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धर्मसभा में हुए प्रवचन : आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज का समाधि दिवस धूमधाम से मनाया 


प्रसिद्ध सिद्ध क्षेत्र कुंडलपुर में युग श्रेष्ठ संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के गुरु आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज का समाधि दिवस आचार्य श्री समय सागर जी महाराज के ससंघ सानिध्य में धूमधाम से मनाया गया। इस अवसर पर प्रातः पूज्य बड़े बाबा का अभिषेक, शांति धारा, पूजन, विधान हुआ। पढ़िए राजीव सिंघई विशेष रिपोर्ट…


कुंडलपुर(दमोह)। सुप्रसिद्ध सिद्ध क्षेत्र कुंडलपुर में युग श्रेष्ठ संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के गुरु आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज का समाधि दिवस आचार्य श्री समय सागर जी महाराज के ससंघ सानिध्य में धूमधाम से मनाया गया। इस अवसर पर प्रातः पूज्य बड़े बाबा का अभिषेक, शांति धारा, पूजन, विधान हुआ। पूज्य आचार्य श्री ज्ञान सागर जी महाराज, आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज,आचार्य श्री समय सागर जी महाराज की भक्ति भाव से पूजा हुई। निर्यापक श्रमण योग सागर जी महाराज द्वारा पूजन का वाचन किया गया। अभय बनगांव द्वारा आचार्य श्री समय सागर जी महाराज को शास्त्र दान किए गए।

नहीं भुला सकते उपकार

इस अवसर पर ज्येष्ठ आर्यिका श्री गुरुमति माताजी ने आचार्य ज्ञान सागर महाराज के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आज का यह पर्व जीवन में धर्म रूपी शिखर पर कलशारोहण के समान है। जब मंदिर होगा तो उस पर शिखर होगा, शिखर होगा तो उस पर कलशारोहण भी आवश्यक है। जिन महान आत्माओं ने आज तक जिस रत्नात्रय रूपी धर्म को धारण किया है उनके जीवन में वह शिखर का निर्माण हुआ, उन्होंने कलशारोहण किया है। आज उनका 51 वां समाधि दिवस महान पर्व है। एक पर्व ऐसा है जो जो साधक रहेंगे मुक्ति ना हो जावे जब तक पाने की लालसा रहेगी। गुरु नाम गुरु आचार्य ज्ञान सागर जी थे जो ज्ञान देखा जा रहा है उस ज्ञान को देने वाले स्रोत थे। उनके ज्ञान की सुगंधि सारे ब्रह्मांड में सुगंधित हो रही है। एकमात्र श्रेय आचार्य ज्ञान सागर जी को है। आचार्य ज्ञान सागर जी ने अपने जीवन को ही सुभाषित नहीं किया है उन्होंने कई रत्न दिए और कई रत्नत्रय के पुष्प दिए एक पुष्प वह था चैतन्य महाकाव्य जिसका नाम आचार्य विद्यासागर है जिनको आज भी उनके उपकार को भुलाया नहीं जा सकता।

उनके साहित्य पर हुई पीएचडी

इस अवसर पर निर्यापक श्रमण मुनि श्री अभय सागर जी महाराज ने कहा कि आचार्य भगवंत ज्ञान सागर जी महाराज के जीवन के कुछ प्रसंग जिनसे लोग अनभिज्ञ से हैं ऐसी दो-चार बातें आपके सामने रखने का प्रयास कर रहे हैं।आचार्य भगवन ज्ञान सागर जी के विषय में भारत शासन से कुछ विशिष्ट कार्य हो एक डाक टिकट जारी करवाने का प्रयास करवाया। एक समस्या खड़ी हुई शासन के रिकॉर्ड अनुसार जन्मदिवस, जन्मस्थान, मृत्यु दिवस, मृत्यु स्थान आवश्यक होता है। जन्म स्थान तो राड़ेली मिल गया, 82 वर्ष उम्र में संल्लेखना हुई होगी। एक पंडित जी से उनकी कुंडली एवं पांचो भाइयों की कुंडली उपलब्ध हुई। तीन भाइयों की कुंडली पंडित भुरामल जी के हाथ की बनी है, मेरे पास उपलब्ध है। 1897 का जन्म था 24 अगस्त 1897 समय 12 बजकर कुछ मिनट पर जन्म हुआ। उन्होंने आचार्य वीर सागर जी के संघस्थ सभी साधुओं को पंडित भूरामल जी ब्रह्मचारी की अवस्था में अध्ययन कराया। संघस्थ साधुओं को विद्या अध्ययन कराते थे। पांच-पांच महाकाव्य का सृजन करने वाले जयोदय महाकाव्य जैसे उत्कृष्ट साहित्य का सृजन करने वाले आचार्य भगवन थे। गंजबासौदा की बहन ने उनके साहित्य पर पीएचडी की है।

