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पैसे से पुण्य की प्राप्ति नहीं होती है  ज्ञानीजन वह है जो निराश्रव होकर मोक्ष का यतन करता है 


दिगम्बर जैन मंदिर, क्लर्क काॅलोनी में आज परम पुज्य मुनिश्री 108 अंतर्मुखी पुज्य सागर जी महाराज के परम सानिध्य में भगवान का अभिषेक एवं शांतिधारा हुई।इसके पश्चात देव शास्त्र गुरु की पुजा हुई। आज बारह भावना श्रृंखला के अंतर्गत परम पूज्य 108 अंतर्मुखी मुनि महाराज पूज्य सागर महाराज ने आस्रव भावना पर प्रवचन करते हुए कहा कि कर्मों का आनाआस्रव है ,वह दो प्रकार का है पुण्य आस्त्रव एवं पाप आस्त्रव ,पुण्यआस्त्रव में संसार के सुख प्राप्त होते हैं जैसे मकान टीवी कार आदि। पढि़ए प्रवीण जैन की रिपोर्ट ……


दिगम्बर जैन मंदिर, क्लर्क काॅलोनी में आज परम पुज्य मुनिश्री 108 अंतर्मुखी पुज्य सागर जी महाराज के परम सानिध्य में भगवान का अभिषेक एवं शांतिधारा हुई।इसके पश्चात देव शास्त्र गुरु की पुजा हुई। आज बारह भावना श्रृंखला के अंतर्गत परम पूज्य 108 अंतर्मुखी मुनि महाराज पूज्य सागर महाराज ने आस्रव भावना पर प्रवचन करते हुए कहा कि कर्मों का आनाआस्रव है ,वह दो प्रकार का है पुण्य आस्त्रव एवं पाप आस्त्रव ,पुण्यआस्त्रव में संसार के सुख प्राप्त होते हैं जैसे मकान टीवी कार आदि। महाराज जी ने बताया कि पैसे से पुण्य की प्राप्ति नहीं होती है पुण्य से ही पैसों की एवं वैभव की वस्तुएं प्राप्त होती हैं, जैसे दो दुकान पास-पास में स्थित है एक दुकान पर ग्राहकों की भीड़ लगी रहती है और दूसरी पर ग्राहक कम आते हैं ,यदि एक दुकानदार दुसरी दुकान के ग्राहकों को आने से रोकने के विभिन्न प्रयत्न करता है, तो वह पाप क्रिया करता है,लेकिन यदि वह अपनी दुकान की कमियों के बारे में, वस्तुओं की गुणवत्ता के बारे में या अन्य कारणों के बारे में सोचकर ग्राहकों को बढ़ाता है ,तो यह उसका पुण्य प्रयत्न कार्य कहलाएगा ।

प्रत्येक समय कर्मों का आस्रव होता रहता है

गुरुवर ने आस्रव के बारे में समझाते कहा कि जैसे सरोवर का जल नाली के द्वारा बगीचे, खेतों में पहुंचकर सर्वत्र फैल जाता है और उसमें फल- फूल, फसल ,वृक्ष आदि की प्राप्ति होती है ,वैसे ही कर्म ,संसार रूपी सरोवर में आत्मा से आते हैं और विभिन्न प्रकार के पाप एवं पुण्य फलों में बदल जाते हैं लेकिन पाप और पुण्य यह दोनों बंधन के कारण है इसलिए यदि संसारी प्राणी को शाश्वत प्राप्त करना है तो इन दोनों को छोड़ना ही होगा आस्रव का कारण बताते हुए गुरुदेव ने बताया कि यह कारण 57 प्रकार के होते हैं, इनमें से 05 मिथ्यात्व, 15 प्रकार का योग, 12 प्रकार के अविरत और 25 प्रकार की कषाय। इनसे लगातार प्रत्येक समय कर्मों का आस्रव होता रहता है ,इसलिए संसारी प्राणी को इनको को छोड़कर और साथ में मोह रूपी ममता को छोड़कर ,पर परिणति से संबंध नहीं रखने पड़ेंगे। वास्तव में ज्ञानीजन वह है, जो निराश्रव होकर मोक्ष का यतन करता है ,यदि देखा जाए तो कर्मों का आस्रव ज्यादा होता है और कर्म काम करते हैं उनके निर्जरा कम होती है इसलिए यह जीव अनादि काल से संसार में भटकता का रहता है ।इस भटकन को रोकने के लिए ऊपर बताए गए आस्त्रव के कारणों को रोकना होगा तभी संसारी प्राणी शाश्वत सुख को प्राप्त कर पाएगा। इस अवसर पर मुख्य रूप से आनंद गोधा ,दिलीप बज, अजय पंडित, अभिषेक जैन सीए, संजय जैन ,सिद्धार्थ गंगवाल ,महेन्द्र सिंघई ,कमलेश जैन के साथ सभी समाज जन शामिल हुए ।

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