मंथन पत्रिका

दोहों का रहस्य -1 परोपकार का असली महत्व जानना जरूरी है : दान, भोग या नाश, आप किसमें कर रहे हैं धन का उपयोग


दोहे भारतीय साहित्य की एक महत्वपूर्ण विधा हैं, जो संक्षिप्त और सटीक रूप में गहरी बातें कहने के लिए प्रसिद्ध हैं। दोहे में केवल दो पंक्तियां होती हैं, लेकिन इन पंक्तियों में निहित अर्थ और संदेश अत्यंत गहरे होते हैं। एक दोहा छोटा सा होता है, लेकिन उसमें जीवन की बड़ी-बड़ी बातें समाहित होती हैं। यह संक्षिप्तता के साथ गहरे विचारों को व्यक्त करने का एक अद्भुत तरीका है। आज से श्रीफल जैन न्यूज दोहों का रहस्य नाम से विशेष कॉलम शुरू कर रहा है। इसकी पहली कड़ी में पढ़ें मंजू अजमेरा का लेख…


             बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।                पंथी को छाया नहीं, फल लगे अति दूर।

खजूर का वृक्ष बहुत बड़ा होता है, लेकिन उसका बड़ा होना किसी भी तरह उपयोगी नहीं है। उसके फल किसी भी राहगीर की भूख शांत करने के काम नहीं आते और अंततः वे पेड़ पर सड़ जाते हैं। इसी तरह, यदि आप अत्यधिक धनवान हैं, परंतु आपके धन से किसी को भी फायदा नहीं होता, तो वह व्यर्थ है।

धन की तीन गतियां हैं: दान, भोग, और नाश। यदि आपने अपने धन का दान नहीं किया, तो आपको भोगना होगा, और यदि वह भी नहीं किया, तो वह नाश हो जाएगा। दान सबसे बड़ा पुण्य माना जाता है। अतः परोपकार करके मनुष्य को अपने जीवन को सफल बनाने में लग जाना चाहिए, अन्यथा अंत में पछताना पड़ेगा।                                   परोपकार, दान और पुण्य करके ही मनुष्य अपने जीवन को सार्थक बना सकता है। तभी धनवान होना वास्तव में अर्थपूर्ण होगा। मनुष्य जीवन मिला है, तो दान और पुण्य करके इसे सार्थक कर लेना चाहिए।

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