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इच्छापूर्ति के बाद इच्छाएं बढ़ा देना पाप है: मुनिश्री सुधासागर की संदेशानाएं बदल रही जीवन मूल्यों को


मुनिश्री सुधासागर जी महाराज के प्रवचनों का सार जीवन मूल्यों को बदलने में महत्वपूर्ण माध्यम साबित हो रहा है। मुनिश्री की धर्मसभाओं में जैन समाज के श्रावक-श्राविकाओं को उनके प्रवचनों से आत्मिक आनंद की अनुभूति तो होती ही है। वे अहम संदेशों को जीवन में उतारने के लिए कृतसंकल्पित भी हो रहे हैं। पढ़िए सागर से राजीव सिंघई की यह खबर…


सागर। मुनिश्री सुधासागर जी महाराज ने शनिवार को धर्मसभा के दौरान अपने प्रवचन में कहा कि जिंदगी निकालना नहीं चाहिए, जिंदगी जीना चाहिए। जैसे व्यापारी कोई भी कार्य करता है तो वह उसमें कुछ लाभ चाहता है। ऐसे ही जिंदगी को हम सांसारिक दृष्टिकोण से देखें तो एक व्यापारी बन जाओ। शाम को व्यापारी अपनी बैलेंस शीट मिलाता है। तुम अपनी जिंदगी की बैलेंस शीट मिलाओ कि आज हमने दिनभर में जो कुछ किया, उसमें हमें उपलब्धि क्या हुई? यह दिन निकला है, यह निकाला है और मिला क्या है? क्या आपको ऐसी अनुभूति हुई कि आज के दिन बहुत लाभ हुआ, आज का दिन स्मरणीय रहेगा। यदि शाम को ऐसी अनुभूति हो जाए तो समझ लेना कल तुम्हारा बहुत अच्छा दिन आने वाला है। अच्छे दिन के पहले का निर्णय करना है, हर भविष्य को अपन को सोचना है और भविष्य हमारा हमेशा बिफोर टाइम शुरू होता है। कल दिन अच्छा आएगा। निर्णय तो आज की शाम करेगी।

…इसलिए दुकान खोलते समय प्रसन्न रहो

जब तुम शाम को बाहर से लौटते हो तो सारा परिवार तुम्हारे चेहरे को देखता है, चेहरे पर मुस्कान है या चेहरा लटका हुआ लौट रहे हो। यदि चेहरा लटका हुआ लौटता है तो घर में अपशगुन माना जाता है। जब तुम घर से निकलते हो तो तुम्हारे व्यापार का शगुन माना जाता है। वास्तु में लिखा है कि किसी कार्य को जाते समय यदि घर में क्लेश हो जाता है, क्रोध आ जाता है, संक्लेश हो जाता है तो सबसे बड़ा अपशगुन माना जाता है क्योंकि, तुम घर से निकल रहे थे उसी समय क्लेश या संक्लेश हो गया, अब तुम्हारा आज का व्यापार, आज की दुकान अच्छी नहीं चलेगी। इसलिए दुकान खोलते समय कितने प्रसन्नचित्त से खोली है।

अंदर से परिणाम आ जाए कि कुछ नहीं होना

वास्तु यह कहता है कि तुम जिस भूमि पर कदम रख रहे हो। जिस कार्य को करने जा रहे हो, उस समय तुम्हें कैसा लग रहा है? यदि डर लग रहा है, संदेह हो रहा है। आपके मन मे क्लेश भरा है तो थोड़ा आप रुक जाइए क्योंकि, आपके अंदर खुद निर्णय कर रही है आपकी आत्मा, पता नहीं यह कार्य मैं कर रहा हूं तो क्या होगा। लग रहा है कुछ गलत ना हो जाए इससे बड़ा जो ज्योतिषचार्य कोई नहीं होता। यदि अंदर से परिणाम आ जाए कि कुछ नहीं होना है, जो होना है वह अच्छा ही होना है तो सब अच्छा ही होगा।

‘…देखना आपकी हर यात्रा शगुन है’

