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जैन समन्वय समिति बने, जैन मीडिया निभाए भागीदारी : समाज में इलेक्शन नहीं, सिलेक्शन हो


श्रीफल जैन न्यूज ने सवाल उठाया है एक व्यक्ति, एक संस्था और एक पद को लेकर…मैं इससे सहमत हूं। एक व्यक्ति, एक पद और एक संस्था होनी चाहिए। एक आदमी को अनेक पद देने से न्याय नहीं हो पाता। वह समय नहीं दे पाता। सबको अवसर भी नहीं मिलता। लेकिन अभी पद चाहने वाले ज्यादा हैं और काम करने वाले कम….गेस्ट राइटर डी. ए. पाटिल, दक्षिण भारत महासभा


श्रीफल जैन न्यूज ने सवाल उठाया है एक व्यक्ति, एक संस्था और एक पद को लेकर…मैं इससे सहमत हूं। एक व्यक्ति, एक पद और एक संस्था होनी चाहिए। एक आदमी को अनेक पद देने से न्याय नहीं हो पाता। वह समय नहीं दे पाता। सबको अवसर भी नहीं मिलता। लेकिन अभी पद चाहने वाले ज्यादा हैं और काम करने वाले कम। देश में जैनों को प्रबोधन की बहुत आवश्यकता है। सामाजिक रूप से जागरूकता लानी है। धर्म के कामों में कभी पंचकल्याण होता है, साधु आते हैं तो लोग प्रवचन सुनते हैं लेकिन उस पर अमल कोई नहीं करता। मुझे लगता है कि हमें स्वार्थ छोड़कर, आत्म केंद्रीय न बनकर समाज केंद्रीय बनना चाहिए, धर्म केंद्रीय बनना चाहिए। सोशल नॉर्म्स हम लोगों को पढ़ना चाहिए, समझना चाहिए लेकिन समझते नहीं, यह प्रबोधन के माध्यम से ही हो पाएगा। उसमें सबसे बड़ा योगदान चैनल वालों का रहेगा, जो कि एक इवेंट करके, संगोष्ठी करके, हर रोज एक संगोष्ठी डालें, जिससे जागरूकता उत्पन्न हो। समाज में जो भी यूट्यूब चैनल  या वेबसाइट चला रहे हैं, उनकी जिम्मेदारी बनती है की वो इसके लिए पहल करें।

आजकल साधु भी बंट गए हैं। तेरा संघ-मेरा संघ चल रहा है। इससे आदमी बंट रहा है। इस साधु का संघ आया है, उस साधु का संघ आया है। भक्त सोचता है कि मेरे साधु आए हैं तो वह आहारचर्या संभाल लेता है, वहीं दूसरे साधु आए हैं तो वह बिल्कुल भी हस्तक्षेप नहीं करता। यह कैसा धर्म है, कैसी जागरूकता है। देश के सभी साधु एकजुट हो जाएं तो हम देश में गिरनार जी जैसी और भी जो अन्य समस्याएं हैं, उनका निराकरण कर सकते हैं। हजारों स्क्वायर फीट प्रोजेक्ट तो लॉन्च हो रहे हैं लेकिन हमारे तीर्थ क्षेत्र कमेटी को कानूनी रूप से फंड के लिए बहुत लड़ाई लड़नी पड़ रही है।

