प्रतिस्पर्धा के इस युग में लौकिक या आध्यात्मिक कोई भी ऐसा मार्ग नहीं जहाँ आपसे असंतुष्ट लोगों का समूह न हो। आप उसकी चिंता न करते हुए आगे बढ़ने का संकल्प प्रतिदिन करते जाएँ। किसी को प्रत्युत्तर देने में अपना समय और शक्ति बर्बाद न करें। आप देखेंगे कि धीमे-धीमे आपमें और पीछे वालों में इतना अन्तर पड़ जायेगा कि लोग स्वयं आपका पीछा करना छोड़ देंगे और महसूस करेंगे कि आपमें योग्यता थी इसलिए इतना आगे बढ़ पाये। इस कार्य में समय लगेगा, मानसिक श्रम भी होगा, पर आप सहज रहें तो यह कार्य अपने आप होता चला जाएगा। मुनि श्री प्रणम्य सागर जी महाराज की पुस्तक खोजो मत पाओ व अन्य ग्रंथों के माध्यम से श्रीफल जैन न्यूज का कॉलम Life Management निरंतरता लिए हुए है। पढ़िए इसके 14वें भाग में श्रीफल जैन न्यूज के रिपोर्टर संजय एम तराणेकर की विशेष रिपोर्ट….
किसी से मत लड़ो, आगे बढ़ो
डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम का अनुभव
भूतपूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने अपने अनुभव में लिखा कि-‘मुझे पद्मभूषण सम्मान से सम्मानित होना था। कुछ लोग थे, जिन्होंने मेरी खुशी में हिस्सा बाँटा। कुछ लोग थे, जिन्हें लगा कि इस सम्मान के लिए मैं अनुचित रूप से चुना गया हूँ। कुछ बहुत ही करीब के साथी ईर्ष्यालु हो गए। कुछ लोग जीवन के मूल्यों को क्यों नहीं देख पाते है? जीवन में खुशी, संतुष्टि और सफलता हमारे सही चुनाव पर निर्भर करती है। जीवन में कुछ ऐसी शक्तियाँ हैं जो आपके लिए व आपके खिलाफ काम कर रही हैं। हरेक को हर कदम पर इसमें भेद कर सही चुनाव करना होता है।‘
आन्तरिक शक्ति ही सफलता का द्योतक
आप अंदाज लगा सकते हैं कि प्रक्षेपण यानों को बनाने वाले उच्चस्तरीय वैज्ञानिकों में जब ईर्ष्या जन्म ले सकती है तो अन्य जॉब (Job) और ट्रेड्स (Trades) के बारे में क्या कहा जाये? नेता, अभिनेता, सुपर स्टार, खिलाड़ी सब इस वातावरण के शिकार रहते हैं, पर आगे बढ़ते रहते हैं। वस्तुतः आन्तरिक शक्ति ही किसी को सफल बनाने का मुख्य कारण होती है।
धैर्य रखें, खुशी महसूस होगी
आप याद रखें जब आप किसी भी रास्ते पर आगे बढ़ना शुरू करेंगे, आपको प्लेटफार्म की तरह भीड़ दिखाई देगी, टिकिट विन्डो तक पहुँचने के लिए लम्बी कतार को पार करने का धैर्य रखना होगा। धक्का-मुक्की खाकर भी जब आप ट्रेन के डिब्बे में बैठ जाएँगे, भीड़ पीछे छूट जाएगी। अब आप पहले से काफी सुरक्षित और खुशी महसूस करेंगे।
यदि आप असफलता के दौर से गुजरे किसी सफल व्यक्ति को जानना चाहते हैं तो अब्राहिम लिंकन को याद रखें जो 51 वर्ष की उम्र में संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति बने। उसके पहले –
22 वर्ष की उम्र में – व्यापार में असफलता।
23 वर्ष की उम्र में – कानून बनाने वाली संस्था के लिए हार जाना।
24 वर्ष की उम्र में – व्यापार में फिर असफलता।
25 वर्ष की उम्र में – कानून बनाने वाली संस्था में चुना जाना।
26 वर्ष की उम्र में – प्रेमिका की मौत।
27 वर्ष की उम्र में – मानसिक रूप से परेशान।
29 वर्ष की उम्र में – स्पीकर पद के लिए हार जाना।
31 वर्ष की उम्र में – चुनाव में पद के लिए हार जाना।
34 वर्ष की उम्र में – चुनाव में पद के लिए हार जाना।
37 वर्ष की उम्र में – कांग्रेस में जीत ।
38 वर्ष की उम्र में – कांग्रेस में हार।
46 वर्ष की उम्र में – सीनेट में हार।
47 वर्ष की उम्र में – उपराष्ट्रपति पद में हार।
49 वर्ष की उम्र में – सीनेट में हार।
51 वर्ष की उम्र में – संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में चुना जाना।
जब वह राष्ट्रपति बन गए तब भी लोगों ने उनकी बुराई की। परन्तु उनकी बातें सुनकर तनावग्रस्त होने की बजाए उन्होंने एक अमर रहने वाली बात कही-‘कोई भी आदमी चाहे वह राष्ट्रपति क्यों न हो, अच्छा नहीं है, परन्तु किसी न किसी को तो राष्ट्रपति बनना ही है‘। वह यह विश्वास रखते थे कि-‘एक आदमी जो कि आत्मसम्मान रखता है, उसके लिए असफलता एक मौका है‘। दुनिया की हर बड़ी खोज इन असफलता के पर्वतों को पार करके पूरी हुई है। विश्व के महानतम वैज्ञानिकों को उपलब्धियाँ थाली में रखे भोजन की तरह प्राप्त नहीं हो गई थी।
महान् वैज्ञानिक एडीशन (Edison) ने कहा है
i will not say that i failed 1000 times] i will say that discovered 1000 ways that can cause failure अर्थात में यह नहीं कहूँगा कि मैं 1000 बार असफल हुआ हूँ, मैं यह कहूँगा कि मैंने असफलता के 1000 रास्ते जान लिये हैं।
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