दोहे भारतीय साहित्य की एक महत्वपूर्ण विधा हैं, जो संक्षिप्त और सटीक रूप में गहरी बातें कहने के लिए प्रसिद्ध हैं। दोहे में केवल दो पंक्तियां होती हैं, लेकिन इन पंक्तियों में निहित अर्थ और संदेश अत्यंत गहरे होते हैं। एक दोहा छोटा सा होता है, लेकिन उसमें जीवन की बड़ी-बड़ी बातें समाहित होती हैं। यह संक्षिप्तता के साथ गहरे विचारों को व्यक्त करने का एक अद्भुत तरीका है। दोहों का रहस्य कॉलम की पच्चीसवीं कड़ी में पढ़ें मंजू अजमेरा का लेख…
तिनका कब हूं न निदिये, जो पायन तर होय।
कबहुं उड़ आंखिन परे, पीर घनेरी होय।।
कबीर दास जी का यह दोहा बहुत गहन और बहुआयामी संदेश देता है। इसमें उन्होंने एक छोटे से तिनके (सूक्ष्म चीज़) का प्रतीकात्मक प्रयोग करके मनुष्य को अहंकार, विनम्रता और उसके जीवन के सामाजिक, धार्मिक और व्यावहारिक पहलुओं पर विचार करने की प्रेरणा दी है।
कबीर दास जी इस दोहे के माध्यम से यह सिखाते हैं कि मनुष्य को अपने अहंकार को त्यागकर विनम्रता को अपनाना चाहिए। एक छोटा-सा तिनका भी यदि गलत जगह पर चला जाए, तो वह अपार कष्ट देता है। इसी प्रकार, हमारा घमंड या दुर्व्यवहार समाज और व्यक्तिगत जीवन में अव्यवस्था उत्पन्न कर सकता है।
इस दोहे का संदेश यह है कि हमें विनम्रता, सहनशीलता और संवेदनशीलता से जीवन जीना चाहिए ताकि किसी को भी हमारे कारण पीड़ा न हो। अतः जीवन में अहंकार से बचें और हमेशा विनम्रता का पालन करें। अहंकार चाहे कितना भी छोटा क्यों न हो, वह दूसरों के लिए पीड़ा का कारण बन सकता है। जीवन में दूसरों की पीड़ा का अनुभव करके, उनके प्रति सहानुभूति और संवेदनशीलता दिखाना हमारा कर्तव्य है। मनुष्य को विनम्रता, दया, और आत्मनिरीक्षण के साथ जीवन जीना चाहिए ताकि उसके कर्म किसी को भी कष्ट देने वाले न हों।
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