिन किसी अन्य के प्रति निर्दयी हैं, तो आपकी दया पाखंड मात्र है। सच्चा धर्म वही है, जिसमें किसी के प्रति भी निर्दयता न हो और सभी के प्रति समान प्रेमभाव हो। यह हमें सिखाता है कि सभी प्राणियों—छोटे से छोटे जीव (कीट-पतंगे) से लेकर बड़े से बड़े प्राणी तक—समान हैं, क्योंकि वे सभी उसी परमात्मा की सृष्टि का हिस्सा हैं।

अगर समाज में यह सोच विकसित हो जाए कि सभी के प्रति समान भाव रखना चाहिए, तो अनेक प्रकार के भेदभाव और अन्याय समाप्त हो सकते हैं। कबीर दास जी इस दोहे में हमें यह गहरी सीख दे रहे हैं कि दया कोई दिखावे की चीज़ नहीं है, न ही यह किसी पर कृपा करने का अहंकार है। सच्ची दया वह है, जो बिना भेदभाव के, बिना अहंकार के, सभी जीवों के प्रति समान रूप से व्यक्त की जाए।

आज के समय में यह दोहा और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है, जब समाज में भेदभाव, अहंकार और पक्षपात बढ़ रहा है। पर्यावरण संरक्षण और पशु अधिकारों के संदर्भ में भी यह दोहा हमें सभी जीवों के प्रति करुणा रखने की प्रेरणा देता है। समाज में समानता और न्याय के सिद्धांत को स्थापित करने के लिए यह दोहा अत्यंत महत्वपूर्ण है। आध्यात्मिक और धार्मिक दृष्टि से यह हमें अहंकार मुक्त प्रेम और सेवा का मार्ग दिखाता है।

अंततः, कबीर हमें यह सिखाते हैं कि दयालु बनो, परंतु यह मत सोचो कि तुम किसी पर दया कर रहे हो। जब सच्चा प्रेम और करुणा मन में होंगे, तो दया अपने आप प्रकट होगी—बिना किसी भेदभाव और बिना किसी अहंकार के। सभी जीवों के प्रति करुणा का भाव रखना ही हम सबका परम कर्तव्य है।

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