चर्या शिरोमणि पूज्य आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य जैन मुनि श्री सुयश सागर जी महाराज एवं क्षुल्लक श्रेय सागर जी महाराज ससंघ का मंगल विहार तीर्थ नगरी सम्मेदशिखर जी से दुर्ग के लिए 10 दिसम्बर को हुआ। मधुबन से बहता पानी रमता जोगी की कहावत के अनुसार, मुनि श्री ने एक स्थान से दूसरे स्थान तक पद विहार करते हुए मंगल विहार किया। पढ़िए राजकुमार अजमेरा की रिपोर्ट…
झुमरीतिलैया। चर्या शिरोमणि पूज्य आचार्य श्री 108 विशुद्ध सागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य जैन मुनि श्री सुयश सागर जी महाराज एवं क्षुल्लक श्रेय सागर जी महाराज ससंघ का मंगल विहार तीर्थ नगरी सम्मेदशिखर जी से दुर्ग के लिए 10 दिसम्बर को हुआ। मधुबन से बहता पानी रमता जोगी की कहावत के अनुसार, मुनि श्री ने एक स्थान से दूसरे स्थान तक पद विहार करते हुए मंगल विहार किया। विहार से पूर्व, मुनि श्री ने सम्मेदशिखर जी में विराजित आचार्य श्री संभव सागर जी महाराज, आचार्य श्री वैराग्य नंदी जी महाराज, आचार्य श्री विहर्ष सागर जी महाराज सहित सभी मुनिराजों का आशीर्वाद प्राप्त किया। अपने मधुबन के अंतिम प्रवचन में मुनि श्री ने कहा, “यह शाश्वत भूमि सिद्धों की भूमि है। हम पंचम काल में मोक्ष तो नहीं जा सकते, लेकिन इस भूमि में आने और सिद्धों की आराधना करने से भावों में विशुद्धि आती है और मोक्ष मार्ग की ओर मनुष्य बढ़ता है।” मुनि श्री ने यह भी बताया कि 2024 के हजारीबाग के चातुर्मास में 1008 सिद्ध चक्र महामंडल विधान हुआ और कोडरमा में भी विधान की रचना हुई, जिसमें वहां के भक्तों ने भक्ति भाव के साथ विधान किया। मुनि श्री ने सभी भक्तों से कहा कि सिद्धों की आराधना हेतु सिद्धचक्र महामंडल की पूजा और सम्मेदशिखर की वंदना अपने जीवन में जरूर करनी चाहिए और अपने कल्याण की ओर बढ़ना चाहिए। सभी भक्तों ने गुरुवर की वाणी सुनकर अपने जीवन को सार्थक बनाने का संकल्प लिया और कहा कि गुरुवर की वाणी हमें एक नई सीख दे रही है।
अंत में मुनि श्री का मंगल आशीर्वाद सभी भक्तों को प्राप्त हुआ। मंगल विहार में हजारीबाग समाज के सभी पदाधिकारियों, विक्की जैन, विजय जैन, कोडरमा मीडिया प्रभारी राज कुमार अजमेरा, रांची के गुरुभक्त नरेश जैन, हजारीबाग, दुर्ग, गया, कुनकुरी, बगीचा, छत्तीसगढ़, झारखंड से आए भक्तों सहित कई भक्त इस विहार में शामिल हुए।रात्रि विश्राम धावाटांड में हुआ। अगले दिन आहार चर्या ईसरी बाजार में हुई।
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