जैन धर्म का सर्वोच्च पर्व दसलक्षण पर्युषण का नवां दिन जैन धर्मावलंबियों ने” उत्तम आकिंचन्य धर्म” के रूप में मनाया। महासंत जैन ब्रह्मचारिणी गुणमाला दीदी और चंदा दीदी ने अपनी पीयूष वाणी मे भक्तजनों को कहा कि किंचित भी मेरा नहीं है। दुनिया का कोई भी पदार्थ मेरा नहीं है ऐसा मानना और जानना ही आकिंचन धर्म है। पढ़िए राजकुमार अजमेरा और नवीन जैन की रिपोर्ट…
झुमरीतिलैया (कोडरमा)। जैन धर्म का सर्वोच्च पर्व दसलक्षण पर्युषण का नवां दिन जैन धर्मावलंबियों ने” उत्तम आकिंचन्य धर्म” के रूप में मनाया। महासंत जैन ब्रह्मचारिणी गुणमाला दीदी और चंदा दीदी ने अपनी पीयूष वाणी मे भक्तजनों को कहा कि किंचित भी मेरा नहीं है। दुनिया का कोई भी पदार्थ मेरा नहीं है ऐसा मानना और जानना ही आकिंचन धर्म है। जो बाहर भीतर एक हो, वहीं पर आकिंचन धर्म खिलता है। जिस धर्म से परमात्मा का रहस्य प्रकट होता है, वह आकिंचन धर्म है।
दुनिया में स्वस्थ वही है जो निर्विकल्प है निराकुल है। अर्थी सजने के पहले जीवन के अर्थ को समझना जरूरी है नहीं तो अनर्थ हो जाता है। मैं और मेरे पन का भाव दुख और वेदना का कारण है। गुरुदेव ने कहा कि सामान सौ बरस का है पल भर की खबर नहीं है इसलिए जीवन के सार को समझना आवश्यक है। जीवन से ममत्त्व और विकल्पों का त्याग ही आकिंचन धर्म है संसार क्षणभंगुर है यहां सिर्फ दुख है जो हमने जोड़ा है सब छूट जाएगा। मनुष्य खाली हाथ आया है और खाली हाथ जाएगा इसलिए स्वयं को समझना आवश्यक है यह सबसे कठिन काम है स्वयं को समझने की दशा ही आकिंचन धर्म है।
ये कार्यक्रम भी हुए
प्रातः दीदी के मुखारविंद से नया मंदिर जी में महा शांति धारा का पाठ किया गया। भगवान की शांति धारा का सौभाग्य ओम जी विनित सेठी के परिवार को मिला। बड़ा मंदिर मूलनायक 1008 श्री भगवान पार्श्वनाथ की शांति धारा का सौभाग्य ललित-सिद्धांत सेठी के परिवार को मिला। पाण्डुकशिला पर शांति लाल विजय संजय छाबडा साथ ही स्वर्ण झारी से शांतिधारा का सौभाग्य ललित शौरभ पापड़ीवाल के परिवार को मिला। दूसरी आदिनाथ की वेदी पर 1008 चन्द्रप्रभु भगवान का प्रथम अभिषेक और शांतिधारा का सौभाग्य प्रदीप,अतुल छाबडा के परिवार को प्राप्त हुआ। इसके बाद तीर्थंकर की पूजा सोलह कारण पूजा,दसलक्षण पूजा, उत्तम आकिंचन धर्म की पूजा के साथ आज रत्नत्रय धारियों के लिए विशेष रत्नत्रय पूजन किया गया। विशेष रूप से आज के विधान पुण्यार्जक राकेश-प्रीति छाबडा और सभी व्रत धारियों ने मंडप पर श्री फल समर्पित किया। विधान में विशेष रूप से सुबोध-आशा गंगवाल ने सभी पुजारियों को भक्ति की दुनिया में डुबकी लगा कर भक्ति नृत्य करने को मजबूर कर देते हैं। दिन में सभी व्रत धारियों का बिनती के साथ मेहंदी लगाने का कार्यक्रम हुआ। जिसमें सभी व्रत धारियों के परिवार वाले ने व्रत धारियों की अनुमोदना। समाज के पदाधिकारियों ने भी सभी की अनुमोदना की। संध्या में भव्य आरती के साथ सांस्कृतिक कार्यक्रम हुआ।
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