दोहे भारतीय साहित्य की एक महत्वपूर्ण विधा हैं, जो संक्षिप्त और सटीक रूप में गहरी बातें कहने के लिए प्रसिद्ध हैं। दोहे में केवल दो पंक्तियां होती हैं, लेकिन इन पंक्तियों में निहित अर्थ और संदेश अत्यंत गहरे होते हैं। एक दोहा छोटा सा होता है, लेकिन उसमें जीवन की बड़ी-बड़ी बातें समाहित होती हैं। यह संक्षिप्तता के साथ गहरे विचारों को व्यक्त करने का एक अद्भुत तरीका है। दोहों का रहस्य कॉलम की इकतालीसवीं कड़ी में पढ़ें मंजू अजमेरा का लेख…
अंतर्यामी एक तुम आत्मा के आधार,
जो तुम छोड़ो हाथ तो कौन उतारे पार।
कबीर दास जी यहाँ यह कह रहे हैं कि परमात्मा (अंतर्यामी) ही आत्मा का वास्तविक आधार है। आत्मा स्वयं में स्वतंत्र नहीं है, बल्कि वह परमात्मा की शक्ति से ही संचालित होती है। यदि मनुष्य इस आत्मा-परमात्मा के संबंध को नहीं समझता और सांसारिक आकर्षणों में खो जाता है, तो उसका उद्धार कौन करेगा?
इसका गूढ़ संकेत यह है कि मनुष्य को अपने भीतर ईश्वर को पहचानना होगा। जब तक वह बाहरी जगत के मोह में फंसा रहेगा, तब तक उसे अपने वास्तविक स्वरूप (आत्मा) का बोध नहीं होगा। अगर कोई व्यक्ति ईश्वर के मार्ग से भटक जाता है, तो उसे मार्ग दिखाने वाला कोई नहीं होता, क्योंकि सांसारिक चीजें नश्वर हैं। धर्म हमें सिखाता है कि ईश्वर ही हमारा अंतिम सहारा है। दुनिया में चाहे कितने भी रिश्ते-नाते हों, लेकिन जब जीवन का कठिन समय आता है, तो केवल ईश्वर ही रक्षा करता है।
मनुष्य को अपने सच्चे आधार (सत्य, ईमानदारी, और नैतिकता) को पहचानना चाहिए। समाज में हम अनेक रिश्तों, संबंधों और मित्रताओं पर निर्भर रहते हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि कोई भी स्थायी रूप से किसी का साथ नहीं निभा सकता।
यदि मनुष्य अपने नैतिक मूल्यों और सच्चाई का साथ छोड़ देता है, तो उसे संभालने वाला कोई नहीं होगा। यह दोहा हमें चेतावनी देता है कि हमें अपने सही मार्गदर्शन को नहीं छोड़ना चाहिए, क्योंकि समाज की निष्ठा बदल सकती है, लेकिन ईश्वर का सहारा अटल है।
मनुष्य को आत्मनिर्भर बनना चाहिए और अपने सच्चे मूल्यों को बनाए रखना चाहिए। लोग केवल तब तक साथ देते हैं जब तक कोई लाभ होता है, लेकिन जब व्यक्ति संकट में पड़ता है, तो अक्सर लोग दूर हो जाते हैं।
यदि हम अपने आत्मबल, सत्कर्म और आध्यात्मिक साधना को छोड़ देंगे, तो कोई भी हमें डूबने से नहीं बचा सकता। जीवन में सच्चा आधार हमारा आत्मिक बल और परमात्मा से जुड़ाव ही है। कबीरदास जी इस दोहे के माध्यम से हमें यह सिखाना चाहते हैं कि संसार में केवल ईश्वर ही हमारा सच्चा आधार है। यदि हम ईश्वर, सत्य, और नैतिकता से अपना संबंध तोड़ देंगे, तो हमें संभालने वाला कोई नहीं होगा। यह दोहा हमें आत्म-चेतना, आध्यात्मिकता, और आत्मनिर्भरता का महत्वपूर्ण संदेश देता है।
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