निकम्मे बैठने से भी समय बर्बाद होता है और व्यर्थ की गप-शप करने से भी समय खराब होता है। इस तरह से समय बर्बाद करने वाला आदमी जिन्दगी की दौड़ में पीछे रह जाता है। आप भाग्य भरोसे बैठे रहकर अपनी योग्यता को न गवाएँ। मुनि श्री प्रणम्य सागर जी महाराज की पुस्तक खोजो मत पाओ व अन्य ग्रंथों के माध्यम से श्रीफल जैन न्यूज का कॉलम Life Management निरंतरता लिए हुए है। पढ़िए इसके 18वें भाग में श्रीफल जैन न्यूज के रिपोर्टर संजय एम तराणेकर की विशेष रिपोर्ट….
निकम्मे न बैठें
किसी भी समय बिना काम के न बैठें। किसी न किसी कार्य में व्यस्त रहने वाला आदमी कभी-भी चिन्तित नहीं हो सकता है। चिन्ता उन्हें सताती है जिनके पास कोई काम नहीं है। इसलिए कहा गया है-‘खाली दिमाग शैतान का घर‘ (‘An empty mind is devil’s workshop’) यदि आपको अपने काम की व्यस्तता न हो तो सहज न बैठें। मन्त्र जाप करें, परमात्मा का स्मरण करें, मुद्रा बनाकर बैठें, अपने मन को शान्त करने के लिए हृदय में भगवान का ध्यान करें। वस्तुतः कार्य करने वाला व्यक्ति भाग्य में विश्वास नहीं करता है और आलसी व सनकी व्यक्ति किसी चमत्कार की आशा में रहता है।
कुछ न कुछ करते रहें
यदि कोई भी व्यक्ति कुछ न कर रहा हो। तब समाज में उसे उलाहना मिलती है कि ‘ना काम का ना काज का दुश्मन अनाज का‘ इसका अर्थ यह हुआ कि व्यक्ति सिर्फ दूसरों पर बोझ बना हुआ है। ना वो घर में कुछ सहयोग करता हैं और न कहीं किसी प्रकार के कामकाज में अपना योगदान समाज में नहीं दे रहा है। वह अब निकम्मे या निकम्मों की श्रेणी में आ गया है। इस संदर्भ में मेरा मानना यह हैं कि व्यक्ति कोई भी हो उसे कुछ न कुछ कामकाज करते रहना चाहिए। जिससे उसकी बुद्धि का भी विकास होता रहें और इस तरह की उलाहना भी न सुननी पड़े। यदि वह बाहर किसी काम को करने में स्वयं को असहाय पाता है। तब उसे घर परिवार के कार्यों में हाथ अवश्य ही बॅटाना चाहिए। परंतु उसे अपनी जीवनचर्या को सरलतापूर्वक चलाने के लिए कोई व्यवसाय या नौकरी में अवश्य ही अपना योगदान देना चाहिए। जिससे उसका जीवन सुखरूप चलता रहें। यह भी हो सकता हैं कि उसे अपने मन का काम न मिल रहा हो। लेकिन कुछ न कुछ करते अवश्य ही रहना चाहिए।
Add Comment