तीर्थंकर ऋषभदेव की शिक्षाएं आज अधिक प्रासंगिक हैं : मुनि श्री प्रवरसागर महाराज गिरार,ललितपुर। मड़ावरा विकासखंड में स्थित अतिशय क्षेत्र गिरार गिरीजी में जैनधर्म के प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ (ऋषभदेव) जन्म कल्याणक एवं तप कल्याणक महोत्सव श्रद्धा और आस्था के साथ सोमवार को उत्साह पूर्वक मनाया गया।प्रातः बेला में मूलनायक श्री आदिनाथ भगवान का अभिषेक और शांतिधारा श्रद्धालुओं द्वारा भक्ति के साथ किया गया। प्रथम कलश का सौभाग्य अशोक कुमार जैन- श्रीमती प्रतिभा जैन सपरिवार नरसिंहगढ़, द्वितीय कलश का सौभाग्य श्रीमती शशि प्रभा श्री मुकेश जैन सपरिवार बरायठा , तृतीय कलश का सौभाग्य सेठ विमल जैन ,श्री सेठ हरिश्चंद्र जैन सपरिवार बरायठा, चतुर्थ कलश का सौभाग्य श्री शिखर चंद्र जैन, श्रीमती लक्ष्मी बाई, श्री संजीव श्रीमती प्रियंका समस्त परिवार बड़ामलहरा ने प्राप्त किया एवं उपस्थित सभी लोगों ने श्री आदिनाथ भगवान के अभिषेक का सौभाग्य प्राप्त कर पुण्य अर्जन किया। अनेक श्रद्धालुओं के नाम ऑनलाइन प्राप्त हुए जिन्हें शांतिधारा में उच्चारित किया गया।इस अवसर पर आचार्य विनिश्चय सागर जी महाराज के सुयोग्य शिष्य मुनि श्री 108 प्रवर सागर जी महाराज एवं क्षुल्लक श्री 105 वीर सागर जी महाराज का मंगल सानिध्य प्राप्त हुआ।
श्री 1008 आदिनाथ विधान एवं वात्सल्य भोज का पुण्यार्जन व्या सुरेश चंद्र जैन , व्या सुनील कुमार जी जैन व्या परिवार बरायठा ने प्राप्त किया।श्रद्धालुओं ने जहाँ आदिनाथ भगवान के जन्म कल्याणक महोत्सव पर आदिनाथ भगवान का महामस्तकाभिषेक किया वहीं श्री आदिनाथ महामंडल विधान विधि विधान के साथ संपन्न किया गया। समस्त कार्यक्रम कोविड-19 की गाइडलाइन का पालन करते हुए किया गया। आयोजन में अतिशय क्षेत्र गिरार कमेटी का योगदान रहा।इस दौरान चक्रेश जैन बरायठा, मुकेश बरायठा व्या सुरेश चंद्र, सुनील कुमार बरायठा, राजेंद्र जैन राजू, अशोक कुमार नरसिंहगढ़, शिखरचंद्र बड़ामलहरा, पवन कुमार जैन सौरई वाले, सौरभ शास्त्री आदि प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।क्षेत्र के महामंत्री अभिषेक जैन मड़ावरा, प्रदीप जैन मड़ावरा ने आभार व्यक्त किया।इस अवसर पर मुनि श्री प्रवरसागर जी महाराज ने अपने सम्बोधन में कहा कि भगवान ऋषभदेव जैनधर्म के प्रथम तीर्थंकर हैं उनका जन्म चैत्र कृष्ण नवमी को अयोध्या के महाराजा नाभिराय तथा माता मरुदेवी के यहां हुआ था, वहीं माघ कृष्ण चतुर्दशी को इनका निर्वाण कैलाश पर्वत पर हुआ। इन्हें आदिनाथ आदि अनेक नामों से भी जाना जाता है। आज के दिन पूरे देश में उनका जन्म कल्याणक उत्साह से मनाया जाता है। तीर्थंकर ऋषभदेव भारतीय संस्कृति के आद्य प्रणेता माने जाते हैं। वेदों, उपनिषदों और पुराणों में समागत उनके उल्लेख यह कहने के लिए पर्याप्त हैं कि ऐसे महापुरूष थे जिन्होंने मानव समुदाय को कृषि, लेखन, व्यापार, शिल्प, युद्ध और विद्या की शिक्षा दी। उनकी शिक्षाएं आज अधिक प्रासंगिक हैं। उनका एक प्रमुख संदेश था कृषि करो या ऋषि बनो।उन्होंने मानव जाति को पुरूषार्थ (कर्म ) का उपदेश दिया।सभ्यता-संस्कृति के प्रवर्तक तीर्थंकर ऋषभदेव : तीर्थंकर ऋषभदेव (आदिनाथ) जन्म कल्याणक (जयंती) के प्रसङ्ग पर उत्तर प्रदेश-उत्तराखंड तीर्थक्षेत्र कमेटी के मंत्री डॉ. सुनील संचय ललितपुर ने बताया कि लेखन कला और ब्राह्मीलिपि का आविष्कार तीर्थंकर ऋषभदेव ने किया था। विभिन्न साक्ष्यों द्वारा यह पुष्टि हुई है। मानवीय गुणों के विकास की सभी सीमाएं भगवान ऋषभदेव ने उदघाटित कीं। इन्हीं प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव के ज्येष्ठ पुत्र भरत के नाम से इस देश का नामकरण ‘भारतवर्ष’ इन्हीं की प्रसिद्धि के कारण विख्यात हुआ यह ऐतिहासिक तथ्यों से प्रमाणित है।भगवान ऋषभदेव द्वारा बताई गई जीवन शैली की हमारी सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनैतिक व्यवस्था में काफी प्रासंगिकता एवं महत्ता है। उनके द्वारा प्रतिपादित ज्ञान-विज्ञान की विभिन्न क्षेत्रों में ऐसी झलकियां मिलती हैं जिन्हें रेखांकित करके हम अपने सामाजिक एवं राजनैतिक जीवन की गुणवत्ता को बढ़ा सकते हैं। भगवान ऋषभदेव ने महिला साक्षरता तथा स्त्री समानता पर भी महत्वपूर्ण कार्य किया है।
संलग्न चित्र कैप्सन : अतिशय क्षेत्र गिरारजी में संबोधित करते मुनि श्री प्रवर सागर जी महाराज एवं भगवान का अभिषेक करते श्रद्धालु।
धन्यवाद!
डॉ. सुनील जैन संचय, ललितपुर
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