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दोहों का रहस्य - 16 हमें सोच-समझकर ही संगति रखनी चाहिए : संगति का होता है जीवन में अत्यधिक महत्व


दोहे भारतीय साहित्य की एक महत्वपूर्ण विधा हैं, जो संक्षिप्त और सटीक रूप में गहरी बातें कहने के लिए प्रसिद्ध हैं। दोहे में केवल दो पंक्तियां होती हैं, लेकिन इन पंक्तियों में निहित अर्थ और संदेश अत्यंत गहरे होते हैं। एक दोहा छोटा सा होता है, लेकिन उसमें जीवन की बड़ी-बड़ी बातें समाहित होती हैं। यह संक्षिप्तता के साथ गहरे विचारों को व्यक्त करने का एक अद्भुत तरीका है। दोहों का रहस्य कॉलम की सोलहवीं कड़ी में पढ़ें मंजू अजमेरा का लेख…


“कबीर संगत साधु की हरे और की व्याधि,  

संगत बुरी आसाधु की करे और ही व्याधि।”


कबीर दास जी के इस दोहे में संगति (साथ) के प्रभाव को गहराई से समझाया गया है। वे कहते हैं कि किसी साधु-संत या सच्चे मार्गदर्शक की संगति करने से व्यक्ति के मन और आत्मा में जो मानसिक, नैतिक और आध्यात्मिक विकार होते हैं, वे दूर हो जाते हैं। साधु की संगति व्यक्ति को आत्मज्ञान, सच्चाई और ईश्वर-प्रेम की ओर अग्रसर करती है।

इसके विपरीत, यदि कोई व्यक्ति असाधु (बुरे लोगों) की संगति करता है, तो उसकी मानसिक और आध्यात्मिक समस्याएं और बढ़ जाती हैं। बुरी संगति व्यक्ति को अज्ञानता, लोभ, मोह, क्रोध और अहंकार के गहरे रास्ते पर ले जाती है। इसलिए आत्म-कल्याण के लिए हमें साधु की संगति करनी चाहिए। जैसा संग, वैसा गुण – यह सिद्धांत यह बताता है कि जिस तरह के लोगों के साथ हम रहते हैं, वैसे ही गुण हमारे जीवन में भी आ जाते हैं।

अतः हमें सोच-समझकर ही संगति रखनी चाहिए और उचित लोगों के साथ ही समय बिताना चाहिए, ताकि हम अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकें।

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