दिगंबर जैन समाज के करीब 9 हजार जैन मंदिर हैं लेकिन इन 9 हजार मंदिरों में से लगभग 11 सौ मंदिरों में ही पाठशाला चल रही हैं और वह भी निरंतर नहीं हैं। ऐसे में जरूरत है कि ऑनलाइन कक्षाएं प्रारंभ की जाएं, ताकि बच्चों में जैन धर्म के संस्कार बने रह सकें। पढ़िए श्रीफल जैन न्यूज की संपादक रेखा संजय जैन का यह विशेष आलेख…
पूरे भारत में लगभग 9465 जैन मंदिर हैं, उनमें से लगभग 1100 मंदिरों में पाठशालाएं चलती हैं, वे भी निरंतर नहीं हैं। कोई नियमित है, कोई साप्ताहिक है तो कोई मासिक है। ऐसे में इन पाठशालाओं का बढ़ावा देने का काम हम सभी को मिलकर करना होगा। देखा जाए तो हमें इसके लिए एक अभियान चलाने की आवश्यकता है और इस अभियान से सबको जुड़ना पड़ेगा ताकि बच्चों में एकाग्रता की जो कमी हो रही है, अवसाद आ रहा है, वह इन पाठशालाओं के जरिए उन्हें संस्कारी बना कर दूर किया जा सके।
जैसा कि आप सभी जानते हैं कि आज भावी पीढ़ी में जैन धर्म के मौलिक तत्व ज्ञान का अभाव होता जा रहा है। मन, वचन, काय की एकाग्रता नष्ट होती जा रही है। विद्यालय व पाठशाला ज्ञान के केंद्र होते हैं। जीवन निर्माण की प्रयोगशाला होते हैं। समाज व राष्ट्र की धुरी होते हैं। विद्यालय की शिक्षा हमेशा रोजगार उन्मुख होनी चाहिए और उसका काम जीवन यापन के लिए आजीविका उपलब्ध कराना होना चाहिए। हम भले ही कितने ही पढ़-लिख क्यों न जाएं, संस्कार हमारे व्यवहार को प्रदर्शित करते हैं। हमें अच्छा इंसान हमारे संस्कार ही बनाते हैं और ये संस्कार हमें पाठशाला जाने पर ही मिल सकते हैं। पाठशाला का उद्देश्य बच्चों में संस्कार विकसित करना होता है।
हम सब यह भी जानते हैं कि किसी भी बच्चे के जीवन में संस्कारों का पहला पाठ पढ़ाने वाली मां ही होती है। उसके बाद उसे विद्यालय की ओर अग्रसर किया जाता है, जहां वह आगे बढ़कर अलग-अलग विषयों का ज्ञान प्राप्त कर एक समय खुद ही यह निर्णय कर पाता है कि मुझे किस दिशा में आगे बढ़ना है। इसके बाद वह उस दिशा में आगे बढ़कर अपना, अपने परिवार और अपने देश का नाम रोशन करता है। लेकिन इन सभी में एक चीज का अभाव है… वह है पाठशाला,
ऐसी पाठशाला जिसमें हम जैन धर्म के तत्वों और सिद्धांतों का अध्ययन कर सकते हैं। आदिनाथ भगवान से लेकर महावीर भगवान की जीवन चर्या, उनके सिद्धांतों को अपने अंदर उतार सकते हैं। ऐसे में जरूरत है इन पाठशालाओं को शुरू करने की ताकि हम बच्चों में अपने धर्म के प्रति रुझान को बढ़ा पाएं। हां, हम सभी इस बात से भी वाकिफ हैं कि आजकल के बच्चे बहुत सारी चीजों में व्यस्त हैं तो हम उनके मुताबिक ऑनलाइन कक्षाएं शुरू कर पाएं तो जैन समाज निश्चित रूप से अपने संस्कार और संस्कृति को सुरक्षित रख पाएगा।
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