पयुर्षण महापर्व यानी दशलक्षण पर्व का जैन धर्म में बहुत महत्व माना गया है। जैन धर्म में पर्युषण पर्व को आत्म जागृति और शुद्धि का पर्व कहा गया है। यह सभी पर्वों का राजा माना गया है। इस महापर्व के समापन पर क्षमावाणी का पर्व मनाया जाता है, जो मन को शुद्ध कर देता है। पढ़िए सन्मति जैन काका सनावद की यह विशेष रिपोर्ट….
सनावद. पयुर्षण महापर्व यानी दशलक्षण पर्व का जैन धर्म में बहुत महत्व माना गया है। जैन धर्म में पर्युषण पर्व को आत्म जागृति और शुद्धि का पर्व कहा गया है। यह सभी पर्वों का राजा माना गया है। इस महापर्व के समापन पर क्षमावाणी का पर्व मनाया जाता है, जो मन को शुद्ध कर देता है। सन्मति जैन काका ने बताया की क्षमा वाणी पर्व नगर में विराजमान आर्यिका सरस्वती माताजी ससंघ के सानिध्य में मनाया गया जिसके अंतर्गत सुबह श्री पार्श्वनाथ बड़ा मंदिरजी में सामूहिक अभिषेक और पूजन किया गया। इसके बाद मंदिर जी के ओत्तंग शिखरों पर केशरिया ध्वजाए चढ़ाई गई, जिसका सौभाग्य अक्षय कुमार, अभिजीत कुमार, सराफ परिवार को मिला। साथ ही आदिनाथ जिनालय में ध्वजा चढ़ाने का सौभाग्य नैना मनीष कुमार चौधरी परिवार को मिला।
इस अवसर पर आर्यिका सरस्वती माताजी ने कहा की भगवान महावीर ने हमें आत्म कल्याण के लिए दस धर्मों के दस दीपक दिए हैं। प्रतिवर्ष पर्युषण आकर हमारे अंत:करण में दया, क्षमा और मानवता जगाने का कार्य करता है। जैसे हर दीपावली पर घर की साफ-सफाई की जाती है, उसी प्रकार पर्युषण पर्व मन की सफाई करने वाला पर्व है। इसीलिए हमें सबसे पहले क्षमा याचना हमारे मन से करनी चाहिए।
जब तक मन की कटुता दूर नहीं होगी, तब तक क्षमावाणी पर्व मनाने का कोई अर्थ नहीं है। अत: जैन धर्म क्षमा भाव ही सिखाता है। हमें भी रोजमर्रा की सारी कटुता, कलुषता को भूल कर एक-दूसरे से माफी मांगते हुए और एक-दूसरे को माफ करते हुए सभी गिले-शिकवों को दूर कर क्षमा पर्व मनाना चाहिए।
इस अवसर पर प्रति वर्ष अनुसार पहले आदिनाथ जिनालय ततपश्चात सुपार्श्वनाथ मंदिर और अंत मे पार्श्वनाथ जैन बड़ा मंदिर में श्रीजी का अभिषेक किया गया। इसके बाद सभी समाजजनों ने भगवान के समक्ष हाथ जोड़कर क्षमा याचना की। इसके बाद आर्यिका संघ से क्षमा याचना की फिर एक दूसरे से हाथ जोड़कर गले मिलकर क्षमा मांगी साथ ही अपने आपसी भेद भावों को खत्म किए।
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