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कहानी उत्तम संयम धर्म की : हमें स्वयं को संयमित रखने का प्रयास करना चाहिए


संयम का तात्पर्य है कि किसी व्यक्ति को अपने इन्द्रियों, इच्छाओं और भावनाओं पर नियंत्रण रखना चाहिए। जब व्यक्ति अपनी इच्छाओं और भावनाओं पर संयम रखता है, तो वह अपने जीवन को एक निश्चित दिशा में व्यवस्थित और संतुलित तरीके से जी सकता है।आज पढ़िए कहानी उत्तम संयम धर्म की…


जिसके जीवन में संयम नहीं उसका जीवन बिना ब्रेक की गाड़ी जैसा है। अब सवाल उठता है कि क्या केवल मनुष्य ही जीवन में संयम का पालन करता है या तिर्यंच भी संयम धर्म का पालन कर अपने भव को सुधारते हैं। एक समय की बात है। एक गांव के पास जंगल में सागर सेन मुनिराज आए। वे वहां सामयिक (ध्यान) कर रहे थे। दूर बैठी एक लोमड़ी यह सब देख रही थी। लोमड़ी मुनिराज को ध्यान मग्न देख उन्हें मृत समझकर, उन्हें खाने के लिए उनकी ओर आगे बढ़ी। मुनिराज बिना डरे ध्यान मग्न रहे। मुनिराज ने लोमड़ी को हिंसा के पाप से बचाने के लिए उसे कहा- हे भव् जीव! तुम अपने बुरे कर्मों के कारण ही तिर्यंच गति पाई हो। हिंसा छोड़कर तुम्हें हिंसा न करने का नियम लेना चाहिए।

यह सुनकर लोमड़ी शांत होकर उनके पास बैठ गई। लोमड़ी ने रात में भोजन और जल का त्यागकर नियम लिया कि सूर्यास्त के बाद वह कुछ नहीं खाएगी और ना ही किसी पशु को मारेगी। इसके कुछ समय पश्चात एक दिन लोमड़ी को बहुत प्यास लगी थी। वह प्यास बुझाने के लिए कुआं के पास गई। लोमड़ी ने कुआं के पास जाकर देखा कि वह बहुत गहरा है। तब वह सीढ़ियों की मदद से कुआं के अंदर उतरी। जब वह कुआं में गई तो उसे वहां बहुत अंधेरा दिखाई दिया।

अंधेरा देख लोमड़ी को लगा कि सूर्यास्त हो गया है और उसे सूर्यास्त के बाद कुछ ना खाने पीने का नियम याद आया। लोमड़ी कुआं के बाहर आ गई। जब वह बाहर आई तो उसे उजाला दिखा।। वह फिर से कुआं के अंदर गई। उसे फिर वहां अंधेरा देख लगा कि रात हो गई है। वह फिर बाहर आ गई। ऐसा उसने कई बार किया। लोमड़ी का अगला जन्म तब तक सूर्यास्त हो गया, लेकिन उसने संयम को नहीं छोड़ा और नियम पर अटल रही। इस प्रकार लोमड़ी थक कर प्यासा ही एक जगह बैठ कर मुनिराज के उपदेश को याद करने लगी और प्यासा ही मर गई।

लोमड़ी ने अगले जन्म में राजकुमार प्रीतिकर के रूप में जन्म लिया। राजकुमार ने भगवान महावीर के समोशरण में जाकर मुनि दीक्षा ले ली और नियम से मोक्ष चला गया। हमें भी अपने जीवन में छोटे-छोटेनियम से संयम की शुरुआत करनी चाहिए। हमें स्वयं को संयमित रखने का प्रयास करना चाहिए। हमें हिंसा जैसी चीजें नहीं देखना चाहिए। हमें यह नियम लेना चाहिए कि ऐसी कोई चीज नहीं खाएंगे जिसमें हिंसा हो। अष्टमी और चौदस को पूजा करने का नियम रखना चाहिए। ऐसे नियम लेने से हमारी इच्छा शक्ति मजबूत होती है।

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