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किस्मत जहां तक ले जाती है एक बार अंतिम एवरेस्ट की ऊंचाई छूना चाहिए: मुनिश्री सुधासागर जी ने श्रावकों को जन्म लेने का महत्व बताया


निर्यापक मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी महाराज ने अपने प्रवचन में मनुष्य जीवन में जन्म, कर्म और धर्म के महत्व को प्रतिपादित करते हुए देशना दी। मुनिश्री की धर्मसभा में नित बड़ी संख्या में श्रद्धालुजन पहुंच रहे हैं। उन्होंने अपने प्रवचनों से मानव कल्याण के रास्ते पर चलने का संदेश दिया है। पढ़िए सागर से राजीव सिंघई मोनू की खबर…


सागर। कोई भी वस्तु होती है सबसे पहले उसकी अर्थ क्रिया जानना चाहिए, मां-बाप ने तुम्हें जन्म दिया, क्या कारण है उसको जानों। तुम भारत में जन्मे, क्यों तुम्हें जन्म दिया कर्म ने भारत में, कर्म ने क्यों तुम्हें मनुष्य बनाया, नारकी, कीड़े मकोड़े भी बना सकता था। जब-जब हमें किसी भी कार्य की उपलब्धि हो तो तुरंत हमारे अंदर क्यों प्रत्यय आना चाहिए। उहापोह जिसे दार्शनिक भाषा में रहते हैं उहां और पोह-क्यों किया है और मुझे क्या करना है। यदि हमने थोड़ा सा भी विचार कर लिया तो कर्म इतना प्रसन्न होगा कि इन्होंने हमारी केअर कर ली।

थोड़ी कदर कर लो एक बार जिंदगी में 

शास्त्र पढ़ो तो शास्त्र में खोजो और ध्यान करो तो ध्यान में सोचो-मुझे क्यों बनाया गया मनुष्य, फिर सोचो कि मनुष्य तो बनाया, मुझे इतना अच्छा मन क्यों दिया? कितने लोग हैं जिनके पास मन ही नहीं है या जिनका मन विक्षिप्त है। मेरी आंखें इतनी अच्छी क्यों बनाई? कितने लोग हैं जो जन्म से अंधे हैं। मेरे कान अच्छे बना दिए, मैं सुन रहा हूं, कई लोग बहरे हैं। क्यों मुझे कर्म ने भारत मे जन्म दिया और भारत में भी जैनकुल में। थोड़ी कदर कर लो एक बार जिंदगी में विचार करो तो यह कर्म और देने वाला इतना खुश हो जाएगा कि जनम जनम तक तुम पर मेहरबानी करता रहेगा। तुम्हें कुछ नहीं करना है, देने वाला देता है, तुम्हें मात्र उसका आभार मानना है।

जितना हम सोच सकते हैं उतना सोचना चाहिए

अब दूसरा नम्बर आता है अपोह का, कर्म को जो करना था कर लिया, जिस मार्ग में तुम प्रवेश करो, किस्मत जहां तक ले जाती है एक बार अंतिम एवरेस्ट की ऊंचाई छूना चाहिए। हम कितना सोच सकते हैं उतना सोचना चाहिए। व्यक्ति को किस्मत से जो कुछ देते हैं उसका पूरा उपयोग करना चाहिए। पंचमकाल में प्रकृति ने हमें कहां तक जाने की अनुमति दी है, वहां तक हमें जाना चाहिए। जितना हम सोच सकते हैं उतना सोचना चाहिए। जितना हम देख सकते हैं उतना देखना चाहिए, जितना हम सुन सकते हैं उतना सुनना चाहिए और जितना हम बोल सकते हैं उतना बोलना चाहिए। कितना हम पढ़ सकते हैं, पढ़ना चाहिए और जितना तुम कमा सकते हैं उतना कमाना चाहिए। पंचम काल में जो तुम्हारी में योग्यता है उसको कभी मरने नहीं देना चाहिए क्योंकि, जो योग्यता हमें कर्म से, किस्मत से, प्रकृति से मिलती है, उस योग्यता को यदि हमने उपयोग नहीं किया तो वह योग्यता खत्म हो जाती है। तुम बहुत अच्छा सोच सकते हो और नहीं सोच रहे हो, अपनी योग्यता को छुपा लोगे तो कल सोचने की शक्ति ही नहीं रहेगी। तुम देखकर चल सकते हो और तुम नहीं देख रहे हो तो कल देखने लायक नही रहोगे क्योंकि, तुमने योग्यता का अनादर किया है। पंचम काल में हमारी योग्यता मुनि बनने तक की है। आप जैन श्रावक है तो आगम को पढ़ो कि जैन श्रावक को क्या-क्या योग्यताएं दी गई है?

उपादान शक्ति बलजोरी होती है 

मिथ्या दृष्टि स्वाध्याय करता है जानने, समझने के लिए और सम्यकदृष्टि स्वाध्याय करता है करने, पाने के लिए। यदि प्रवचन आप इसलिए सुन रहे हो कि मुझे कुछ ज्ञान मिलेगा तो आप अभी सम्यकदृष्टि नहीं हो और प्रवचन इसलिए सुन रहे हो कि महाराज जो कहेंगे मुझे करना है तो समझ लो सम्यकदृष्टि हो। आहार देना है मिथ्यादृष्टि हो और आहार देकर जीवन धन्य करना है तो सम्यक दृष्टि हो। साधु की निमित्त शक्ति कमजोर होती है और उपादान शक्ति बलजोरी होती है और गृहस्थ की उपादान कमजोर और निमित्त शक्ति बलजोर होती है। जब निमित्त शक्ति बलजोर होती है तब व्यक्ति को कोई न कोई अच्छे निमित्त मिलाना पड़ते हैं और जिनकी उपादान शक्ति बलजोर होती है। उनको निमित्त नहीं मिलाना पड़ते, हम लोगों को मंदिर की जरूरत नहीं है, हम लोग णमोकार मंत्र को इतना महत्व नहीं देते और साधु जिस निमित्त से प्रभावित हो जाए समझना उस निमित्त में दम है।

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