ब्रह्मचर्य का मुख्य उद्देश्य आत्म-नियंत्रण और आत्म-ज्ञान की ओर अग्रसर होना है। यह विशेष रूप से संयम, ध्यान, और आत्म-निर्माण के प्रति वचनबद्धता को दर्शाता है। इसे ध्यान और साधना की प्रक्रिया में भी एक महत्वपूर्ण साधन माना जाता है। ब्रह्मचर्य का पालन करना एक अत्यंत श्रेष्ठ और महत्वपूर्ण धर्म है जो व्यक्ति की आध्यात्मिक उन्नति और आत्मज्ञान के लिए आवश्यक है। पढ़िए कहानी उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म की…
एक बार अयोध्या नगरी के राजा राम दीक्षा लेकर मुनि बन गए। उनकी पत्नी रानी सीता ने पृथ्वीमति मांं से दीक्षा ली थी। तप के प्रभाव से वे अगले जन्म में स्वर्ग में देव बनी थीं। सीता के जीव ने मुनि राम को ध्यान करते देखा और सोचा कि राम ऐसे ही तपस्या करते रहे तो वो मुझसे पहले मोक्ष को प्राप्त हो जाएंगे। तब सीताजी ने रामजी की तपस्या में व्यवधान लाने का सोचा, ताकि उन्हें मोक्ष न मिले और वे दोनों स्वर्ग में साथ रह सकें। बाद में दोनों साथ में मोक्ष पा लेंगे। सीता वाले देव के पास अद्भुत शक्ति थी। वह मुनि राम के पास सीता का रूप बनाकर गईं और कहने लगी, हे राम! बड़ी मुश्किल से मैंने आपको पाया है, आप मेरा साथ दीजिए।
मगर राम तो अपनी आत्मा में लीन थे, इसलिए उनका ध्यान नहीं टूटा। सीता ने बार-बार उनका ध्यान तोड़ना चाहा, लेकिन रामजी पर कोई असर नहीं हुआ। जब सीता को लगा कि इनका ध्यान तो टूट ही नहीं रहा, तो उन्होंने अपनी शक्ति से सौ से ज्यादा लड़कियों को बुला लिया। वे सभी लड़कियांं संगीत बजाने लगींं, फिर भी रामजी तो सिर्फ अपनी आत्मा में मगन थे। वे बिना किसी भटकाव के बस ध्यान में लगे रहे। फिर मुनि राम की आत्मा शुद्ध होने लगी और वे अरिहंत बन गए।
भगवान बन गए। इस दुनिया में सबसे उत्तम, सबसे खास बन गए, सबके आराध्य बन गए। इसीलिए रामजी की भारत में सभी लोग पूजा करते हैं। आत्मा में लीन रहने का नाम ही तो है उत्तम ब्रह्मचर्य। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है मुनि राम की यह सच्ची कहानी। हम सभी भी यही इच्छा करते हैं कि हम भी अपनी आत्मा को जान पाएंं और एक दिन अपनी आत्मा को शुद्ध बना लें।
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