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धर्मसभा में दिए प्रवचन : स्वयं को पवित्र होना चाहिए, गंदे तो अपने आप पवित्र हो जाते है – निर्यापक मुनि पुंगव श्री सुधासागर जी महाराज


संसार में जो कुछ भी है वह सब प्रयोजन भूत है, द्रव्य ही नही प्रत्येक गुण की, पर्याय की भी अर्थक्रिया होती है। जैसे आँख की मुख्य अर्थ क्रिया क्या है देखना, कान की सुनना, ज्ञान की है जानना। इस सब व्यवस्था के अनुसार हम देखते है कि ये संसार भी एक पिंड है, इसकी अर्थ क्रिया है पापरूप, पापियों को शरण देना, पापियों को बढ़ावा देना, ये संसार की अर्थक्रिया, संसार का स्वभाव है। यह बात मुनि श्री सुधासागर महाराज ने धर्मसभा में कही। पढ़िए राजीव सिंघाई की विशेष रिपोर्ट…


सागर। संसार में जो कुछ भी है वह सब प्रयोजन भूत है, द्रव्य ही नही प्रत्येक गुण की, पर्याय की भी अर्थक्रिया होती है। जैसे आँख की मुख्य अर्थ क्रिया क्या है देखना, कान की सुनना, ज्ञान की है जानना। इस सब व्यवस्था के अनुसार हम देखते है कि ये संसार भी एक पिंड है, इसकी अर्थ क्रिया है पापरूप, पापियों को शरण देना, पापियों को बढ़ावा देना, ये संसार की अर्थक्रिया, संसार का स्वभाव है। यह बात मुनि श्री सुधासागर महाराज ने धर्मसभा में कही। उन्होंने कहा कि यदि इसकी अर्थक्रिया अच्छी होती तो संसार को देखकर अच्छे लोगों को संसार मे रहने का भाव आता लेकिन जितने अच्छे लोग है वे संसार को देखकर विरक्त हो जाते है, कोई भी संसार में रहना नही चाहता।

पूजा-पाठ धर्म तक पहुंचने का साधन

उन्होंने कहा कि संसार में जो अच्छे लोग है, उनसे पूछो ये संसार कैसा है? मुझे तो एक भी अच्छा व्यक्ति नही मिला जिसने संसार को अच्छा कहा हो। महापुरुषों के जीवन में तो कोई दुख भी नहीं है फिर उन्होंने संसार को क्यों छोड़ा क्योंकि यह संसार अच्छे लोगों के लिए नहीं बनाया गया। ऐसा काल है जिसमें पाप ही पाप होता हो लेकिन ऐसा कोई काल नही है जिस काल मे कोई पाप न हो। ऐसा कोई भव नही दिया, जिस भव में कोई पाप नही कर सके, कोई कषाय नही कर सके, हर भव पाप के लिए है। हमारे हाथ में हमारे परिणाम है लेकिन हम ऐसा कोई परिणाम नही कर सकते, जिस परिणाम में पाप का बंध न होता हो। पूजा पाठ कर लो, मुनि बन जाओ, माला फेरों कुछ भी करो, कंही न कंही पाप का बंध होता है। श्वास लेंगे, चलेंगे, फिरेंगे, खायेंगे असंख्यात जीव मरेंगे, हो ही नही सकता कि बिना पाप के व्यक्ति जी सके। जब लोग कहेंगे कि कहा जाओगे, कोई अच्छा स्थान है नही लेकिन अंदर से आवाज निकलें कि मैं अच्छे स्थान पर ही रहूंगा, मैं अच्छा ही सुनूगा, मेरा संकल्प है। जब है ही नही तो कहा से करोगे तो फिर अंदर से आवाज आती है संसार में अच्छे लोगों के लिए स्थान नहीं दिया, जहाँ मैं बैठ जाऊंगा, उस स्थान को अच्छा होना पड़ेगा। जहां प्रवेश मेरा हो जाएगा, वह राज्य मेरा होगा, जिस स्थान पर कदम रख दूंगा, वही स्थान पवित्र होगा। कैसे होते हैं सम्यकदर्शन के परिणाम, कैसा होता है ये मोक्षमार्ग, ये जो व्रत, क्रिया कर रहे है ये कोई धर्म नही है, पूजा पाठ ये तो बाड़ी है, सुरक्षा कवच है। ये तो धर्म तक पहुंचने के साधन है। धर्म तो वो अंदर चेतना का पावर है जो अंदर से प्रकट होता है।

कोई काल पवित्र नहीं

मुनि श्री ने कहा कि या तो सम्यकदृष्टि का मस्तिष्क वहां झुकता है जहां सच्चे देव-शास्त्र-गुरु होते है। सम्यकदृष्टि वही बैठता है जहां शुद्ध स्थान होता है, उसी काल में धर्म करता है जो शुद्ध काल होता है। जब ये नही मिले तो अंतिम समन्तभद्र स्वामी एक आवाज लगाते है अभी तक यह वहां झुका है जहां भगवान था और आज वहां झुकाने की बात आ रही है जहां भगवान नहीं है, तो जहां ये झुकेगा वहां भगवान होगा। संसार में कोई काल पवित्र नहीं, हमें बनाना है। महावीर स्वामी ने अमावस्या को इतना पावन बना दिया कि आज वो अमावस्या शुभ हो गयी, ये है पुरुषार्थ। हमें क्षेत्र बनाना है पावन, जिस क्षेत्र पर हम बैठ जाएंगे, वहीं तीर्थ बन जाएगा।

स्वयं अच्छे हों

उन्होंने कहा कि जिस मकान को आपने लिया है उस मकान की अर्थक्रिया है संसार और तुम चाहो तो एक कोने को पूजा का स्थान बना लो और प्रकृति को दिखा दो कि तुमने जमीन बनाई थी संसार के लिए, मैंने मकान के एक टुकड़े पर बना दिया पूजा का स्थान। यह संसार सब पापियों के लिए बना था लेकिन भगवान ने जहां से निर्वाण प्राप्त किया वो निर्वाण स्थान धर्मात्मा के लिए पावन हो गया और सिद्धक्षेत्र बन गया। पंचम काल में इस संसार में रहकर के अपनी उपादान शक्ति ऐसी जगाओ कि जो गंदी चीज मेरी जिंदगी में आवें, मेरे सोचते ही, मेरे छूते ही पावन हो जाये। इस संसार में, मैं सब कुछ अच्छा करके रहूंगा तो कुछ नहीं कर पाओगे बस संसार में कोई चीज कितनी भी अशुद्ध हो, मुझे अशुद्ध नहीं कर पाएगी। इस संसार में कभी अच्छाई की कल्पना मत करना, अपन को अच्छे होना है यह संकल्प करना। लोगों के गंदे होने से कोई फर्क नहीं पड़ता, स्वयं को पवित्र होना चाहिए, गंदे तो अपने आप पवित्र हो जाते है।

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