समाचार

आज भी पूजे जाते हैं श्रद्धा और भक्ति के प्रतीक के रूप में : आचार्य श्री धर्म सागर जी महाराज का 112वां अवतरण दिवस 12 जनवरी को


आचार्य श्री 108 धर्म सागर जी महाराज का 112वां अवतरण दिवस 12 जनवरी 2025 को मनाया जा रहा है। उनका जीवन आचार्य पद की प्राप्ति, 76 दीक्षाएँं और 43 वर्षों का साधु जीवन प्रेरणा से भरपूर रहा। वे 1987 में सीकर, राजस्थान में समाधि प्राप्त हुए और आज भी श्रद्धा का प्रतीक हैं। पढ़िए राजेश पंचोलिया की विशेष रिपोर्ट ।


इंदौर। तृतीय पट्टाचार्य धर्मशिरोमणी आचार्य श्री 108 धर्म सागर जी महाराज का 112वां अवतरण दिवस 12 जनवरी को मनाया जा रहा है। उनका जन्म 12 जनवरी 1914 को पौष शुक्ला पूर्णिमा के दिन हुआ था। इस विशेष अवसर पर हम उन्हें भावभीनी विनयांजलि अर्पित करते हैं।

जीवन परिचय

नाम: श्री चिरंजी लाल जी, श्री कजोडी मल जी

जन्म तिथि: 12 जनवरी 1914, पोष शुक्ला पूर्णिमा, विक्रम संवत 1970

जन्म स्थान: गंभीरा, राजस्थान

पिता: श्री बख्तावर मल जी

माता: श्रीमती उमराव देवी जी

आध्यात्मिक शिक्षा और दीक्षा

आचार्य श्री 108 धर्म सागर जी महाराज ने 15 वर्ष की आयु में आचार्य श्री 108 चंद्र सागर जी महाराज से व्रत-नियमों की शुरुआत की। उन्होंने शुद्ध जल ग्रहण का नियम अपनाया और बाद में आचार्य श्री 108 वीर सागर जी महाराज से दीक्षा प्राप्त की।

क्षुल्लक दीक्षा: चैत्र कृष्णा 7, संवत 2000, आचार्य श्री 108 चंद्र सागर जी महाराज से, स्थान: बालूज, महाराष्ट्र

ऐलक दीक्षा: वैशाख माह, संवत 2007, आचार्य श्री 108 वीर सागर जी महाराज से, स्थान: फुलेरा, राजस्थान

मुनि दीक्षा: कार्तिक शुक्ला चतुर्दशी, संवत 2008, आचार्य श्री 108 वीर सागर जी महाराज से, स्थान: फुलेरा, राजस्थान

आचार्य पद की प्राप्ति

आचार्य श्री 108 धर्म सागर जी महाराज को 24 फरवरी 1969 को तृतीय पट्टाधीश आचार्य पद की प्राप्ति हुई। यह अवसर श्री महावीर जी, राजस्थान में हुआ। उसी दिन नूतन आचार्य श्री ने 11 शिष्यों को दीक्षा प्रदान की:

1. मुनि श्री महेंद्रसागर जी

2. श्री अभिनंदन सागर जी

3. श्री संभव सागर जी

4. श्री शीतलसागर जी

5. श्री यतीन्द्रसागर जी

6. श्री वर्धमान सागर जी

7. आर्यिका श्री गुणमति जी

8. श्री विद्यामति जी

9. क्षुल्लक श्री गुणसागर जी

10. श्री बुद्धिसागर जी

11. क्षुल्लिका श्री अभयमति जी

प्रदत्त दीक्षाएं

आचार्य श्री 108 धर्म सागर जी महाराज ने कुल 76 दीक्षाएँ प्रदान कीं। इसके अंतर्गत 32 मुनि दीक्षाएँ, 21 आर्यिका दीक्षाएँ, और अन्य दीक्षाएँ शामिल हैं।

प्रमुख वर्तमान शिष्य

1. आचार्य श्री वर्धमान सागर जी (पंचम पट्टाधीश, 1969)