जब घर से बाहर जाते हो, दुकान की तरफ जाते हो तो दुकान का शगुन-अपशगुन होता है और दुकान से जब घर लौटते हो तो घर का शगुन-अपशगुन होता है। घर से निकलते समय सब लोगों ने जितना खुशी-खुशी विदा किया है और तुम खुशी-खुशी गए हो, शुभ सोचकर गए हो, जाओ तुम्हारा सब कार्य शुभ होगा। तुम जिस कार्य में हाथ डालोगे तुम्हें सफलता ही सफलता मिलेगी। तुम बड़ी उम्मीद लेकर खुशहाली में गए हो, देखना आपकी हर यात्रा शगुन है। जब लौटों तो घर का शगुन करना। अधूरे, अतृप्त होकर मत लौटना, पूर्ण होकर लौटों, जाओ घर में लक्ष्मी बरसेगी। घर तुम्हारा मंदिर है, घर तुम्हारी जिंदगी है, घर तुम्हारा जीवन है, उसको उतना ही पवित्र रखो, जितना तुम मंदिर के लिए पवित्र रखते हो।

इसलिए कहा है कि तुम असीम हो जाओ

मंदिर में जिस तरह हम भाग्यशाली बनाकर प्रवेश करते हैं। इसी तरह घर में भाग्यशाली बनकर एक आनंद के साथ प्रवेश करो। सारे लोग तुम्हारा चेहरा देखकर कहे कि देखो चेहरा खिला हुआ आ रहा है। इसका अर्थ है इस कार्य के लिए गए थे। उसमें सफलता मिल गई। यही सबसे बड़ी उपलब्धि है। इसलिए यह जैनाचार्यों ने कहा कि उतनी इच्छा करके जाओ जिसको लौटते समय तुम कह सको जिसको सोच कर गया था वह हो गया। अपनी कूबत से थोड़ा कम कहकर जाओ। तुम ज्यादा करके आओगे तो तुम्हारा मन भी खुश होगा और परिवार भी खुश होगा। इच्छाओं को सीमित करने के लिए इसलिए नहीं कहा कि तुम सीमित हो जाओ, इसलिए कहा है कि तुम असीम हो जाओ।

 सुबह उठते ही तुम्हें काउंट करना है

किसी कार्य को प्रारंभ करने के पहले की जो इच्छा है। मंदिर जाते समय, मुनि बनते समय या प्रतिमा लेते समय। बस तुम पहली इच्छा को काउंट करो। सुबह उठते ही तुम्हें काउंट करना है क्या दिन भर में तुम्हारी क्या इच्छाएं हैं, रिश्तेदार बनाते समय रिश्तेदार से प्रारंभ में तुम्हारी क्या इच्छाएं हैं, दान देते समय तुम्हारी क्या इच्छाएं हैं ये लिखने के बाद नीचे एक नोट लगा दो जो इच्छा मेरी हुई है, ये इच्छा पूरी करने के बाद फिर मैं आगे कोई इच्छा नहीं करूंगा। इच्छाएं करना पाप नहीं है लेकिन, पाप है इच्छापूर्ति के बाद इच्छाएं बढ़ा देना।

पिता के थप्पड़ मारने पर खुश होगे तो तुम्हारा बेड़ा पार 

तुम्हारे घर में अपने भाई को बढ़ता हुआ ना देख पाओं तुम भाई को ही काटने लग जाओ, समाज की बढ़ोतरी न देख पाए, समझ लेना या तो तुम कुत्ते थे या फिर आगे कुत्ते बनने का अभ्यास चालू हो गया। बाप भी बेटे की बुराई करता है तो बेटे को बहुत बुरा लगता है। यही तेरी अंतिम कमजोरी है, तुझे पिता की बुराई करना बुरा लग रहा है, जाओ तुम्हारा विकास रुक गया। तुम्हें तो गुरु की डांट भी बुरी लगती है और यदि तुम्हे आनंद आ जाए तो समझ लेना कि तुम्हारा भविष्य उज्जवल हो गया। हजार आशीर्वाद तुम्हारा उद्धार करेंगे या नहीं, बाप के एक थप्पड़ मारने पर तुम खुशी मना लेना तो तुम्हारा बेड़ा पार निश्चित है। तुम्हारी गलती करनी है पर तुम्हें डांटना पड़े तो समझना तुम्हे बाप ने अपनी दृष्टि से निकाल दिया है और गलती करने पर डांट पड़े तो समझना गुरु ने तुम्हें स्वीकार कर लिया है।

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