दोहे भारतीय साहित्य की एक महत्वपूर्ण विधा हैं, जो संक्षिप्त और सटीक रूप में गहरी बातें कहने के लिए प्रसिद्ध हैं। दोहे में केवल दो पंक्तियां होती हैं, लेकिन इन पंक्तियों में निहित अर्थ और संदेश अत्यंत गहरे होते हैं। एक दोहा छोटा सा होता है, लेकिन उसमें जीवन की बड़ी-बड़ी बातें समाहित होती हैं। यह संक्षिप्तता के साथ गहरे विचारों को व्यक्त करने का एक अद्भुत तरीका है। दोहों का रहस्य कॉलम की तेईसवीं कड़ी में पढ़ें मंजू अजमेरा का लेख…
शीलवंत सबसे बड़ा, सब रत्न की खान।
तीन लोक की संपदा, रही शील में आन।
कबीरदास जी के इस दोहे का गहन भाव यह है कि शील एक ऐसी अमूल्य निधि है, जो न केवल व्यक्ति को, बल्कि पूरे संसार को संतुलित और सुखमय बनाती है। भौतिक संपत्ति और सांसारिक रत्न नाशवान हैं, परंतु शील वह संपदा है जो आत्मा को अमरत्व प्रदान करती है।
शील का महत्व किसी बाहरी आभूषण से नहीं, बल्कि आंतरिक शुद्धता, समर्पण, और संतुलन से है। यदि व्यक्ति शील का अनुसरण करता है, तो उसे न केवल आत्मिक शांति प्राप्त होती है, बल्कि समाज और ईश्वर दोनों की कृपा भी मिलती है।
कबीरदास जी के अनुसार, शील मानव आत्मा का वास्तविक आभूषण है। यह गुण आत्मा को इतना पवित्र और महान बनाता है कि इसे तीनों लोकों (स्वर्ग, पृथ्वी, और पाताल) की संपत्ति से भी अधिक मूल्यवान बताया गया है। शील आत्मा की शांति और परमात्मा के साथ एकात्मता का आधार है। शीलवंत व्यक्ति सांसारिक भौतिक सुख-सुविधाओं के पीछे नहीं भागता, वह अपने अंतर्मन में शांति और ईश्वर की प्राप्ति का अनुभव करता है।
शीलवंत व्यक्ति समाज के लिए एक आदर्श बनता है, और उसके आचरण से अन्य लोग प्रेरणा लेते हैं।
समाज में शील की कमी होने पर असमानता, अशांति, और द्वेष बढ़ता है। शील को समाज की आधारशिला बताया गया है, क्योंकि यह आत्मा को स्थिर और परम सुखदायी बनाता है।
शास्त्रों में कहा गया है कि भगवान केवल उन्हीं का साथ देते हैं जो शीलवंत और सरल हृदय वाले होते हैं। अतः शील को अपनाकर संसार के सबसे धनवान बनने में ही समझदारी है।
Add Comment