मंथन पत्रिका

दोहों का रहस्य -7 बाहरी पूजा का वास्तविक अर्थ जानें : आडंबर और दिखावे की आलोचना करना जरूरी 


दोहे भारतीय साहित्य की एक महत्वपूर्ण विधा हैं, जो संक्षिप्त और सटीक रूप में गहरी बातें कहने के लिए प्रसिद्ध हैं। दोहे में केवल दो पंक्तियां होती हैं, लेकिन इन पंक्तियों में निहित अर्थ और संदेश अत्यंत गहरे होते हैं। एक दोहा छोटा सा होता है, लेकिन उसमें जीवन की बड़ी-बड़ी बातें समाहित होती हैं। यह संक्षिप्तता के साथ गहरे विचारों को व्यक्त करने का एक अद्भुत तरीका है। दोहों का रहस्य कॉलम की सातवीं कड़ी में पढ़ें मंजू अजमेरा का लेख…


“माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर।

कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।”


यहां दिखावा और आडंबरपूर्ण धार्मिक क्रियाओं की आलोचना की गई है। संसार में बहुत लोग माला फेरते-फेरते अपनी पूरी उम्र बिता देते हैं, लेकिन उनका मन कभी भी शुद्ध और सच्ची भक्ति में ईश्वर के प्रति समर्पित नहीं होता। बाहरी पूजा-पाठ और दिखावटी भक्ति तब तक अर्थहीन है, जब तक मन का अहंकार, लोभ और बुराइयों का “मनका” नहीं फेरते।

हमें सच्ची भक्ति और आंतरिक परिवर्तन पर बल देना है। अत: ईश्वर को पाने के लिए बाहरी कर्मकांडों के बजाय मन को शुद्ध करना और सच्चाई के मार्ग पर चलना आवश्यक है। हमें आत्मा की पवित्रता और वास्तविक धर्म की ओर बढ़ते जाना है। धर्म बाहरी दिखावा के लिए नहीं, आत्मा के कल्याण के लिए करना ही परम आवश्यक है।

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