मूक-बधिरों के समक्ष कविता एवं अन्य साहित्यिक रचनाओं की प्रस्तुति का प्रथम सफल प्रयोग देश के प्रसिद्ध कवि, गीतकार और लघुकथाकार नरेन्द्रपाल जैन द्वारा किया गया। मेवाड़ – वागड़ क्षेत्र से जुड़े जैन ने इंदौर के एक मूक-बधिर विद्यालय में किशोरों और युवाओं के समक्ष जीवन के संघर्ष, सफलता, उत्साह, पारिवारिक मूल्यों और पर्यावरण संरक्षण पर अपनी रचनाओं की प्रस्तुति दी। पढ़िए सचिन गंगावत विशेष रिपोर्ट…
ऋषभदेव। मूक-बधिरों के समक्ष कविता एवं अन्य साहित्यिक रचनाओं की प्रस्तुति का प्रथम सफल प्रयोग देश के प्रसिद्ध कवि, गीतकार और लघुकथाकार नरेन्द्रपाल जैन द्वारा किया गया। मेवाड़ – वागड़ क्षेत्र से जुड़े जैन ने इंदौर के एक मूक-बधिर विद्यालय में किशोरों और युवाओं के समक्ष जीवन के संघर्ष, सफलता, उत्साह, पारिवारिक मूल्यों और पर्यावरण संरक्षण पर अपनी रचनाओं की प्रस्तुति दी। इन रचनाओं को विद्यालय के अनुदेशकों ने अपनी सांकेतिक भाषा में व्यक्त किया, जिससे यह रचनाएँ दिव्यांग बच्चों और युवाओं तक प्रभावी रूप से पहुंच सकीं। इस प्रयोग में जहां हास्य रचनाओं पर बच्चों के चेहरे पर मुस्कान आई, वहीं गंभीर रचनाओं ने उनके चेहरों पर गम्भीरता भी उत्पन्न की।
जैन का यह प्रयोग मूक-बधिरों के लिए साहित्य को और भी सुलभ बनाने की दिशा में एक अनोखा प्रयास है। इस सफल प्रयोग के बाद अब जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में भी मूक-बधिरों के लिए कविता और साहित्य की रचनाओं की प्रस्तुति दी गई। यह अत्यंत खुशी की बात है कि जो लोग राग और ध्वनियों को नहीं सुन सकते, उनके लिए अब सांकेतिक भाषा के माध्यम से कविता के शब्द उनके दिलों तक पहुंचने लगे हैं। इस प्रयोग के जनक कवि नरेन्द्रपाल जैन का कहना है कि यह पहल न केवल देशभर में बल्कि पूरे विश्व में फैलनी चाहिए।
उल्लेखनीय है कि जैन ने जन्मान्ध बच्चों, अनाथों और वृद्धाश्रमों में बुजुर्गों के समक्ष भी अपनी रचनाओं की प्रस्तुति दी, जिससे उनके चेहरों पर मुस्कान आई और जीवन के संघर्षों के बावजूद जीने की प्रेरणा मिली। जैन की कविता “आदमी की औकात” को राष्ट्र संतों ने भी अपने उपदेशों में प्रस्तुत किया है, जो आज भी एक कालजयी रचना मानी जाती है।
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