मुनि श्री सुधासागर महाराज ने प्रवचन में कहा कि परेशानियों में, जिंदगी को संकटमय व्यतीत इतना ज्यादा खतरा नहीं है लेकिन जब जिंदगी का कोई संकट दूर कर देता है तो उसके उपकार का ऋण बहुत खतरनाक होता है। जैनाचार्यों ने अंतिम साधक को कहा कि तुम संकट दूर करने की मत सोचो, न किसी से कराओ, तुम बहुत धर्मात्मा जीव हो, तुम्हारी एक पुकार पर सारे देवता हाथ जोड़कर खड़े हो जाएंगे तुम्हारा इतना पुण्य है। पढ़िए राजीव सिंघई मोनू की रिपोर्ट…
सागर। परेशानियों में, जिंदगी को संकटमय व्यतीत इतना ज्यादा खतरा नहीं है लेकिन जब जिंदगी का कोई संकट दूर कर देता है तो उसके उपकार का ऋण बहुत खतरनाक होता है। जैनाचार्यों ने अंतिम साधक को कहा कि तुम संकट दूर करने की मत सोचो, न किसी से कराओ, तुम बहुत धर्मात्मा जीव हो, तुम्हारी एक पुकार पर सारे देवता हाथ जोड़कर खड़े हो जाएंगे तुम्हारा इतना पुण्य है। यह बात मुनि श्री सुधासागर महाराज ने धर्मसभा में कही। उन्होंने कहा कि तुम्हारी पोजिशन बहुत है तुम जगतपूज्य हो, परमेष्ठी हो, परमजीत हो, तुम अनुपमेय हो, तुम्हारी रेपुटेशन संसार के जीवन में सर्वोच्च है, हर व्यक्ति तुमसे जुड़ना चाहता है, तुम्हारे लिए जीना मरना चाहता है, तुम एक आवाज तो उठाओ सारे देवता हाथ जोड़कर खेड़े हो जायेंगे और वो दास नही, अहोभाग्य मानेगे। मैं नौकरों की बात नहीं, मैं भक्तो की बात कर रहा हूं।
उन्होंने कहा कि मंदिरों में भगवान का अभिषेक करने के लिए बारी बांधना पड़े, इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या होगा, अरे वहाँ तो ऐसे लोग चाहिए, कोई करे या न करे, सारी जिंदगी मैं करूँगा, ये मेरा भाग्य है। आज बुढ़ापे में माँ बाप के यदि चार बेटे है तो बांटना पड़ता है कि एक एक महीने इसके यहां रहो, एक महीने इसके, धिक्कार है ऐसे पुत्रत्व को, धिक्कार है ऐसे पितृत्व को। एक माता-पिता दो अकेले मिलकर के दस बच्चों को पाल लेते हैं लेकिन दुर्भाग्य है कि वे दस बच्चे मिलकर के मां-बाप का बुढापा नही निकाल पाते। होना ये चाहिए कि तुम ही सेवा क्यों करोगे, मैं भी करूंगा क्योकि ये मेरे भी माता पिता है।
कार्य में अनुभूति महसूस करो
मुनि श्री ने कहा कि जिस किसी भी कार्य करने के लिए हमें अहोभाग्य की अनुभूति हो समझ लेना वहीं देवता, वही गार्जियन तुम्हे सिद्ध हो गया। कार्य दूसरे का है और उसे करने में आनंद तुम्हें आ रहा है, अहोभाग्यपना तुम्हें जाग रहा है और ऐसा लग रहा है कि मैंने कितना पुण्य किया जो आज मुझे उनकी सेवा करने का मौका मिला, जिसके संबंध में यह भाव आ जाए उसी की दुआ तुम्हारी जिंदगी के लिए वरदान बनेगी। तुम्हें किस कार्य को करने में लग रहा है कि मेरी मजबूरी है, मेरा दुर्भाग्य है, मैंने कौन से कर्म किये जो मुझे ये कार्य करना पड़ रहा है, समझ लेना वही तुम्हारी जिंदगी में नकारात्मक ऊर्जा देगा।वही तुम्हें भार बन जाएगा, उसी भार में दबकर तुम अपने जीवन का अंत करोगे। यदि तुम्हें लग रहा है कि आज का दिन बहुत बुरा है तो यही दिन तुम्हें बर्बाद कर देगा, मेरी जिंदगी मुझे भार बन गई, यही जिंदगी तुम्हे बर्बाद कर देगी। सृष्टि का बहुत खतरनाक रूप है यदि हमने किसी को भी कोसा, वही हमारा दुश्मन बन जाएगा। हमने मन को कोसा, यह मन ऐसा दुश्मन बनेगा कि अपन को ऐसी चीजे सुझाएगा, जिसमें हम बर्बाद होते चले जाएंगे, उल्टा उल्टा ही सोचेगा। तुमने आंखों को कोसा, यह आंख तुम्हें बर्बाद कर देगी, किसी मोड़ पर एक्सीडेंट करा देगी।
मन पाप की नाली
उन्होंने कहा कि जो धर्म धन से मिलता हो उससे सस्ता कोई धर्म नहीं होगा, जिस धन को त्यागने से, जिस धन का दान देने से यदि कभी धर्म मिलता है बदले में तो महानुभाव एक अक्षर के लिए, एक छोटे से धर्म के लिए पूरा राज्य भी देना पड़े तो कह देना, बहुत सस्ते में मिल गया। इन्द्रियां और मन ये पाप की नालियां है, बहुत गन्दी है लेकिन थोड़ा सा खाद मिल जाये तो धर्म की फसल लहलहा जाती है, जैसे आँख नही होती तो स्वाध्याय नही कर पाते। पाप की चीजों से यदि धर्म कमाने को मिले तो ऐसे समझना जैसे प्लास्टिक से काँच की वर्नी मिल गयी हो।
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