दोहे भारतीय साहित्य की एक महत्वपूर्ण विधा हैं, जो संक्षिप्त और सटीक रूप में गहरी बातें कहने के लिए प्रसिद्ध हैं। दोहे में केवल दो पंक्तियां होती हैं, लेकिन इन पंक्तियों में निहित अर्थ और संदेश अत्यंत गहरे होते हैं। एक दोहा छोटा सा होता है, लेकिन उसमें जीवन की बड़ी-बड़ी बातें समाहित होती हैं। यह संक्षिप्तता के साथ गहरे विचारों को व्यक्त करने का एक अद्भुत तरीका है। दोहों का रहस्य कॉलम की इक्कतीसवीं कड़ी में पढ़ें मंजू अजमेरा का लेख…
कबीरा माला मनहि की और संसारी भीख,
माला फेरे हरि मिले गले रहट के देख।
कबीरदास जी इस दोहे के माध्यम से यह संदेश देते हैं कि जो लोग सोचते हैं कि केवल माला फेरने से भगवान मिल जाएंगे, वे भ्रम में हैं। वास्तविक भक्ति बाहरी कर्मकांडों से नहीं, बल्कि मन से होती है। यदि मन में प्रेम, भक्ति और ध्यान नहीं है, तो केवल बाहरी पूजा का कोई अर्थ नहीं है। कबीर इसे ‘रहट’ (पारंपरिक जल चक्र) के उदाहरण से समझाते हैं। रहट लगातार घूमती रहती है, लेकिन उसकी कोई आध्यात्मिक उन्नति नहीं होती। इसी तरह, अगर कोई व्यक्ति केवल हाथ से माला फेरता है, लेकिन उसका मन भक्ति में लीन नहीं है, तो उसकी पूजा व्यर्थ है।
सच्ची भक्ति वह नहीं जो केवल दिखावे के लिए की जाती है, बल्कि वह है जो हृदय से की जाती है। कबीर का यह दोहा हमें यह सिखाता है कि भगवान को पाने के लिए हमें अपने मन को शुद्ध करना होगा, उसे प्रेम और भक्ति से भरना होगा। बाहरी दिखावे के लिए माला फेरने की जगह, अगर हम अपने मन को भगवान के नाम में रमाएं, तो वही असली पूजा होगी।
इस दोहे का गहन भावार्थ यह है कि भगवान को पाने के लिए बाहरी साधनों पर निर्भर न रहें, बल्कि अपने मन को ईश्वर में लगाएं। केवल दिखावा करने से कुछ हासिल नहीं होगा, जब तक कि मन सच्ची भक्ति में लीन न हो। यह दोहा हमें यह भी सिखाता है कि असली भक्ति वही है जो हमारे व्यवहार और आचरण में दिखे, न कि केवल शब्दों और कर्मकांडों में। हमें आत्मशुद्धि के लिए जीना चाहिए, न कि केवल दिखावे के लिए।
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