कथा सागर

स्वाध्याय – 6 : अरिहंत परमेष्ठी के केवलज्ञान के 10 अतिशय

arihant parmeshthi ke kevalgyaan ke 10 atishay
arihant parmeshthi ke kevalgyaan ke 10 atishay

1. भगवान् के चारों ओर सौ-सौ योजन (चार कोस का एक योजन,एक कोस में दो मील एवं 1.5 कि.मी. का एक मील) तक सुभिक्षता हो जाती है अर्थात् अकाल आदि नहीं पड़ते हैं।
2. आकाश में गमन-कमल से चार अर्जुल ऊपर विहार (गमन) होता है।
3. चतुर्दिग्मुख-एक मुख रहता है, किन्तु चारों दिशाओं में दिखता है।
4. अदया का अभाव अर्थात् दया का सद्भाव रहता है, आस-पास किसी प्रकार की हिंसा नहीं होती है।
5. उपसर्ग का अभाव – केवली भगवान् के ऊपर उपसर्ग नहीं होता, न ही उनकी सभा में उपसर्ग होता है। पहले से उपसर्ग चल रहा हो तो वह केवलज्ञान होते ही समाप्त हो जाता है। जैसे-भगवान् पार्श्वनाथ का हुआ था।
6. कवलाहार का अभाव – केवलज्ञान होने के बाद आहार (भोजन) का अभाव हो जाता है। अर्थात् उन्हें आहार की आवश्यकता ही नहीं पड़ती है।
7. समस्त विद्याओं का स्वामीपना।
8. नख- केश नहीं बढ़ना।
9. नेत्रों की पलकें नहीं झपकना।
10. शरीर की परछाई नहीं पड़ना।

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