निर्यापक मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी महाराज की धर्मसभा में प्रवचनों के दौरान जैन धर्म अनुयायी बड़ी संख्या में पुण्यार्जन कर रहे हैं। बुधवार को धर्म सभा को संबोधित करते हुए मुनिश्री ने कहा कि क्या होता है यह मूल्यवान नहीं है, क्या करते हो ये मूल्यवान है। पढ़िए सागर से राजीव सिंघई की यह खबर…
सागर। निर्यापक मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी महाराज की धर्मसभा में प्रवचनों के दौरान जैन धर्म अनुयायी बड़ी संख्या में मौजूद रहकर पुण्यार्जन कर रहे हैं। बुधवार को धर्म सभा को संबोधित करते हुए मुनिश्री ने कहा कि क्या होता है यह मूल्यवान नहीं है, क्या करते हो ये मूल्यवान है। जो अपने आप हुआ था, जो अपने आप होगा, उससे तेरा कोई कार्य होने वाला नहीं है। कर्म बंधते है, उदय में आते है, निर्जरा को प्राप्त हो जाते है।
जिंदगी निकल रही इसका कोई महत्व नहीं
पेड़ इतने फल देता है लेकिन, उसको कोई पुण्य बंध नहीं होता क्योंकि वो देता नहीं है, दुनिया को पेड़ से फल मिल जाते हैं। तुम्हारे द्वारा कितनों को लाभ हुआ है, इसकी कोई कीमत नहीं है, महत्वपूर्ण है कितनों को तुमने लाभ दिया है। जिंदगी निकल रही है इसका कोई महत्व नहीं है, कितनी जिंदगी है जो तुमने जी है, जो जिंदगी तुम्हारे होश में गुजरी है। सुबह उठते ही एहसास हो कि आज मैं जिंदा हूँ और जिंदा रहने का अर्थ है शाम को ऐसा लगे कि हमने दिनभर में कुछ किया है। कल क्या होना है इसका तुम्हें विचार नहीं करना, कल तुम्हें क्या करना है इस पर विचार करना है।
भक्त भी सेवा के लिए नहीं बनाते
जैनदर्शन किसी को दास नहीं बनाता है, भक्त बनाता है और भक्त भी सेवा के लिए नहीं बनाते। भगवान के दर्शन करते-करते हमें खुद भगवान बनने की अनुभूति हो जाए दर्शन सफल हो जाता है।भगवान की सेवा और पूजा करना ये तो सारी दुनिया में होता है, जैन दर्शन कहता है कि भगवान का दर्शन करते-करते कभी भाव आ जाए कि मुझे भगवान का दर्शन इसलिए करना है कि मुझे भगवान बनना है।
चारित्र मोहनीय कर्म का क्षयोपशम होगा
मुनि को आहार देते समय कभी यह भाव आ जाए कि मुझे आहार देना नहीं, लेना है, ये बात महत्वपूर्ण है, आपके उस समय ऐसे चारित्र मोहनीय कर्म का क्षयोपशम होगा कि आप यहां से सीधे विदेह क्षेत्र में जाकर 8 वर्ष अन्तर्मुहूर्त के अंदर तुम्हारे हाथ में पिच्छी कमंडल होगा। हर नारी को भगवान का अभिषेक देखते समय यह भाव आ जाए कि यह जो अभिषेक कर रहा है न, बस भगवन एक दिन मुझे भी करना है, मैं देखने मे संतुष्ट नहीं हूं। ऐसी तलब यदि तुम्हें लग जाए तो उसी समय तुम्हारी स्त्री पर्याय नष्ट होकर पुरुष पर्याय का बंध चालू हो जाएगा।
मैं बड़ा इंद्र नहीं तो छोटा इंद्र बनूंगा
यदि तुम्हारा यह भाव है कि आज बोली तो लेना नहीं क्या करेंगे पंडाल में जाकर, आज तो बोलियों में समय लगेगा, बहुत बड़ी भूल कर रहे हो तुम जिंदगी में कभी समर्थ नहीं हो पाओगे, तुम आज भी गरीब हो और कल भी गरीब रहोगें। हर व्यक्ति को एक मन बनना है कि पंचकल्याणक होगा नहीं, मैं पंचकल्याणक करूंगा, मेरी साक्षी में पंचकल्याणक होगा तो मैं कुछ न कुछ करूंगा, मैं बड़ा इंद्र नहीं तो छोटा इंद्र बनूंगा
एक रिलेशनशिप बनाओ, रिश्तेदारी नहीं
जब तुम जैन लिखो तो अपन सब का पिता एक ही है जिनेंद्र देव। जिनेंद्र से उत्पत्ति हुई है जैन की, हम जिनेन्द्र देव के कुटुंब के हैं और जिनेन्द्र देव का पंचकल्याणक हो रहा है तो उसमें घराती बनकर जाना, बराती बनकर नहीं। हम जैन है, जिनेन्द्र देव के कुटुंब के, एक रिलेशनशिप बनाओ, रिश्तेदारी नहीं। समर्थन बाहर से नहीं अंदर से देना है।
मैं तेरा मंदिर बनाकर मर सकूं
जब व्यापार धंधा करते हो तो आपको भाव आता है कि मेरा इतना व्यापार हो जाये कि मेरा खुद का मकान हो जाए, मेरी खुद के गाड़ी घोड़ा हो जाए, मेरे बच्चों की शादी विवाह शान शौकत से कर सकूँ। कोई बात नहीं, आप गृहस्थ है आपकी ये अपेक्षाएं होती है, होनी ही चाहिए, आपकी ये भावना पूरी हो बस इतना सा कर लेना नांगल के दिन एक भावना कर लेना कि इस दुकान से इतनी बरकत हो जाए कि भगवन मैं तेरा मंदिर बनाकर मर सकूं।
…गजरथ की फेरी निकाल सकूं
इतना समर्थ कर देना कि एक दिन तुझे रथ पर बैठालकर गजरथ की फेरी निकाल सकूं। तुम लोग साल भर में एकाध बार पूरे कुटुंबी, रिश्तेदार किसी न किसी से कारण से इकट्ठे हो जाते हो, बस जिंदगी में एक भाव करना कि इतनी बुद्धि और दे देना भगवन! एक बार में सारे रिश्तेदारों को तेरी भक्ति के लिए इकट्ठा कर सकूं।
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