समाचार

दोहों का रहस्य - 20 गुरु के प्रति भक्ति, श्रद्धा और समर्पण ही सच्ची धार्मिकता है : गुरु दिखाते हैं आत्मज्ञान और ईश्वर तक पहुंचने का रास्ता


दोहे भारतीय साहित्य की एक महत्वपूर्ण विधा हैं, जो संक्षिप्त और सटीक रूप में गहरी बातें कहने के लिए प्रसिद्ध हैं। दोहे में केवल दो पंक्तियां होती हैं, लेकिन इन पंक्तियों में निहित अर्थ और संदेश अत्यंत गहरे होते हैं। एक दोहा छोटा सा होता है, लेकिन उसमें जीवन की बड़ी-बड़ी बातें समाहित होती हैं। यह संक्षिप्तता के साथ गहरे विचारों को व्यक्त करने का एक अद्भुत तरीका है। दोहों का रहस्य कॉलम की बीसवीं कड़ी में पढ़ें मंजू अजमेरा का लेख…


“कबीर ते नर अंध है, गुरु को कहते और।

हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर।”


कबीर दास जी इस दोहे में गुरु की महिमा को स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं और गुरु को ईश्वर से भी ऊपर स्थान देते हैं। उनका मानना है कि यदि ईश्वर (हरि) आपसे रूठ जाएं, तो गुरु के माध्यम से उन्हें मनाया जा सकता है, क्योंकि गुरु ही वह मार्गदर्शक होते हैं जो आत्मज्ञान और ईश्वर तक पहुंचने का रास्ता दिखाते हैं। लेकिन यदि गुरु आपसे नाराज हो जाएं, तो आपको कोई ठिकाना नहीं मिलेगा, क्योंकि गुरु के बिना आत्मा का कल्याण असंभव है।

कबीर जी कहते हैं कि जो लोग गुरु की महिमा को नहीं समझते और उन्हें तुच्छ समझते हैं, वे आध्यात्मिक रूप से अंधे हैं। गुरु ही वह दिव्य प्रकाश होते हैं जो व्यक्ति को अज्ञान के अंधकार से बाहर निकालते हैं। वे ईश्वर तक पहुंचने के लिए एक सेतु का काम करते हैं।

गुरु के प्रति भक्ति, श्रद्धा और समर्पण ही सच्ची धार्मिकता है, जो ईश्वर की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करती है। इसलिए, जो व्यक्ति सच्चे गुरु के मार्गदर्शन में रहता है, वह आसानी से ईश्वर को प्राप्त कर सकता है। कबीर का यह संदेश हमें गुरु की महिमा और उनके मार्गदर्शन की अहमियत को समझने की प्रेरणा देता है।

आप को यह कंटेंट कैसा लगा अपनी प्रतिक्रिया जरूर दे।
+1
0
+1
0
+1
0

About the author

Shreephal Jain News

Add Comment

Click here to post a comment

× श्रीफल ग्रुप से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें