21वें तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ का मोक्ष कल्याणक 7 मई को ग्वालियर स्थित सिद्धाचल पर्वत पर सुबह 7:00 से बड़ी धूमधाम से मनाया जाएगा। जिसमें अभिषेक-पूजन के बाद निर्वाण लाडू चलाया जाएगा। विश्व की सबसे बड़ी, अद्वितीय और अतिशयकारी प्रतिमा 21वें तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ की पद्मासन अवस्था में गुफा नंबर 2 में है। जिसकी अवगाहना लगभग 6 मीटर है। पढ़िए यह विशेष रिपोर्ट…
ग्वालियर। 21वें तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ का मोक्ष कल्याणक 7 मई को सिद्धाचल पर्वत पर सुबह 7:00 से बड़ी धूमधाम से मनाया जाएगा। जिसमें अभिषेक-पूजन के बाद निर्वाण लाडू चलाया जाएगा। विश्व की सबसे बड़ी, अद्वितीय और अतिशयकारी प्रतिमा 21वें तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ की पद्मासन अवस्था में गुफा नंबर 2 में है। जिसकी अवगाहना लगभग 6 मीटर है। भगवान नेमिनाथ का मुख उत्तर दिशा की ओर है। पीठासन पर लांछन नीलकमल है। गजराज कलश लिए अभिषेक करते हुए दिखाए गए हैं। पीठासन की बगल में दोनों ओर उछलते हुए शेर हैं। पीठासन पर 5 पंक्तियों का लेख हैं। अक्षर विक्रम संवत स्पष्ट दिख रहा है। माला लिए हुए आकाशचारी तथा घुटनों के पास चमरवाहक चमर ढोर रहे हैं।
छाती पर श्रीवत्स है। गुफा के ऊपर शिखर है तथा शिखर के ऊपर कलश बने हैं। इस गुफा में दो आले एक के ऊपर एक बने हुए हैं, जिसमें खड्गासन प्रतिमाएं हैं। बाहर से यह गुफा दो गुफाओं के रूप में एक के ऊपर एक दिखती है। पुजारी वीरेंद्र जैन ने बताया कि वीरपुर नगर के राजा दत्त ने प्रभु नेमिनाथ की प्रथम पारणा का लाभ लिया था। छद्मस्थ अवस्था के नव वर्ष बीत जाने पर प्रभु एक दीक्षावन में पहुंचकर बेला के नियमपूर्वक वकुल वृक्ष के नीचे ध्यानस्थ हो गये। मगसिर शुक्ला एकादशी के दिन सायंकाल में लोकालोकप्रकाशी केवलज्ञान को प्राप्त हो गये। उनके समवशरण में सुप्रभार्य आदि सत्रह गणधर थे।
बीस हजार मुनि, मंगिनी आदि पैंतालीस हजार आर्यिकाएं, एक लाख श्रावक, तीन लाख श्राविकाएं थीं। विहार करते हुए एक मास की आयु अवशेष रहने पर भगवान नेमिनाथ सम्मेदशिखर पर पहुंच गये। वहां एक हजार मुनियों के साथ प्रतिमायोग में लीन हुए। प्रभु को वैशाख कृष्णा चतुर्दशी के दिन रात्रि के अन्तिम अश्विनी नक्षत्र में सिद्धपद प्राप्त हो गया। देवों ने आकर निर्वाण कल्याणक महोत्सव मनाया। सिद्धाचल पर्वत ग्वालियर रेलवे स्टेशन से लगभग 5 किलोमीटर दूर और गोपाचल पर्वत (भगवान पार्श्वनाथ की 42 फुट ऊंची प्रतिमा, एक पत्थर की बावड़ी) फूलबाग से लगभग 3 किलोमीटर दूर है।
शिंदे की छावनी होते हुए उरवाई गेट से आगे ढोडापुर गेट की ओर कोटेश्वर रोड पर कोटेश्वर महादेव मंदिर के सामने से रास्ता हैं। सिद्धाचल पर्वत पर पांच गुफाएं हैं। इन गुफाओं का मार्ग कठिन है। तीन गुफाओं में अनेक बड़ी छोटी मूर्तियां हैं। दो गुफाओ पर जाने का तो मार्ग ही नहीं है। इससे पता नहीं चलता कि उन गुफाओं में क्या है। संभवत मार्ग कठिन होने के कारण समाज का ध्यान नहीं गया।
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