मरण का स्वागत करें

इस अवसर पर निर्यापक श्रमण मुनिश्री नियम सागर जी महाराज ने बताया कि संल्लेखना मरण का प्रसंग है। संल्लेखना उन जीवों की अनिवार्य आवश्यक विशेष मरण है जिस मरण को वह साधक अपने जीवन को त्याग और तपस्या के मार्ग पर समर्पित करता है। त्याग और तपस्या मय जीवन संल्लेखना मरण के द्वारा सार्थक होता है। मंदिर बनता है समय अपेक्षित होता है, अपेक्षित समय पर ही मंदिर की पूर्णता होती है। जितना समय मंदिर निर्माण के लिए लगता है उतना समय मृत्यु के लिए नहीं लगता। मैं आ रहा हूं कह कर भी आ सकता हूं और कहे बिना भी आ सकता हूं। साधक सावधान होकर मरण का स्वागत करता है। मरण का स्वागत करने के लिए समय लग सकता है और नहीं भी लग सकता है।स्वागत किया मरण कब होगा निश्चित नहीं स्वागत किया इसी वक्त मरण होगा आकस्मिक मरण की घटना घट सकती है। मृत्यु ही मृत्यु को दूर करने का साधन है इसमें कोई संदेह नहीं हम भी वही अवस्था प्राप्त करें जो अरिहंत प्रभु कर रहे हैं। यही उद्देश्य सभी साधक का रहता है। मरण के पांच प्रकार हुआ करते हैं। गुरु को हम याद करते हैं।

मृत्यु महोत्सव मनाने का लाभ

इस अवसर पर निर्यापक श्रमण मुनि श्री योग सागर जी महाराज ने संस्मरण सुनाते हुए कहा कि आज पावन पर्व है महोत्सव है आज तो मृत्यु महोत्सव है। जिन्होंने अपने जीवन में जिनवाणी की आराधना करते-करते मृत्यु महोत्सव मनाने का लाभ हुआ आचार्य ज्ञान सागर महाराज का समाधि दिवस है। 1968– 69 में 2 साल उनके चरण वंदन करने चरण रज लगाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आचार्य ज्ञान सागर महाराज प्रवचन करते तो णमोकार मंत्र का मंगलाचरण करते थे। उनके मुख से सुनते सुनते मुझे ज्ञान हुआ और मैं विद्या सरोवर में समा गया। ज्ञान सागर जी महाराज का दर्शन किया आज भी वह दृश्य हमें दिखाई देता है। उनकी कृपा से उनके आशीष से हम लोग यहां आए जिस निधि को उन्होंने प्राप्त किया है उस निधि को हमें भी प्राप्त करना है।

शोक न करें

इस अवसर पर आचार्य भगवन श्री समय सागर जी महाराज ने मंगल प्रवचन देते हुए कहा जिनके जीवन में वैराग्य के क्षण नहीं आते उसका उपादान बहुत कमजोर है निमित्त मिलने के बाद भी वैराग्य के क्षण मिले। शब्द के माध्यम से अर्थ की गति हो अर्थ से भाव की गति होती जिस ज्ञान बोलते। योग उपादान से ही कार्य संपादित होते। शब्द कुछ नहीं करते ऐसा नहीं किंतु शब्द एकमात्र माध्यम है शब्द के माध्यम से अर्थ को गति मिलती। शोक करने की आवश्यकता नहीं जिसका मरण हुआ उसका जन्म हुआ है किंतु मरण के उपरांत जन्म हो यह निश्चित नहीं। पंडित पंडित मरण है मरण याने विश्राम विराम लग जाता है ।बार-बार जन्म और मरण का जो प्रसंग आता है आज तक संसारी प्राणी का जीवन चल रहा है।आयु समाप्त होते ही आगे भव का उदय होता है। नया जीवन प्रारंभ होता पुराना विस्मृत हो जाता। संवेदन अलग संवेदन वर्तमान का होता है। किंतु अतीत में जो पर्याय होती है ज्ञान का विषय बन सकती है। आचार्य ज्ञान सागर जी महाराज की 75–80 की उम्र थी। आकुलता ना करें, साथ-साथ प्रमाद न करें निरंतर पुरुषार्थ शील बने रहें।

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