2. मुनि श्री अमित सागर जी (1984, अजमेर)

3. आर्यिका श्री शुभमति जी (1972, अजमेर)

4. आर्यिका श्री श्रुतमति जी (1974, दिल्ली)

5. आर्यिका श्री शिवमति जी (1974, दिल्ली)

6. आर्यिका श्री सुरत्नमति जी (1976, मुजफ्फरनगर)

मुनि दीक्षा के प्रमुख नाम

1. मुनि श्री पुष्पदंत सागर जी (1965, इंदौर)

2. श्री दयासागर जी

3. श्री निर्मल सागर जी

4. श्री संयम सागर जी

5. श्री अभिनंदन सागर जी

6. श्री शीतल सागर जी

7. श्री महेंद्रसागर जी

8. श्री वर्धमान सागर जी

9. श्री चारित्र सागर जी

10. श्री भद्रसागर जी

11. श्री बुद्धिसागर जी

आर्यिका दीक्षा  

आचार्य श्री 108 धर्म सागर जी महाराज ने कुल 21 आर्यिका दीक्षाएं प्रदान कीं। इनमें प्रमुख आर्यिका दीक्षाएं इस प्रकार हैं:

1. प्रथम आर्यिका श्री अनंत मति जी (1966, खुरई)

2. आर्यिका श्री अभयमति जी

3. आर्यिका श्री विद्यमति जी

4. आर्यिका श्री संयममति जी

5. आर्यिका श्री विमलमति जी

6. आर्यिका श्री सिद्धमति जी

7. आर्यिका श्री जयमति जी

8. आर्यिका श्री शिवमति जी

9. आर्यिका श्री नियममति जी

10. आर्यिका श्री समाधिमति जी

11. आर्यिका श्री निर्मलमति जी

12. आर्यिका श्री समयमति जी

13. आर्यिका श्री गुणमति जी

14. आर्यिका श्री प्रवचनमति जी

15. आर्यिका श्री श्रुतमति जी

16. आर्यिका श्री सुरत्नमति जी

17. आर्यिका श्री शुभमति जी

18. आर्यिका श्री धन्यमति जी

19. आर्यिका श्री चेतनमति जी

20. आर्यिका श्री विपुलमति जी

21. आर्यिका श्री रत्नमति जी

ऐलक दीक्षा

1. श्री उत्तम सागर जी, साबला

क्षुल्लक दीक्षा 

आचार्य श्री 108 धर्म सागर जी महाराज ने 17 क्षुल्लक दीक्षाएँ भी प्रदान कीं, जिनमें प्रमुख नाम हैं:

1. श्री दयासागर जी

2. श्री निर्मल सागर जी

3. श्री संयम सागर जी

4. श्री बोधसागर जी

5. श्री बुद्धि सागर जी

6. श्री भूपेंद्रसागर जी

7. श्री उत्तम सागर जी

8. श्री निर्वाणसागर जी

9. श्री गुणसागर जी

10. श्री वैराग्य सागर जी

11. श्री पूरण सागर जी

12. श्री संवेगसागर जी

13. श्री सिद्ध सागर जी

14. श्री योगेंद्रसागर जी

15. श्री करुणासागर जी

16. श्री देवेंद्र सागर जी

17. श्री परमानंद सागर जी

क्षुल्लिका दीक्षा  

आचार्य श्री 108 धर्म सागर जी महाराज ने 5 क्षुल्लिका दीक्षाएँ भी दीं, जिनमें प्रमुख नाम हैं:

1. श्री दया मति जी (1964, खुरई)

2. श्री यशोमति जी

3. श्री बुद्धिमति जी

4. श्री अनंतमति जी

विशेष जानकारी  

आचार्य श्री शांति सागर जी छाणी की ग्रहस्थ अवस्था की बहन थीं, और उनके द्वारा प्रदान की गई दीक्षाएं इन साधुओं के क्रम में महत्वपूर्ण हैं।

कुल मिलाकर, आचार्य श्री 108 धर्म सागर जी महाराज ने 76 दीक्षाएं प्रदान कीं।

संस्मरण:

1. अभिनंदन ग्रंथ नहीं किया, वरन फटकार लगाई।

2. कंकड़ से माला फेरते थे, माला की रखवाली कौन करे।

3. संवत 2018 शाहगढ़, MP चातुर्मास में मधुमक्खी के हमले का पूर्वाभास।

4. सागर के निकट विश्राम स्थल पर सर्प पूरी रात पटिये के नीचे रहा।

5. संवत 2016 वीर गांव, अजमेर में श्रावक का दर्द आशीर्वाद से ठीक किया।

6. धर्म के बिना ज्ञान की कोई कीमत नहीं, और बिना ज्ञान के धर्म भी टिक नहीं सकता।

7. साधु के चार गुण: इन्द्रिय, आहार, कषाय और निंद्रा पर विजय।

8. आचार्य पद से साधु ही ठीक थे, दिनभर नमोस्तु करने वालों को आशीर्वाद देने में समय हो जाता था।

9. सन 1975 सहारनपुर चातुर्मास में आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत लेने वाले को पिच्छी देने का सौभाग्य।

10. सिंह की दहाड़ (संवत 2075 बिजोलिया) रास्ते में नदी किनारे संघ का विश्राम, नदी में पानी पीकर सिंह दहाड़ कर चला गया।

11. चश्मे का परिग्रहण नहीं किया।

12. सिंहासन पर नहीं बैठे।

विशेष:

आचार्य श्री धर्म सागर जी के कई शिष्य थे। उनमें से कुछ प्रमुख शिष्य वर्तमान आचार्य श्री विद्या सागर जी के माता-पिता और दोनों बहनों ने सन 1976 में मुजफ्फर नगर में दीक्षा ली। वे क्रमशः मुनि श्री मल्ली सागर जी, आर्यिका श्री समयमति जी, आर्यिका श्री नियममति जी, और आर्यिका श्री प्रवचन मति जी बने।

संयोग:

– आचार्य श्री धर्म सागर जी से 1982 में क्षुल्लक जी ने दीक्षा ली, और उनका नाम मुनि श्री जिनेंद्र सागर जी रखा गया।

– श्रीमती रतनी देवी और श्री रतन लाल जी ने भी आर्यिका दीक्षा ली और आर्यिका श्री सिद्ध मति जी बने।

– श्री रतनलाल जी के पुत्र श्री नव रत्न मल जी ने 10 फरवरी 2000 को आचार्य श्री वर्धमान सागर जी से मुनि दीक्षा ली और मुनि श्री देवेंद्र सागर जी बने।

साधु जीवन:

आचार्य श्री धर्म सागर जी ने 43 वर्षों तक साधु जीवन व्यतीत किया, जिनमें चातुर्मास के विभिन्न स्थानों पर रहे:

– क्षुल्लक अवस्था में चातुर्मास:

1944 से 1950 तक कई स्थानों पर चातुर्मास किए, जैसे अडूल, झालरापाटन, रामगंजमंडी, सुजानगढ़ आदि।

– मुनि अवस्था में चातुर्मास:

1951 से 1968 तक विभिन्न स्थानों पर मुनि रूप में चातुर्मास किए, जैसे फुलेरा, नागौर, जयपुर, बिजोलिया, अजमेर आदि।

– आचार्य पद में चातुर्मास:

1969 से 1986 तक आचार्य पद पर रहते हुए विभिन्न स्थानों पर चातुर्मास किए, जैसे जयपुर, टोंक, देहली, सहारनपुर, उदयपुर, बांसवाड़ा आदि।

समाधि:

आचार्य श्री धर्म सागर जी महाराज ने वैशाख कृष्ण 9 नवमी, विक्रम संवत 2044 (1987) को श्री मुनिसुब्रतनाथ भगवान के केवलज्ञान कल्याणक स्थल पर सीकर, राजस्थान में समाधि ली।

आप को यह कंटेंट कैसा लगा अपनी प्रतिक्रिया जरूर दे।
+1
5
+1
0
+1
0
× श्रीफल ग्रुप से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें