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दोहों का रहस्य -29 दुर्बल, असहाय, या पीड़ित को कष्ट न दें : कमजोर की हाय में होती है एक अदृश्य शक्ति


दोहे भारतीय साहित्य की एक महत्वपूर्ण विधा हैं, जो संक्षिप्त और सटीक रूप में गहरी बातें कहने के लिए प्रसिद्ध हैं। दोहे में केवल दो पंक्तियां होती हैं, लेकिन इन पंक्तियों में निहित अर्थ और संदेश अत्यंत गहरे होते हैं। एक दोहा छोटा सा होता है, लेकिन उसमें जीवन की बड़ी-बड़ी बातें समाहित होती हैं। यह संक्षिप्तता के साथ गहरे विचारों को व्यक्त करने का एक अद्भुत तरीका है। दोहों का रहस्य कॉलम की उन्नतीसवीं कड़ी में पढ़ें मंजू अजमेरा का लेख…


“दुर्बल को ना सताई है, जाकी मोटी हाय।

बिना जीव की हाय से, लोहा भस्म हो जाए।।”


कबीरदास जी इस दोहे में मनुष्य को चेतावनी देते हैं कि वह दुर्बल, असहाय, या पीड़ित को कष्ट न दे, क्योंकि उनकी हाय (बददुआ) अत्यंत शक्तिशाली होती है। कमजोर व्यक्ति भले ही शारीरिक रूप से बलहीन हो, लेकिन उसकी आत्मा की पीड़ा इतनी प्रबल हो सकती है कि वह अदृश्य रूप से भी बड़े प्रभाव डाल सकती है

समाज में अक्सर शक्तिशाली लोग कमजोरों को शोषण का शिकार बनाते हैं। लेकिन यह दोहा हमें बताता है कि कमजोर व्यक्ति की भी शक्ति होती है, भले ही वह शारीरिक न हो, परंतु मानसिक और भावनात्मक रूप से उसकी आह समाज में बड़ा परिवर्तन ला सकती है। जब शोषित वर्ग की वेदना एकत्रित होती है, तो वह विद्रोह, क्रांति या परिवर्तन का कारण बन सकती है। इतिहास इस बात का साक्षी है कि जब अत्याचार अपनी चरम सीमा पर पहुँचता है, तो समाज में क्रांतिकारी बदलाव आते हैं।

यह दोहा हमें सिखाता है कि दीन-दुखियों और दुर्बलों को सताना सबसे बड़ा पाप है। कमजोर की हाय एक अदृश्य शक्ति होती है, जो बिना किसी बाहरी साधन के भी दुष्टों को नष्ट करने की क्षमता रखती है। इसलिए, हमें अपने कर्मों का ध्यान रखना चाहिए और सदा दूसरों के प्रति संवेदनशील रहना चाहिए। यह दोहा प्रेम, करुणा, अहिंसा और न्याय की महानता को दर्शाता है और जीवन में नैतिकता के महत्व को उजागर करता है।

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