प्राणी संयम और इन्द्रिय संयम जीवन मैं अगर कर्मो की लगाम लगानी है तो संयम तो अपनाना ही पड़ेगा। प्राणी संयम सभी जीवो पर दया षट काय जीव की रक्षा करना। इन्द्रिय संयम पंच इन्द्रिय जीव और मन को वश मे करना। संयम क्या है अपनी आत्मा को जानना और किसी गलत कार्य मे नहीं जाने देना उस पर नियंत्रण रखना । पढ़िए बाल ब्रह्मचारी झिलमिल दीदी का विशेष आलेख
हे भव्य आत्मा ज़ब तक जीवन मे संयम नहीं होगा तब तक हमारे जीवन मे वैराग्य नहीं होगा और वैराग्य नहीं होगा तो हम कर्मो की निर्जरा कैसे करेंगे, हे आत्मा मुझे बता।
ज़ब इंसान बिना चाबी के ताला नहीं खोल सकता तो क्या आप बिना संयम के आपने आत्मा के धर्म का खाता कैसे खोल सकते है। हम सभी को अपने जीवन मे संयम धारण करना है, तभी हमको हमारी आत्मा का बोध होगा आचार्यो ने संयम दो प्रकार का बताया प्राणी संयम और इन्द्रिय संयम। जीवन मैं अगर कर्मो की लगाम लगानी है तो संयम तो अपनाना ही पड़ेगा। प्राणी संयम सभी जीवो पर दया षटकाय जीव की रक्षा करना। इन्द्रिय संयम पंच इन्द्रिय जीव और मन को वश मे करना। संयम क्या है अपनी आत्मा को जानना और किसी गलत कार्य मे नहीं जाने देना उस पर नियंत्रण रखना ।
संयम मतलब सम +यम
अर्थात सम्यक रूप से नियंत्रण करना अपनी आत्मा पर दुःख भोगने बाला आगे चलकर सुखी हो सकता है पर कब जब वह अपने जीवन मे संयम धारण करेगा तब वह सुखी हो सकता नहीं तो वह जीव इस चार गति मे घूमता ही रहेगा। पर हे भव्य आत्मा हम इस संसार सागर से पार होना है पर हे भव्य जीव कर्मो की निर्जरा दुःख से नहीं होती कायक्लेश से नहीं होती आत्मा का निज आनन्द ज़ब प्रकट होता है तब कर्म की निर्जरा होती है। जिसके परिणाम मे निर्मलता आती है उसे कायक्लेश का मन ही नहीं होता उसके परिणामो की निर्मलता से परम आनन्दरूप रहे। ऐसे आत्मीय आनन्द से निर्जरा होती है। कायक्लेश नाम तो रागियो की बोट से रखा गया है। हमको यह सब छोड़ना है पर निज आत्मा के सुख हो पाना है. संयम एक सुरक्षा है, अनुशासन है, आत्मा के कल्याण के लिये प्रथम चरण है। संयम नहीं तो कल्याण नहीं हो सकता अपने जीवन को संयम बनाओ। संयम को पूजा जाता है उसे उत्तम संयम कहा जाता है। संयम मे जैसे संकल्प लेना आदमी के जीवन मे हजारों बिकल्प होते है। जो संकल्प ले लेते है उनका विकल्प समाप्त हो जाता है। संयम से जीवन चमक जाता है एक कोलू का बैल दिन रात चलता है पर वह अपनी मंजिल कभी नहीं पहुँचता क्योंकि वो जनता ही नहीं है की उसके मालिक ने उसके आँख पर पट्टी बांध दी है बस उसे तो चलना तो चला जा रहा है। हे भव्य आत्मा, हमारी भी स्थिति कुछ ऐसी हो गई है की हम धर्म तो कर रहे है पर अपने कर्मो की निर्जरा नहीं कर पा रहे क्योंकि हमारी आँखो पे भी राग, देष, मोह की पट्टी बँधी है। इसलिए हमें अपनी आत्मा का बोध नहीं हो रहा है। आज एक लोग संयम लेने से डरते है कैसे पालन होगा। ध्यान रखना ज़ब आप जीवन मे कोई थोड़ा सा नियम लेते हो तो उसको पुरे दृड़ता से पालन करते हो। तो उस नियम को निभाने मे देव भी सहायता करते है। मनोवती ने जब गज मोती चढ़ने का नियम लिया तो उस नियम को निभाने मे देव ने खुद गज मोती दिया। सोमा ने नियम लिया और निभाया तो मुसीवत आने पर नाग भी हार मे बदल गया। इसलिए हे भव्य आत्मा नियम संयम मे बहुत ताकत है देव को भी हमारे सामने खड़ा कर देती है इसलिए अपने जीवन को कोलू का बैल मत बनाओ।
अपने जीवन मे संयम लेकर अपनी आत्मा का कल्याण करो। अपनी आत्मा को जानो दूरभावो से दूर रहो और निज स्वभाव मे आ जाओ। हमारा स्वभाव संयम मे है नाकि असंयम मे। जीवन का कल्याण करो। जीवन मे संयम धारण करो और जीवन को उज्जवल बनाओ। अपनी आत्मा मे परात्मा का अनुभव करते हुये अनंत सुख का आनंद लो। इस असंयम के मोह राग देष को छोड़ कर अपने संयम स्वभाव मे लग जाओ। ज़ब ऐसा करोगे तो निश्चित आप एक दिन उस स्थान पर होंगे जहां सुख ही सुख हो।
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