मुनि श्री अपूर्व सागर ने चंद्रप्रभु दिगंबर जैन मंदिर में धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि जिन धर्म, वीतराग धर्म, सुख की खान है। यह सभी का हित करने वाला होता है। ज्ञानी लोग धर्म का संचय करते हैं और इसी से मोक्ष की प्राप्ति होती है। धर्म के सिवाय कोई दूसरा मित्र नहीं। पढ़िए अशोक कुमार जेतावत की रिपोर्ट ……
धरियावद । वात्सल्य वारीधि आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज के शिष्य मुनि श्री अपूर्व सागर ने चंद्रप्रभु दिगंबर जैन मंदिर में धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि जिन धर्म, वीतराग धर्म, सुख की खान है। यह सभी का हित करने वाला होता है। ज्ञानी लोग धर्म का संचय करते हैं और इसी से मोक्ष की प्राप्ति होती है। धर्म के सिवाय प्राणियों का और कोई मित्र नहीं है। धर्म की जड़ दया है। रोजाना धर्म को धारण करना चाहिए और यही हमारा रक्षक होता है। बाकी सब भक्षक हैं।
धर्म के सुख 16
मुनिश्री ने धर्म से 16 प्रकार के सुख बताए। इनमें निरोगी काया, घर में माया, आज्ञाकारी पुत्र होना, मृदुभाषी स्त्री होना, स्वयं का भवन हो, कर्ज से मुक्ति, व्यापार वृद्धि, सबको प्रिय, मन में निराकुलता, परिवार में बैर विरोध नहीं होना, भक्ति में मन लगना, कुकर्म में नहीं पड़ना, साधु समागम, मर्मज्ञ जिनागम, शीलव्रत का पालन और अरिहंत का पुजारी आदि शामिल हैं।
अहिंसा प्रधान है जैन धर्म
इसी धर्मसभा को संबोधित करते हुए मुनि श्री अर्पित सागर जी महाराज ने जैनियों की पहचान बताई। उन्होंने कहा कि जो रात्रि भोजन का त्याग करे, रोजाना देवदर्शन करे और पानी छानकर पिए, वह जैनी कहलाता है। जैन धर्म अहिंसा प्रधान है। रात्रि में भोजन करने से द्रव्य हिंसा और भाव हिंसा होती है, जिसमें अनंत जीवों का घात होता है जो पाप का कारण है। इसलिए रात में भोजन नहीं करना चाहिए। भोजन करने का समय सूर्योदय के बाद और सूर्यास्त से पहले होना चाहिए। जो रात में चारों प्रकार के आहार-पानी का त्याग करता है, उसे एक साल में 6 महीने के उपवास का फल मिलता है। रात में बना भोजन दिन में और दिन में बना भोजन रात में नहीं करना चाहिए। मुनिश्री ने कहा कि हिन्दू पुराणों में भी दुर्गति के चार कारण बताए गए हैं। इनमें रात्रि भोजन, जमीनकंद सेवन, परस्त्री गमन और अचार-मुरब्बा सेवन शामिल हैं। हमें पर्वों के दिन तो रात्रि भोजन का त्याग अवश्य करना चाहिए। मनुष्य होकर भी पशु कहलाना, दरिद्रता आना, विधवा होना, कुरुपता प्राप्त होना आदि रात्रि भोजन की हानियां हैं। वहीं, वैमानिक देव में जन्म, सौंदर्यता प्राप्ति, देव शास्त्र गुरु का समागम मिलना, ऐश्वर्य-धन-संपत्ति की प्राप्ति आदि रात्रि भोजन त्याग करने के लाभ हैं।
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