परसोला स्थित जैन मंदिर में आचार्य श्री वर्धमान सागर जी के सानिध्य में सुबह पंचामृत अभिषेक हुआ। साथ ही सभी 10 दिन व्रत करने वाले तपस्वियों ने मंदिर में जाकर दर्शन अभिषेक पूजन किया। इसके बाद तपस्वियों का पारणा उनके निवास स्थान पर किया गया। इस मौके पर आचार्य श्री वर्धमान सागर जी ने धर्म सभा में दश लक्षण महापर्व के महत्व को बताते हुए सभा को संबोधित किया। पढ़िए राजेश पंचोलिया इंदौर की रिपोर्ट….
परसोला स्थित जैन मंदिर में आचार्य श्री वर्धमान सागर जी के सानिध्य में सुबह पंचामृत अभिषेक हुआ। साथ ही सभी 10 दिन व्रत करने वाले तपस्वियों ने मंदिर में जाकर दर्शन अभिषेक पूजन किया। इसके बाद तपस्वियों का पारणा उनके निवास स्थान पर किया गया। इस मौके पर आचार्य श्री वर्धमान सागर जी ने धर्म सभा में दश लक्षण महापर्व के महत्व को बताते हुए सभा को संबोधित किया और कहा कि दशलक्षण पर्व को वर्षभर याद करते हैं, 355 दिन प्रतीक्षा कर 10 दिन बाद पर्व चला जाता है।
दशलक्षण पर्व वर्ष में तीन बार आता है जबकि दश लक्षण पर्व प्रति समय जीवन में होना चाहिए पर्व प्रति समय हमारे साथ होता है। महापर्व को आप भूलने का प्रयत्न नहीं करें। इसे स्मृति में रखें। सारा संसार विषय और कषायो से भरा हुआ है। दश लक्षण पर्व तीन बार माघ, चैत्र और भादव माह में आता है। सोचना यह है कि दश लक्षण पर्व के पहले सोलह कारण की पूजा की है। 16 कारण की पूजा से तीर्थंकर नाम कर्म का बंध होता है इसलिए दश लक्षण के पूर्व 16 कारण पर्व आता है। यह महापर्व धरोहर बनकर आए हैं।
साथ ही बताया कि आत्मा में विभव परिणीति है इस कारण चारों गति में दुख होता है। रक्षाबंधन भी महापर्व है। देव शास्त्र गुरु हमारे आराध्य देव हैं उनके बिना संसार से पार होने का मार्ग नहीं मिलता है। देव हमारे हृदय में विराजमान होना चाहिए स्थापना में तो बुलाते हैं और विसर्जन में जाने का कहते हैं। धर्म को धारण करना चाहिए छोड़ना नहीं चाहिए। पर्व में विशेष प्रकार की आराधना की जाती है। पर्व मुनि राज के हैं श्रावक भी धारण कर सकते हैं।
इस दौरान ब्रह्मचारी गज्जू भैया एवं राजेश पंचोलिया ने कहा आचार्य श्री ने आगे बताया कि उत्तम क्षमा धारण करने के लिए बहुत शक्ति चाहिए। जगत के प्राणी मात्र के लिए मैत्री भाव रहे, वहीं क्षमा के विरुद्ध क्रोध है। पारसनाथ भगवान और कमठ का चरित्र देखिए कितने भवों में कमठ का उपसर्ग किया किंतु पारसनाथ भगवान का जीव उन्हें शांति से क्षमा करता रहा। साथ ही उन्होंने तप, संयम, साधना और मोक्ष प्राप्त किया। क्षमा बहुत बड़ा धर्म है हम सबको उत्तम क्षमा धर्म धारण करना चाहिए। भगवान कहते हैं कि उपसर्ग आने पर सहन कर क्षमा भाव रखें, क्रोध जहर है और क्षमा अमृत है। क्षमा से आप अजर अमर हो सकते हैं।
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