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सुधीर जैन 50 वर्षों से कर रहे डाक टिकट, अखबार, माचिस आदि का संग्रह : तीन बार लिम्का अवॉर्ड से किया जा चुका सम्मानित 


सुधीर जैन पिछले 50 वर्षों से डाक टिकट, पोस्टकार्ड, सिक्के, करेंसी नोट, अखबार, माचिस आदि का संग्रह कर रहे हैं। उनके संग्रह को कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनियों में पुरस्कृत किया जा चुका है। साथ ही उन्हें डाक टिकट, माचिस और अखबार के संग्रह के लिए तीन बार लिम्का अवॉर्ड से सम्मानित किया गया है। उनकी विशेष उपलब्धियों में कई संपादकीय और पत्रिकाओं में नियमित लेख शामिल हैं। पढ़िए संपादक रेखा जैन की विशेष स्टोरी…


इंदौर। सुधीर जैन पिछले 50 वर्षों से डाक टिकट, पोस्टकार्ड, सिक्के, करेंसी नोट, अखबार, माचिस आदि का संग्रह कर रहे हैं। उनके संग्रह को कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनियों में पुरस्कृत किया जा चुका है। साथ ही उन्हें डाक टिकट, माचिस और अखबार के संग्रह के लिए तीन बार लिम्का अवॉर्ड से सम्मानित किया गया है। उनकी विशेष उपलब्धियों में कई संपादकीय और पत्रिकाओं में नियमित लेख शामिल हैं। जैन फिलैटेलिक कांग्रेस ऑफ इंडिया के कार्यकारी सदस्य हैं जो फिलैटली संग्रहकर्ताओं का राष्ट्रीय संघ है। साथ ही, जैन धर्म पर डाक टिकट संग्रहकर्ताओं के राष्ट्रीय निकाय, जैन धर्म फिलैटली समूह के संरक्षक भी हैं।

भारत का सबसे पहला डाक टिकट 1852 में जारी हुआ, जिसे सिंध डाक कहते हैं। सुधीर जैन ईस्ट इंडिया कंपनी के समय से जारी पुराने डाक टिकटों का संग्रह करते आ रहे हैं। इसके अतिरिक्त पोस्टकार्ड, अखबार, सिक्के, करेंसी नोट, अखबार, माचिस, लिफाफे भी संग्रहित किए हैं। डाक टिकट की संख्या को बयां करना मुश्किल है क्योंकि वे लाखों की संख्या में हैं, हर देश के डाक टिकट हैं और लगभग सभी विषयों पर जैसे महापुरुष, भवन, वृक्ष, जानवर, फूल, पौधे आदि पर संग्रह किया गया है। करीब 60-70 विदेशी और दस हजार भारत की विभिन्न प्रकार की माचिस का संग्रह (खाली माचिस यानी तीली निकालकर) हैं।

साथ ही पुराने ताले भी संग्रह किए गए हैं। करंसी का कलेक्शन भी है। करेंसी में देश महत्वपूर्ण नहीं होता बल्कि उसका यूनिक होना, एसा नोट जिसके एक तरफ छपाई है और दूसरी तरफ नहीं, नोट पर नंबर नहीं है या डेढ़ा नंबर छप गया है, मिस प्रिंट वाले नोट, स्पेशल नंबर वाले जैसे 1111, 2222, दस लाख, एक लाख, दो लाख नंबर वाले कई नोट हैं। करीब साढ़े ग्यारह सौ (1150) पुराने व नए बैंक चेक एकत्रित किए हैं जो अलग-अलग बैंक के चैक हैं।

सभी बैंक का एक-एक चैक संग्रह किया है। जिसके तहत प्राइवेट, रूरल, ग्रामीण, को-ओपरेटिव बैंक, साथ ही कुछ विदेशी बैंक भी शामिल हैं। सुधीर जैन का जन्म 7 अक्टूबर 1954 को पिता निर्मल माता श्रीमती सरोज जैन के यहां सतना में हुआ। उन्होंने एलएलबी और मास्टर्स ऑफ जर्नलिज्म की शिक्षा ग्रहण की है।

1830 से शुरू किया अखबार का संग्रह, कई महत्वपूर्ण घटनाओं के अखबार भी हैं 

अखबार में सबसे पुराना 1830 का कलेक्शन है। इसमें तो महारथ हासिल की है। करीब पांच हजार विभिन्न तरह के टाइटल, सौ से ज्यादा देशों के अखबार हैं और करीब-करीब 70-80 भाषाओं के अखबार हैं। इसके अलावा विदेशों के भी अलग-अलग देशों की भाषाओं के एक-एक अखबार उपलब्ध हैं। खास बात ये है कि महत्वपूर्ण तिथियों और घटनाओं के अखबार बहुतायत में एकत्रित किए गए हैं। जब महात्मा गांधी का निधन हुआ, जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी, लाल बहादुर शास्त्री, जयप्रकाश नारायण, केनेटी का मर्डर, जब पहली बार मनुष्य ने चांद पर कदम रखा, उसके दूसरे दिन का अखबार है। हर भाषा और हर देश का अखबार संग्रह और बढ़ाना चाहते हैं।

भारत में भाषाएं बहुत हैं और छोटे-छोटे भाषाओं के अखबार भी हैं। अब तो अखबार निकलना कम हो गया है लेकिन पुराने अखबारों में जैसे बघेलखंडी एक भाषा है, छत्तीसगढ़ी भाषा के इक्का-दुक्का अखबार हैं जो बंद हो चुके हैं उनका भी संग्रह किया है। इसके अलावा जो अखबार विलुप्त हो रहे हैं उनके भी एक-एक या दो-दो अंक इकट्ठे करने की इच्छा उन्होंने जाहिर की है।

पिता से मिली प्रेरणा

सुधीर की कहते हैं कि उनके पिता निर्मल को डाक टिकट का संग्रह करते थे, तब से मेरी रुचि बड़ी और पिता की विरासत को आगे बढ़ा।

‘अखबार नामा’ नामक एक पुस्तक का 2022 में किया विमोचन

‘अखबार नामा’ नामक एक पुस्तक भी उन्होंने लिखी है जिसका 2022 में विमोचन किया गया था। इसके अंतर्गत सतना जिले में अभी तक करीब 250 अखबार प्रकाशित किए जा चुके हैं जिसमें से अधिकांश बंद हो गए हैं। उन सभी को एकत्रित करके टाइटल का फोटो, संपादक का नाम, कब निकला, कब बंद हुआ आदि का इस किताब में पूरा विवरण दिया गया है।

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