सूत्र वाक्य छोटे होते हैं लेकिन उनका निर्माण बडे़ अनुभवों के आधार पर होता है। महापुरुषों ने जो कुछ भी कहा, सूत्रात्मक ही कहा। सूत्र वाक्य ही सूक्तियां कहलाती हैं। चिन्तन से सूत्रों का अर्थ खुलता है। धर्म के अन्तिम संचालक, तीर्थ के प्रवर्तक, चौबीसवें तीर्थंकर भगवान् महावीर स्वामी हुए हैं। यद्यपि वह मुख्यतया आत्मज्ञ थे, अपने निजानन्द में लीन रहते थे, फिर भी वह सर्वज्ञ थे। मुनि श्री प्रणम्य सागर जी महाराज की पुस्तक खोजो मत पाओ व अन्य ग्रंथों के माध्यम से श्रीफल जैन न्यूज लाइफ मैनेजमेंट नाम से नया कॉलम शुरू कर रहा है। इसके आठवें भाग में पढ़ें श्रीफल जैन न्यूज के रिपोर्टर संजय एम तराणेकर की विशेष रिपोर्ट….
आठवां सूत्र
लक्ष्य अपना पूरा सपना
चाह और क्षमता ही इच्छा और प्रेरणा बनाती है
लक्ष्य क्या है? कुछ लोगों के पास इस प्रश्न का उत्तर तुरंत होता है। वे उत्तर दे सकते हैं कि उन्होंने कॉलेज की डिग्री पूरी की, एक बच्चे की परवरिश की, या एक घर खरीदा आदि। कुछ अलग उत्तर भी शामिल हो सकते हैं, जैसे स्थानीय मैराथन खत्म करना, संगीत में यदि किसी की रुचि हो तो कोई भी वाद्ययंत्र को सीखना या फिर बीमारी या चोट जैसी जीवन की कठिनाइयों से उभरना भी इसमें शामिल है। देखा जाये तो इन लक्ष्यों को प्राप्त करने की ओर बढ़ने की चाह और क्षमता ही हमारी इच्छा और प्रेरणा को बनाती है।
लक्ष्य बड़े तो आनंद भी बड़े
हम जिस जगह जन्मे हैं, वहां एक परिवार है। हम जहां बड़े होते हैं, वहीं एक समाज है। हम जहां आगे बढ़ेंगे वहां एक देश है और हम जहां सुख पायेगे वहां आत्मिक धर्म है। लक्ष्य इन चार में से कोई भी हो सकता है। यदि बड़ा लक्ष्य होगा तो बड़ा आनन्द होगा। बड़े लक्ष्यों के लिए छोटे-छोटे स्वार्थ हमें छोड़ने होंगे। जितने बड़े लक्ष्य होंगे, संघर्ष और हर्ष उतने ही अधिक होंगे।
– आत्मिक धर्म का लक्ष्य बनाओगे तो परिवार, समाज, देश सबका हित कर सकोगे।
– देश का लक्ष्य होगा तो परिवार, समाज और देश के लिए कुछ दे सकोगे।
– समाज का लक्ष्य बनाओगे तो परिवार और समाज के लिए ही कुछ कर पाओगे और केवल परिवार का लक्ष्य होगा तो अपने घर की चार दीवारी में ही सिमट जाओगे।
व्यापक हितों का ध्यान रखना
पहला लक्ष्य भीतरी है, आध्यात्मिक है, परन्तु उससे उत्पन्न ऊर्जा में महान सृजनात्मक शक्ति है। इस व्यापक लक्ष्य पर ध्यान रखते हुए भी अन्य तीनों लक्ष्यों की पूर्ति की जा सकती है। आत्मिक लक्ष्य व्यक्तित्व का निर्माण करता है क्योंकि इसमें चारित्रिक पक्ष जुड़ा होता है। नैतिकता और मानवीयता के सुखों का ध्यान रखते हुए ही परिवार, समाज और देश का लक्ष्य हासिल किया जाता है। व्यक्तित्व किसी रंग, रूप, हेल्थ, हाईट का नाम नहीं है अपितु जीवन की सफल-असफल सीढ़ियों पर चलते हुए सोद्देश्य कार्य करने की ऊर्जा से भरे साकार सपनों का नाम है। व्यापक हितों में रखे लक्ष्य में पराजय, ईर्ष्या, टकराव, अवसाद और संघर्ष के कई पड़ाव होंगे।
