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पंच कल्याणक के महत्व के बारे में जाने विस्तार से : अतिशय क्षेत्र सिहोनिया में जारी है पंच कल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव


अतिशय क्षेत्र सिहोनिया जी में भव्य पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव आचार्य श्री वसुनंदी सागर महाराज जी संसंघ सानिध्य में चल रहा है। इसमें आचार्य वसुनंदी सागर जी महाराज ने पंच कल्याणक के बारे में विस्तार से बताया। पढ़िए अंबाह से यह खबर…


अंबाह(सिहोनिया)। अतिशय क्षेत्र सिहोनिया जी में भव्य पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव आचार्य श्री वसुनंदी सागर महाराज जी संसंघ सानिध्य में चल रहा है। इसमें स्वर्गलोक की अष्ट कुमारियां भगवान की माता मरू देवी की सेवा करती हैं। तीर्थंकर के गर्भ में आने के 6 माह पहले से ही देवता उनकी भावी जन्म नगरी में दिव्य रत्नों की वर्षा करते हैं। तीर्थंकर को जन्म देने वाली मां को 16 स्वप्न दिखाई देते हैं। तीर्थंकर के जन्म से सौधर्म इंद्र का आसन कंपायमान होता है। अन्य चारों निकाय के देवों के महलों में भी विचित्र संकेत होते हैं।

वे पांच मुख्य घटनाएं 

नरक के जीवों को भी कुछ क्षण की शांति मिलती है। तीर्थंकर के जन्म के बाद इंद्र बालक को ऐरावत हाथी पर बिठाकर सुमेरु पर्वत पर ले जाकर अभिषेक कर असंख्य देवों के साथ तीर्थंकर का जन्म कल्याणक मनाता है। सौरभ जैन वरेह वाले ने बताया कि पंचकल्याणक, जैन ग्रंथों के अनुसार वे पांच मुख्य घटनाएं हैं, जो सभी तीर्थंकरों के जीवन में घटित होती हैं। ये पांच कल्याणक हैं।

गर्भ कल्याणक : जब तीर्थंकर प्रभु की आत्मा माता के गर्भ में आती है।

जन्म कल्याणक : जब तीर्थंकर बालक का जन्म होता है।

दीक्षा कल्याणक : जब तीर्थंकर सब कुछ त्यागकर वन में जाकर मुनि दीक्षा ग्रहण करते है।

केवल ज्ञान कल्याणक : जब तीर्थंकर को कैवल्य की प्राप्ति होती है।

मोक्ष कल्याणक : जब भगवान शरीर का त्यागकर अर्थात सभी कर्म नष्ट करके निर्वाण/ मोक्ष को प्राप्त करते है।

यह भी पुण्य योग है

भगवान के गर्भ में आने से 6 माह पूर्व से लेकर जन्म पर्यन्त 15 मास तक उनके जन्म स्थान में कुबेर द्वारा प्रतिदिन तीन बार साढ़े तीन करोड़ रत्नों की वर्षा की जाती है। यह भगवान के पूर्व अर्जित कर्मों का शुभ परिणाम है। दिक्ककुमारी देवियां माता की परिचर्या और गर्भशोधन करती हैं। यह भी पुण्य योग है।

गर्भ अवतरण के समय माता को 16 उत्तम स्वप्न दिखते हैं। प्रत्येक सपना का अपना अलग-अलग मतलब होता है।

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