सम्मेदशिखर, गिरनार, गोम्मटगिरी आदि जैसे कई उदहारण हैं, जिनका अभी तक कोई हल नहीं निकला है। इसके पीछे का सबसे बड़ा कारण जो मुझे समझ में आता है, वह यही है कि हमारे बीच एकता नहीं है। आज हम अलग-अलग जाति, गोत्र, पंथ, संत में बंट गए हैं। हमें इस बात का अहसास नहीं हो रहा है कि हमारे बंटने से कितना फर्क पड़ रहा है। पढ़िए श्रीफल जैन न्यूज की संपादक रेखा जैन का यह विशेष आलेख…
समाज में आस्था के केंद्र मंदिरों, धर्म- समाज, संस्कार-संस्कृति आदि किसी पर प्रकार का कोई संकट या विपत्ति आती है तो हम सरकार, प्रशासन के खिलाफ आवाज उठाते हैं। हमारे आराध्य साधु-संत भी बोलते हैं लेकिन कोई अंतिम निर्णय नहीं हो पाता। सम्मेदशिखर, गिरनार, गोम्मटगिरी आदि जैसे कई उदहारण हैं, जिनका अभी तक कोई हल नहीं निकला है। इसके पीछे का सबसे बड़ा कारण जो मुझे समझ में आता है, वह यही है कि हमारे बीच एकता नहीं है। आज हम अलग-अलग जाति, गोत्र, पंथ, संत में बंट गए हैं। हमें इस बात का अहसास नहीं हो रहा है कि हमारे बंटने से कितना फर्क पड़ रहा है। मैंने एक अधिकारी और एक राजनेता के करीबी से जब पूछा कि जैन समाज की बात प्रशासन में कोई क्यों नहीं सुनता तो उन्होंने कहा कि तुम्हारे में एकता नहीं है। एक कहता है कि काम करो तो दूसरा नहीं करने के लिए कहता है। हमें तो दोनों से काम है। इसलिए तुम लोगों के काम नहीं हो पाते। ऐसा नहीं है कि संगठन नहीं होने चाहिए लेकिन उन सभी का उद्देश्य एक जैसा होना चाहिए, ताकि धर्म, धर्मात्मा, मंदिर आदि पर कोई संकट आए तो बिना किसी राग-द्वेष के सभी एक साथ, एक स्थान पर बैठकर उसके लिए लड़ सकें। हमारा अपना मसला जो भी होगा, उस पर बाद में लड़ेंगे, अपने विचारों का आदान- प्रदान करेंगे लेकिन समाज का विषय और उसकी चिंता सर्वोपरि होनी चाहिए। आप ही बताएं कि क्या समाज में ऐसी राजनीति होनी चाहिए? जबकि समाज में समाज के हित को सर्वोपरि मानते हुए अपने व्यक्तिगत कषाय, विरोध और विचारों को छोड़कर समाज हित में काम होना चाहिए। 500 वर्ष से जिस नाम राम मंदिर का इंतजार था, उसमें हम सब एक साथ थे, एक होकर लड़े तो राम मंदिर बन गया। एक बार अपने पुराने गिले-शिकवे छोड़ कर एक साथ होकर दिखाओ, अपने व्यक्तिगत विचार, भाव को छोड़कर धर्म, समाज हित में काम करो, फिर आप देखेंगे कि प्रशासन, नेता, सरकार सभी आपके काम करेंगे। राम जैसे धर्मात्मा ने पवित्र सीता को भी राज्य धर्म बचाने के लिए जंगल में छोड़ दिया। राम ने सीता का मोह त्याग कर राज्य के हित निर्णय किया तो वह मर्यादा पुरुषोत्तम बन गए। इस तरह से जब भी देश, राष्ट्र या समाज की बात आती है तो हमें उस समय देश को, राष्ट्र को, समाज को सर्वोपरि रखना चाहिए। हमारे व्यक्तिगत कषाय, जो भी व्यक्तिगत विरोध है, व्यक्तिगत विचार हैं, उन सब को छोड़कर समाज के हित में देखना चाहिए। सारे संगठन एक जगह होने चाहिए, आप देखिएगा कि समाज में कितना परिवर्तन आता है। एक शब्द में कहें तो “मैं” का त्याग कर “हम” के साथ जुड़ना होगा।
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