स्वप्न को साकार कर लक्ष्य पूरा करें
एक किलोमीटर लम्बे रास्ते पर एक हजार मीटर तक संघर्ष के ऊबड़-खाबड़ गड्ढे बने रहते हैं। आगे के कदम में सफलता का हर्ष पिछले दर्द को मिटा सकता है और नया दर्द सहने की ताकत बढ़ाता है। इसी का नाम है सपने को साकार करना और लक्ष्य को पूरा करना। लक्ष्यविहीन उड़ान उस छोड़ी हुई मिसाइल की तरह है जिसका अपने सिस्टम से कोई सम्बन्ध नहीं और वह कहीं भी गिरकर जीवन की बर्बादी का कारण बन जाती है। सत्ता, शोहरत, प्रतिष्ठा, पद लिप्सा के लक्ष्य मृग-मरीचिका की तरह अन्तहीन तृष्णा में आदमी को ही मिटा देते हैं। ऐसे लोगों के पास दूसरों को देने के लिए कुछ नहीं होता है, क्योंकि वे स्वयं अतृप्त और हृदय से दरिद्री होते हैं।
सर्वहितकारी होकर लक्ष्य बनाएं
वयस्कता की दहलीज पर आते-आते ऐसे ही लोग सबसे ज्यादा हमारे देखने और सुनने में आते हैं। एक युवा के लिए सबसे ज्यादा कठिन कार्य अपना एक सुनिश्चित-स्पष्ट-सर्वहितकारी लक्ष्य बनाना है। मैं मानता हूँ कि एक सौ इक्कीस करोड़ की आबादी वाले इस भारत में सौ लोग ही ऐसे होंगे जिनकी इतने व्यापक लक्ष्य हैं। सही मायने में दुनिया के भगवान् यही लोग हैं, बाकि तो इनकी प्रतिष्ठित छाया में अपने को भी भगवान् समझने वाले या भगवान् बनने वाले बन्दे हैं। उससे पहले ही हम इतने योग्य हो जाएँ कि हमारा योगदान उस रिक्त पद की पूर्ति में हो जाए। आज विज्ञान, तकनीक, व्यापार, शिक्षा, पैदावार, संस्था, प्रभुता, प्रौद्योगिकी, संचार विभाग, परमाणु सुरक्षा आदि के ऐसे सैकड़ों क्षेत्र हैं जिससे भारत विष्व में अपनी शान रखता है और आज भी कृषि प्रधान ऋषि पूजित देश माना जाता है।
अपना लक्ष्य बनाने से पहले हम सोचें कि –
– ‘सत्यमेव जयते‘ की अमिट पंक्तियों को असत्य की धूलि से कैसे बचाएं?
– ‘अहिंसा परमो धर्मः‘ का उद्घोष करने वाले इस देश की हिंसात्मक प्रवृत्तियों में पल रहे लोगों को कैसे समझायें ?
– परमाणु सुरक्षा से आंतरिक सुरक्षा स्थापित करने वाले इस देश को भयए आतंक और असुरक्षा के माहौल से कैसे उबार पायें ?
– पर्यावरण दूषित करने वाले हाईटेक संसाधनों का कैसे दूसरा विकल्प बनायें ?
– नारी की निरंतर बढ़ रही असुरक्षित अस्मिता और उसी ज्वाला में झुलसती युवा शक्ति का कैसे संरक्षण कर पाएँ ?
– भ्रष्टाचार और दुराचार की अंतहीन दौड़ में दौड़ने वाले रावणों को रोकने के लिए कोई लक्ष्मण रेखा कैसे खींच पाएँ ?
