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अष्टाह्निका पर्व के अवसर पर नंदीश्वर द्वीप मंडल विधान प्रारम्भ : आर्यिका सरस्वती माता जी के सानिध्य में हो रहा यह विधान 


चातुर्मासरत आर्यिका सरस्वती माता जी के सानिध्य में सनावद में नंदीश्वर द्वीप मंडल विधान 8 नवंबर शुक्रवार से प्रारंभ हुआ। जो कि 15 नवम्बर तक आयोजित होगा। अष्टाह्निका महापर्व के अवसर पर अत्यंत श्रद्धा और भक्ति से मनाया जायेगा। पढ़िए सन्मति जैन की रिपोर्ट…


सनावद। चातुर्मासरत आर्यिका सरस्वती माता जी के सानिध्य में नंदीश्वर द्वीप मंडल विधान 8 नवंबर शुक्रवार से प्रारंभ हुआ। जो कि 15 नवम्बर तक आयोजित होगा। अष्टाह्निका महापर्व के अवसर पर अत्यंत श्रद्धा और भक्ति से मनाया जायेगा। यह विधान विशेष तौर पर अष्टाह्निका पर्व में किया जाता है, अष्टाह्निका पर्व वर्ष में 3 बार कार्तिक, फाल्गुन एवं आषाढ़ मास में आते हैं। इन पर्वों के अलावा अन्य समय में जो भी विशुद्ध भावों से नंदीश्वर विधान करता है वह देवगति में जाकर साक्षात् ही जाकर पूजा विधान करता है। उक्त उद्गार नगर में विराजमान आर्यिका सरस्वती माताजी श्री दिंगबर जैन पार्श्वनाथ बड़ा मंदिर जी में विधान प्रारम्भ के अवसर पर कहे।

52 अकृतिम चैत्यालयों में विराजमान 5616 जिन बिंबो की पूजा करेंगे

सन्मति जैन काका ने बताया कि कार्तिक सुदी सप्तमी से कार्तिक सुदी पूर्णिमा तक चलने वाले अष्ट दिवसीय पर्व में श्रद्धालुजन नंदीश्वर द्वीप के 52 अकृतिम चैत्यालयों में विराजमान 5616 जिन बिंबो की पूजा अर्चना कर मोक्ष सुख प्राप्ति की कामना करेंगे। इस अवसर पर प्रतिदिन प्रातः 7 बजे से पंचामृत अभिषेक, शांतिधारा, सामूहिक पूजन दोपहर 1.30 बजे से मंडल जी की सामूहिक पूजन शाम 7.30 बजे से आचार्य भक्ति, गुरु वंदना मंगल आरती भक्ति धार्मिक क्लास का आयोजन किया जायेगा। आठ दिनों तक चलने वाले नंदीश्वर द्वीप मंडल विधान की पूजन में प्रथम दिन अर्घ्य समर्पित किए गए।

इस विधान के करने से लोगों को सम्यक श्रद्धा के फल की प्राप्ति होती है

आर्यिका अनंत मति माताजी ने अपने उद्भबोधन में कहा कि जैन दर्शन के अनुसार नंदीश्वर द्वीप में जाकर मनुष्य अकृतिम जिनबिंबो की पूजा नहीं कर सकते। अतः भरत क्षेत्र में धार्मिक श्रद्धालु नंदीश्वर द्वीप की रचना कर अर्घ्य चढ़ाकर भाव सहित जिनेन्द्र देव के बिम्बों की पूजन कर धर्म लाभ लेते हैं। अष्ट दिवसीय पर्व के दिनों में श्रद्धालु जन विशेष रूप से व्रत, नियम, संयम का पालन करते हैं तथा यथाशक्ति एकासन, उपवास कर आत्मा के सच्चे स्वरूप का चिंतन करते हैं। आर्यिका महोत्सव मति माताजी ने बताया कि सरल, सहज एवं चित्ताकर्षक तथा भक्ति भाव से आपूरित इस विधान के करने से लोगों को सम्यक श्रद्धा के फल की प्राप्ति होती है।

इस अवसर पर सभी समाजजन उपस्थित रहे।

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