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धर्मसभा में दिए प्रवचन : प्रतिकूलताओ में जीना सीखो, आनंद ही आनंद है- मुनि श्री सुधासागर जी महाराज


दुनिया में हमें किसी को पर मानने का अधिकार नहीं है, मैं स्व तो हूं लेकिन दुनिया पर नहीं हैं। दुनिया को दुनिया की दृष्टि से देखो तो स्व की अनुभूति होती है क्योंकि हर वस्तु अपने स्व चतुष्टय पर आश्रित होकर अपने स्वपने का अनुभव करती हैं। यदि हम पर के भोक्ता न होते तो हमें उपदेश की जरूरत न होती। स्व को जानो, स्व का अनुभव करों क्योकि दो काम एक साथ नहीं हो सकते। यह बात मुनि श्री सुधासागर महाराज ने धर्मसभा में कही। पढ़िए यह विशेष रिपोर्ट…


सागर। दुनिया में हमें किसी को पर मानने का अधिकार नहीं है, मैं स्व तो हूं लेकिन दुनिया पर नहीं हैं। दुनिया को दुनिया की दृष्टि से देखो तो स्व की अनुभूति होती है क्योंकि हर वस्तु अपने स्व चतुष्टय पर आश्रित होकर अपने स्वपने का अनुभव करती हैं। यदि हम पर के भोक्ता न होते तो हमें उपदेश की जरूरत न होती। स्व को जानो, स्व का अनुभव करों क्योकि दो काम एक साथ नहीं हो सकते। यह बात मुनि श्री सुधासागर महाराज ने धर्मसभा में कही। उन्होंने कहा कि यदि तुम अपने दुःख का अनुभव कर रहे हो तो तुम्हें दुःख ही प्राप्त होगा। वर्तमान की अनुभूति पर हमारा भविष्य का महिल खड़ा है | अतीत की अनुभूति तो हमारी निकृष्ट थी, उसी का परिणाम तो हम आज भोग रहे है।

मौत में भी हित छिपा है, कांटों में भी हित छिपा है

उन्होंने कहा कि प्रतिकूलता जब भी आए, तुम्हें प्रतिकूलता का अनुभव नहीं करना है। तुम उसमें प्रतिकूलता का अनुभव करोगे, प्रतिकूलता बढ़ेगी। दुःख आये तो दुःख की अनुभूति नहीं करना। दुःख आते ही दुःख की अनुभूति हो जाती है, इसी से असाता कर्म का बंध बढ़ता है। दुःख आने पर तुम उस दुःख में देखो कुछ ऐसा जो तुम्हे सुखी कर दे। दुःख देने वाली वस्तु में कोई न कोई ऐसा गुण होता है जो हमे सुखी कर सकता है| दुश्मन में कोई एक गुण होता है जो तुम्हारा हित करता है। संसार में अज तक कोई ऐसी वस्तु पैदा नही हुई, जिसमे तुम्हारा हित न छिपा हो। मौत में भी हित छिपा है, कांटों में भी हित छिपा है, दुश्मन से ज्यादा दुनियाँ में हित करने वाला कोई नहीं होता है, भगवान भीं नही, गुरु भी नही, मां-बाप भी नही। जब निंदक तुम्हारे जीवन में आ जायज समझ लेना चाहिए तुम बहुत महान शक्ति हो क्योकि महान व्यक्ति की निंदा होती है| जिसके आगे भक्तों की भीड़ लगी हो जरुरी नही कि वो महान हो लेकिन जहां निंदकों की लाइन लगी हो, समझ लेना जरुर ये महान है। नीति है जिस पेड़ पर फल लगते है उसी को दुनिया पत्थर मारती है। प्रतिकूलताओं को हटाओं मत, प्रतिकूलताओं में डटे रहों। जितनी हवायें चलती जाये, तुम संभालते जाना, तुम महान बनते जाओगे। अज्ञानी व्यक्ति को हितैषी भी दुश्मन दिखते है और ज्ञानी को दुश्मन भी हितैषी दिखते है। अग्नि जलाकर राख करती है लेकिन क्या चमत्कार है नवनीत अग्नि पर जलकर घी बन गया।

दुश्मन में भी हित का गुण देखना चाहिए

मुनि श्री ने कहा कि दुश्मन में भी हित का गुण देखना चाहिए, दुश्मन तुम्हारा हित कर सके वो गुण दुश्मन में है और वो गुण हमें खोजना है और जिस दिन हमने खोज लिया, दुश्मन के आते ही ऐसा आनंद आएगा, जैसा कोई सगा व्यक्ति आ रहा हो, गाली भी ऐसी लगेगी जैसे कोई पूजा कर हो, मेरा वखान कर रहा हो। थोडा प्रतिकूलताओ में जीना सीखों, आनंद ही आनंद है। सब तीर्थंकरों की अपेक्षा सबसे ज्यादा संकट पारसनाथ तीर्थंकर पर आये इसलिए वे संकटमोचक बन गए। संकटमोचक वो नहीं है जो संकट दूर करता है, संकटमोचक वह है जो संकटों को सहन करता है, संकट को संकट मानता ही नहीं है। शिष्य जितने संकट सहन करेगा, वह उतना ही महान बनेगा इसलिए गुरु कभी फूलों पे चलने का रास्ता नही सिखाते है, वो काँटों पर चलने का रास्ता दिखाते है। भक्तों के बीच में रहना नहीं सिखाते है, दुश्मनों के बीच में कैसे रहना। दुश्मन का वार कभी खाली नही जायेगा क्योकि वो पूरी ताकत लगाकर रखता है, उसकी निंदा, उसकी बद्दुआ कभी खली नही जाएगी। दुश्मन की हर हरकत यंत्र नही है, मंत्र नहीं है, तंत्र कहलाता है वो और तंत्र विद्या का एक ही उसूल है तुमने स्वीकार कर लिया तो फंस गए और नही स्वीकार तो बच गए। जितनी ये बद्दुआए है ये तंत्र के अंतर्गत आती है, दुश्मन कभी मंत्र का प्रयोगज़ किसी के नाश के लिए नहीं कर सकता, मंत्र के प्रयोग के साथ ही वह मर जाएगा, मात्र तंत्र है और तंत्र का एक छोटा सा मंत्र है मेरी इज्जत ये कभी ख़राब कर ही नहीं सकता, मेरी इज्जत और बढ़ेगी, इसने गाली नहीं दी है, मेरा शगुन किया है।

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