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भगवान महावीर के निर्वाण दिवस पर श्रीफल जैन न्यूज की विशेष प्रस्तुति 5 : आत्मज्ञान, मोक्ष और धार्मिक आस्था का पर्व है दीपावली- गणिनी आर्यिका स्याद्वादमती माता जी 


जैन धर्म में दीपावली का गहरा आध्यात्मिक और धार्मिक महत्व है। इस दिन भगवान महावीर का निर्वाण हुआ था, और इसे जैन समुदाय के लिए मोक्ष और आत्मज्ञान का प्रतीक माना जाता है। जानते हैं दीपावली का वास्तविक अर्थ क्या है, पढ़िए गणिनी आर्यिका स्याद्वादमती माता जी का विशेष आलेख…


हम सभी दीपावली मनाएंगे। महावीर निर्वाणोत्सव पर लड्डू चढ़ाएंगे, लक्ष्मी पूजन करेंगे, धनतेरस पर बर्तन खरीदेंगे, और रूप चौदस पर रंग निखारेंगे। प्रतिदिन दीप जलाएंगे… लेकिन क्या वास्तव में बस यही दीपावली होगी? उत्तर है—नहीं। दीपावली एक गूढ़ अर्थ वाला आध्यात्मिक साधना का पर्व है।

भगवान महावीर और गौतम गणधर की वार्तालाप

गौतम गणधर: भगवन्! मुझे केवलज्ञान की प्राप्ति कब होगी?  

भगवान महावीर: जब तक मोह का नाश नहीं होगा, तब तक तुम्हें कैवल्य ज्योति प्रकट नहीं होगी।

गौतम गणधर: मुझे किसका मोह?

भगवान महावीर: जब तक तुम्हारा मुझसे राग है, कैवल्य में बाधक है।

गौतम गणधर: यह राग कब दूर होगा?

भगवान महावीर: जब मुझे मोक्ष प्राप्त होगा तब।

कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी की रात अमावस्या की प्रभात बेला में महावीर भगवान ने पावापुर सिद्ध क्षेत्र से निर्वाण प्राप्त किया। अमावस्या की शाम गौतम गणधर को केवल ज्ञान प्राप्त हुआ। यही दिन दीपावली के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

दीप जलाने का महत्व

प्रतिदिन दीप जलाने का प्रश्न स्वाभाविक है। दीपमालिकाएं केवल ज्ञान का प्रतीक हैं। सच्चे ज्ञान की प्राप्ति और अंधकार के नाश की भावना से दीप जलाए जाने चाहिए।

धनतेरस

दीपावली का प्रथम दिन धनतेरस नहीं, धन्यतेरस है। भगवान महावीर ने कार्तिक कृष्णा त्रयोदशी के दिन बाह्य समवशरण लक्ष्मी का त्याग करके मन, वचन, और काय का निरोध किया। वीर प्रभु के योगों के निरोध से यह त्रयोदशी धन्य हो उठी। अज्ञानवश, हम इस दिन सोना और बर्तन खरीदते हैं, जबकि सत्य यह है कि इस दिन मन, वचन, और काय से कुचेष्टाओं का त्याग करना चाहिए।

रूप चौदसपर्व का दूसरा दिन रूप चौदस है। इस दिन भगवान महावीर ने 18,000 शीलों की पूर्णता को प्राप्त किया। यह दिन आत्मा को शील, सत्य, और सदाचार से सजाने का पाठ सिखाता है। इस दिन ब्रह्मचर्य का पालन कर आत्मस्वभाव में आने का प्रयास करना सच्ची रूप चौदस है।

दीपावली

इस पावन दिन भगवान महावीर को निर्वाण लक्ष्मी प्राप्त हुई थी, इसलिए हमें उनकी पूजा करनी चाहिए। अमावस्या की शाम गौतम गणधर को केवल ज्ञान की लक्ष्मी मिली। पर आज हम निर्वाण को भूलकर लक्ष्मी की पूजा करने लगे हैं। लक्ष्मी पुण्य की चेरी है; पुण्य के अभाव में लक्ष्मी आपको छोड़ देगी। धर्म को छोड़कर लक्ष्मी के पीछे न दौड़ें। इस दिन भगवान महावीर और गौतम गणधर का पूजन करना चाहिए।

गोवर्द्धन पूजा

भगवान की दिव्य व्यनि स्थात् अस्ति-नास्ति। इस दिन तीर्थकर की देशना के अभाव के पश्चात जिनवाणी का प्रकाश हुआ। हमें इस दिन जिनवाणी की पूजा करनी चाहिए। अज्ञानवश, हम रूढ़ियों में फंसे हैं। घर में गोबर से एक चित्र बनाया जाता है, जिसे सप्तपूत माँ कहते हैं। सत्य यह है कि जिनेन्द्र देव अरहंत के मुखकमल से प्रस्फुटित माँ जिनवाणी हैं। उसकी आराधना करें और स्वाध्याय करें।

निर्वाण लाडू का महत्व

लड्डू सभी नैवेद्य में प्रिय होता है। मुक्ति सबसे प्रिय है। प्रिय वस्तु की प्राप्ति के लिए वस्तु का त्याग करना होता है। लड्डू, जिसे मोदक भी कहते हैं, आनंद का प्रतीक है। यह मोदक चढ़ाने की प्रथा केवल काल्पनिक नहीं, बल्कि इसके पीछे गहरा अर्थ है। दीपावली अज्ञानरूपी अंधकार से निकलकर ज्ञानपुंज में आने का पर्व है। यह बाह्य लक्ष्मी का त्याग कर आंतरिक लक्ष्मी पाने का पर्व है।

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