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उत्तम आकिंचन्य धर्म पर हुई धर्म प्रभावना : आकिंचन का मतलब किंचित मात्र भी मेरा नहीं है- आचार्य पुलक सागर 


पर्युषण पर्व के उपलक्ष में चल रहे शिविर में दिगंबर जैन दशा नरसिंह पूरा समाज के भट्टारक यश कीर्ति गुरुकुल सभागार मेंं 9वें दिन राजकीय अतिथि गुरुदेव आचार्य पुलक सागर जी के सानिध्य में उत्तम आकिंचन्य धर्म मनाया गया। समाज के उपाध्यक्ष धनपाल भवरा ने बताया कि इस अवसर पर गुरुदेव को जिनवाणी और शास्त्र भेंट का लाभ शोभा रानी बाबूलाल अहमदाबाद परिवार को मिला। पढ़िए सचिन गंगावत की रिपोर्ट…

ऋषभदेव। पर्युषण पर्व के उपलक्ष में चल रहे शिविर में दिगंबर जैन दशा नरसिंह पूरा समाज के भट्टारक यश कीर्ति गुरुकुल सभागार मेंं 9वें दिन राजकीय अतिथि गुरुदेव आचार्य पुलक सागर जी के सानिध्य में उत्तम आकिंचन्य धर्म मनाया गया। समाज के उपाध्यक्ष धनपाल भवरा ने बताया कि इस अवसर पर गुरुदेव को जिनवाणी और शास्त्र भेंट का लाभ शोभा रानी बाबूलाल अहमदाबाद परिवार को मिला। इस दौरान गुरुदेव ने अपने मंगल प्रवचन में कहा कि आज उत्तम आकिंचन्य धर्म दिवस है। आकिंचन मतलब किंचित मात्र भी मेरा नहीं है।

मतलब इस संसार में कुछ भी मेरा नहीं है। भोग ही पतन का कारण नहीं होते। कभी कभी तप त्याग भी पतन का कारण बनते है। ये आकिंचन्य धर्म कहता है। बुरी भावना से नरक का बंध हुआ करता है। हम सोचते हैं कि सर्वे भवन्तु सुखिन सबका कल्याण हो जाए। गुरुदेव ने कहा कि पद आने पर यश आने पर भगवान को कहना कि मुझे आपके आशीर्वाद से सेवा करने का मोका मिला है और सौभाग्य मानो मालिक के मालिक कभी मत बनो। वरना मालिक को दास बनाने में ज्यादा देर नहीं लगती। अधिकारों की बात मत करो कर्तव्य का निर्वहन करो।

अपनी हुकूमत मत जमाओ। कल्याण मुनि ने कहा है कि मृत्यु का पाठ किसे पढ़ाते हो। सम्राट सिकंदर तुमने दुनिया जीती होगी। हम भारत के वो संत हैं जो दुनिया को नहीं अपने आप को जीतते हैं। जो दुनिया को जीतता है वो सिकंदर होता है और जो अपने आप को जीतता है वो भगवान महावीर होता है।

उल्लेखनीय है ऋषभदेव में सोलहकारण के वर्त सुशीला ओम प्रकाश वाणावत द्वारा किए जा रहे है। जिसके अंतर्गत उनका 14वां उपवास हुआ। सायंकालीन आरती का लाभ लोकेश एवं विपुल वाणावत परिवार को प्रात हुआ। आरती के पश्चात संसद में हंगामा नाटक का आयोजन किया गया। इस अवसर सभी समाज जन मौजूद थे।

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