– किताबों, चित्रों, चैनलों और हर जेब में रखे मोबाईलों में बन्द नारी को देखने वाली आँखों में माँ-बहिन की पूज्यता कैसे लाएँ?
– निर्दाेष-असहाय-मूक-भयभीत पशु-पक्षियों को आदमी बनाम हैवान के चंगुल से कैसे छुड़ायें ?
– मछली, मुगी, गाय, बकरी, बन्दर, सूकर जैसे सभी प्राणियों पीड़ा को हृदय शून्य इंसान तक कैसे पहुंचायें ?
– दलित-पतित-अशक्त-स्खलित-अर्धमृतक प्राणों तक जीवन बुनियादी जरूरतों को कैसे पहुंचायें और उन्हें अपने जैसा कैसे
इन उद्देश्यों की प्राप्ति IAS, IPS, PSc वैज्ञानिक, इंजीनियर, वैज्ञानिक शोध के कार्यों को हासिल करके की जा सकती है।
अगर इन उत्कृष्ट लक्ष्यों को पाने में समर्थ नहीं हैं तो मध्यस्थता विचार करें।
– हमें पढ़ लिखकर ऐसा आदमी बनना है, जिससे परिवार के लोग प्रसन्न रहें।
– हमें डॉक्टर, इंजीनियर बनकर नाम रोशन करना है।
– हमें किसी योग्य व्यापार से धन कमाना है।
– हमें CA, CS, MBA डिग्री से रोजगार पाना है।
– हमें कमाए धन का कुछ भाग धार्मिक आयोजन, मंदिर दान, औषधिशाला आदि में लगाना है।
– हमें अर्जित धन से किसी गरीब को पढ़ाना है, किसी रोगी का इलाज करना है, किसी की आवश्यकता में काम आना है।
– हमें परिवार के अलावा सगे सम्बन्धी, पड़ोसी, मित्रों को भी समर्थ बनाना है।
– हमें धन सम्पन्नता के साथ अपने मानवीय द्वार नैतिक मूल्यों को सुदृढ़ बनाना है।
विकल्प चुन अपने व्यक्तित्व का निर्माण करें।
जघन्य जीवन लक्ष्य का मूल्यांकन अपने आप जो चल रहा है, उसी में गुजारा करने से हो जाता है। इस तरह तीन लक्ष्यों में से कोई एक विकल्प चुनकर अपने व्यक्तित्व का निर्माण कर सकते हैं। इन तीन में से पहला विकल्प उत्कृष्ट है, वह तभी पूर्ण होगा जब आप सब प्रकार की योग्यताएं हासिल करके परोपकारी जीवन जिएं। ऐसा जीवन जीने वाला भीतर से सन्यासी होता है। महात्मा गांधी और मदर टेरेसा जैसे लोग इसी श्रेणी में आते हैं। इन तीनों लक्ष्यों से पहले एक और लक्ष्य बताया था जो ‘आत्मिक‘ था। यह लक्ष्य उन्हीं को प्राप्त होता है जो पूर्णतः सन्यासी जीवन जीते हैं। भगवान् महावीर इसी आत्मिक लक्ष्य को प्राप्त करने वाले महापुरुष थे। ‘कधं चरे‘ कैसे चलें? इस सूत्र के बाह्य और अन्तरंग दोनों पहलू महत्त्वपूर्ण हैं। बाह्य पहलू हमें सावधानी से चलना सिखाता है तो अन्तरंग पहलू हमें व्यक्तित्व निर्माण की ओर चलाता है।
आप अपना लक्ष्य पूरा कर सकते हैं, इन तीन बातों को अपनाकर-
– ईश्वर में विश्वास रखकर।
– विश्वास में विश्वास रखकर।
– अपने आप पर विश्वास रखकर ।
जीवन में सफल होने के लिए हमें अपना लक्ष्य पर्वत की ऊंची गर्वीली चोटियों को बनाना चाहिये जिनमें सदा स्थायित्व है न कि क्षणभंगुर बादलों को जिनमें अगले पल का भी स्थायित्व नहीं है।
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