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नीलांजना का नृत्य देख ऋषभदेव को हुआ संसार से वैराग्यः पंचकल्याणक महोत्सव बानपुर का तीसरा दिन


 पंचकल्याणक महोत्सव बानपुर में तीसरे दिन,श्रद्धा पूर्वक मनाया। तप कल्याणक में श्रद्धालु उमड़े। नीलांजना का नृत्य देख ऋषभदेव को संसार से वैराग्य हुआ। इस अवसर पर दीक्षा विधि हुई। पढ़िए ललितपुर से राजीव सिंघई की यह खबर…


ललितपुर। शांतिनाथ अतिशय क्षेत्र बानपुर में आचार्य श्री विशुद्धसागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य श्रमण मुनि श्री सुप्रभसागर जी महाराज, श्रमण मुनि श्री प्रणतसागर जी महाराज, आर्यिका श्री विजिज्ञासामती माता जी ससंघ के सान्निध्य में चल रहे श्री आदिनाथ श्रीमज्जिनेंद्र पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव में बुधवार को तपकल्याणक महोत्सव श्रद्धा के साथ मनाया गया।

दीक्षा कल्याणक विधि विधान के साथ हुआ। जिसमें सर्वप्रथम सुबह 6.30 बजे से अभिषेक, शांतिधारा,जन्मकल्याणक पूजन, हवन हुआ।

इन्होंने लिया पंचकल्याणक धर्मलाभ 

पंचकल्याणक महोत्सव के पात्र माता-पिता वीरेंद्रकुमार जैन, सौधर्म इंद्र सुनील कुमार-प्रीति सुंदरपुर, कुबेरइंद्र इंद्रकुमारजैन-आरती बानपुर, महायज्ञनायक नितिन जैन-नम्रता जैन टीकमगढ़, यज्ञनायक रवींद्रकुमार-शोभा बानपुर, ईशान इंद्र राजेश जैन-राजुल सिंघई बानपुर, सानतइंद्र सुनील कुमार-आभा सिंघई बानपुर, माहेंद्र इंद्र सुनील जैन-ममता सिंघई बानपुर, लांतवइंद्र पवन जैन-साधना सिंघई बानपुर, ध्वजारोहण कर्ता नायक देवेंद्रकुमार जैन आदि ने श्रद्धा भक्ति के साथ भाग लिया।

इस मौके पर समाज श्रेष्ठी जनों द्वारा मुनिश्री का पाद प्रक्षालन एवं शास्त्र भेंट किया गया। दीप प्रज्वलन अतिथियों द्वारा किया गया।

शरीर क्षण भंगुर है चरित्र को चमकाना

सुबह 9 बजे आध्यात्मिक संत, मुनि श्री सुप्रभसागर जी महाराज ने अपनी दिव्य देशना में संबोधित करते हुए कहा कि चमकते शरीर को पाकर अभिमान मत करना, यह क्षण भंगुर है, अपने चरित्र को चमकाना। पाषाण में संस्कार दे दिए जाएं तो तीर्थ बन जाते हैं और इंसान को संस्कार दे दिए जाएं तो तीर्थंकर बन जाते हैं।

दिखावा न करें, निज को देखें

संतश्री ने कहा कि दिखावे, प्रदर्शन और मठाधीश बनने के लिए कभी भी संत, साधु मत बनना, निज को देखने के लिए संत-मुनि बनना। संसार का सुख-दुःख कर्म के रूप में है। जब वैराग्य आता है तो संसार के सारे सुख नश्वर होते हैं। जैसे आज आपने देखा आदिनाथ को कैसे संसार से वैराग्य हो गया। उनके पास संसार के सारे वैभव हैं लेकिन जब उन्हें वैराग्य आया तो सारे वैभव को त्याग कर दिगंबरत्व को धारण करते हैं। संसार का यह रूप, सम्पदा क्षणिक है, अस्थिर है, किन्तु आत्मा का रूप आलौकिक है, आत्मा की संपदा अनंत अक्षय है।

महाराजा नाभिराय का दरबार लगाया 

दोपहर में महाराजा नाभिराय का दरबार लगाया गया। जिसमें आदिकुमार का राज्याभिषेक, राजतिलक, राज्य व्यवस्था, 32 मुकुटबद्ध राजाओं द्वारा भेंट समरोण, ब्राह्मी-सुंदरी को शिक्षा एवं असि, मसि, कृषि, विद्या आदि षट्कर्म, दंडनीति को महोत्सव के पात्रों ने दर्शाया।

युवराज भरत बाहुबली का राज्य तिलक आदि कार्यक्रम हुए

नीलांजना का नृत्य देखकर आदिनाथ को वैराग्य की उत्पत्ति हो जाती है। लौकांतिक देवों द्वारा स्तवन और दीक्षा वन प्रस्थान को देखकर श्रद्धालु भाव-विभोर हो उठते हैं। युवराज भरत बाहुबली व बाहुबली राज्य तिलक, दीक्षा अभिषेक, दीक्षा वन आगमन, दीक्षा कल्याणक संस्कार विधि की गई।

विधान की क्रियाएं ब्र. साकेत भैया ने कराईं

आर्यिका विजिज्ञासामती माता जी ने अपने संबोधन में संसार की असारता बताते हुए जीवन को क्षणभंगुर बताया।

आयोजन को सफल बनाने में महोत्सव की आयोजन समिति व सकल जैन समाज, विभिन्न स्वयंसेवी संगठनों का उल्लेखनीय योगदान रहा। इस दौरान सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे। विधि विधान की क्रियाएं ब्र. साकेत भैया के मार्गदर्शन में प्रतिष्ठाचार्य पंडित मुकेश शास्त्री गुड़गांव, प्रतिष्ठाचार्य पंडित अखिलेश शास्त्री ने संपन्न कराईं।

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