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स्त्रियों में हमेशा प्रमाद विद्यमान रहता है-आचार्यश्री वर्धमान सागरजीः श्री महायशमति ने श्रावक का अर्थ प्रतिपादित किया


प्रमादमय स्त्रियों को प्रमादमय मूर्तियों की उपमा दी गई है, अर्थात स्त्रियों में हमेशा प्रमाद विद्यमान रहता है, जिस प्रकार मिट्टी की मूर्ति में मिट्टी की बहुलता होती है उसी प्रकार स्त्री में प्रमाद की बहुलता के कारण इन्हें प्रमदा की संज्ञा दी गई है। धर्मनगरी मुंगाणा में विराजित आचार्यश्री वर्धमान सागरजी ने यह उद्गार व्यक्त किए। पढ़िए मुंगाणा से राजेश पंचोलिया की यह पूरी खबर…


मुंगाणा। अनेक साधुओं की जन्म एवं कर्म भूमि धर्मनगरी मुंगाणा में आचार्यश्री वर्धमान सागरजी संघ सहित विराजित है। आचार्य संघ सानिध्य में प्रतिदिन प्रातः पंचामृत अभिषेक, शास्त्र प्रवचन, दोपहर को स्वाध्याय, शाम को श्रावक-श्राविकाओं संस्कार शिविर का आयोजन चल रहा है। जिसमें सैकड़ो धर्मावलंबी भाग ले रहे हैं।

आचार्यश्री ने विवेचना की

आचार्यश्री वर्धमान सागरजी ने योगसार ग्रंथ की गाथा 45 एवं 46 की विवेचना में बताया कि गाथा 44 अनुसार स्त्री पर्याय से मुक्ति नहीं होती है। गाथा 45 और 46 में इसका कारण बताया कि प्रमादमय स्त्रियों को प्रमादमय मूर्तियों की उपमा दी गई है, अर्थात स्त्रियों में हमेशा प्रमाद विद्यमान रहता है, ब्रह्मचारी गज्जू भैया व राजेश पंचोलिया अनुसार आचार्यश्री ने आगे बताया कि जिस प्रकार मिट्टी की मूर्ति में मिट्टी की बहुलता होती है उसी प्रकार स्त्री में प्रमाद की बहुलता के कारण इन्हें प्रमदा की संज्ञा दी गई है। क्योंकि उनके चित में सदा प्रमाद, विषाद, ममता, ग्लानि, ईर्ष्या, भय, माया चित्रित रहती है। यह सभी दोष मोह के परिवार हैं, इन्हीं कारणों से स्त्रियों की उसी पर्याय में मुक्ति नहीं होती है। क्योंकि मोह, मुक्ति का विरोधी है। आचार्य संघ के सानिध्य में प्रातःकाल श्रीजी का पंचामृत अभिषेक हुआ।

कहानी के माध्यम से महत्व बताया

इसके बाद आर्यिकाश्री महायशमति और श्री दिव्ययशमति के प्रवचन हुए। आर्यिका श्री दिव्ययशमतिजी ने कहानी के माध्यम से समय का और मानव जीवन का सदुपयोग देव शास्त्र गुरु, तप, संयम, त्याग में करने का महत्व बताया। श्री महायशमति ने श्रावक का अर्थ प्रतिपादित किया।

इनकी उपस्थिति रहीं

करणमल मैदावत अनिरुद्ध ने बताया कि प्रवचन सभा में अजीतमल, वरदीचंद सेठ, रजत पचौरी, निर्मल दोषी, प्रद्युमन मेदावत वीना पचौरी सहित अनेक भक्त उपस्थित रहे। शाम को श्रीजी और आचार्यश्री की आरती के बाद श्रावक संस्कार शिविर की कक्षा मुनिश्री हितेंद्र सागरजी द्वारा तथा बच्चों की कक्षा आर्यिका संघ द्वारा ली जाती है।

दिवंगत श्रुतमति माताजी को विनियांजलि दी गई 

दाहोद के पास दिवंगत आर्यिकाश्री श्रुतमति माताजी को समाज के द्वारा विनियांजलि दी गई जिसमें अध्यक्ष करणमल मैदावत ,अनिरुद्ध, ऋषभ, हेमलता, अभिषेक आदि ने अपनी भावांजलि प्रस्तुत की।

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