अभी यह अच्छा हुआ है कि जो नए भट्टारकजी आए हैं, वह अपने हिसाब से अच्छा काम कर रहे हैं। सम्मेलन हो रहे हैं, जो भी समस्याएं सामने आ रही हैं, उन सब समस्याओं पर चिंतन हो रहा है। ऐसा साधुओं को भी करना चाहिए। संत जितने भी हैं ऐलक, क्षुल्लक, मुनि, आचार्य… सब एकजुट हो जाएं। देश में पहले अशोक कुमार जैन थे, जिनसे पूरा देश हिलता था। टाइम्स ऑफ इंडिया ग्रुप के अशोक जी तीर्थ क्षेत्र कमेटी के अध्यक्ष थे, तब सरकार भी उनकी सुनती थी, अब ऐसा एक आदमी नहीं है देश में। मुस्लिमों को जो आदेश जाता है, वह मौलवी की तरफ से जाता है। सिख वालों का आदेश गुरुद्वारे से निकलता है। इसी तरह से जैनों की भी एक ही संस्था होनी चाहिए। आनंद जी कल्याण जी ट्रस्ट श्वेतांबरों का भी एक ही कमेटी है, जहां से आदेश पारित होता है। वह पूरे श्वेतांबर समाज पर पूरे देश में लागू होता है। ऐसा ही हमारे अशोक जैन ने सोचा कि देश के 100 वर्ष के आगे के जितने भी सोशल इंस्टीट्यूट है, उनका फेडरेशन बनाया। 28 वर्ष हुए, उसकी सोशल अवेयरनेस निर्माण करने वाली जो रजिस्टर्ड संस्था है, इन्होंने 50 वर्ष के आगे से उनका एक संगठन बनाया। उनकी समन्वय संस्था का मैं अध्यक्ष हूं जो देश भर की समस्याओं पर चिंतन करते हैं। हर एक संस्था के माध्यम से यह एक समाधान हो गया है। तेरापंथ, बीस पंथ, मूर्ति पूजा सब इसमें है समन्वय समिति, इस देश में जैनों के लिए बहुत अच्छा काम कर रहा है। वर्ष 2014 में हमें अल्पसंख्यक का दर्जा मिला, वह सेंट्रल गवर्नमेंट से समन्वय समिति के माध्यम से हुआ। निर्मल कुमार जी सेठी, आरके जैन दिल्ली वालों ने, दक्षिण भारत जैन समाज इन सब ने अल्पसंख्यक का मुद्दा उठाया तो जीत भी हासिल की। वर्ष 2014 में हेगडे़ जी साहब ने माइनॉरिटी के हेड को और चक्रेश जी ने कपिल वकील जी को पकड़ा और सभी को पकड़ करने के बाद वह माइनॉरिटी हमें मिली। यह सब सर्वे हमको देना पड़ा, बताना पड़ा कि जैन समाज कितना पढ़ा-लिखा है। हम कम संख्या में सबसे ज्यादा इनकम टैक्स भरते हैं।

विद्यासागर जी महाराज के संघ में 400 से 500 साधु हैं तो अभी यह जो 16 अप्रैल को विद्यासागर जी महाराज की जगह जो महाराज जी को आचार्य पद की उपाधि मिलेगी, उसमें यह भी फैसला किया जाएगा कि अब साधुओं को छोटे-छोटे समूह में बांटना चाहिए क्योंकि जब 400 से 500 साधुओं का संघ होता है तो बहुत सारी समस्याएं होती हैं उनके आहारचर्या की, उनके दर्शन भी नहीं हो पाते हैं ढंग से और जो बड़े आचार्य होते हैं उनको तनाव भी रहता है इतने सारे साधुओं का और इन सब में राजनीति भी चलती है। दक्षिण भारत की बात करें तो हमारे यहां कई ऐसे गांव भी हैं, जहां पर 100% जैन समाज है, हमारे यहां झगड़ा नहीं है, एकता है। कोई भी कार्यक्रम करना हो तो एक पत्र, एक निवेदन देते हैं और लाखों लोग एकत्रित हो जाते हैं जबकि हमने उत्तर भारत में देखा है कि लोगों को इकट्ठा करने के लिए बसों की व्यवस्था करनी पड़ती है, खाने की व्यवस्था करनी पड़ती है लेकिन हमारे यहां अगर 25 लाख लोग भी इकट्ठा हो जाएंगे तो हमारे यहां भोजन का कोई प्रावधान नहीं है। अगर भोजन की व्यवस्था समाज करेगा तो आप सोचो कितना पैसा खर्च होगा। तो यह सब चीज खत्म होनी चाहिए क्योंकि लोग खाने के लिए ज्यादा समय देते हैं, सुनने के लिए कोई समय नहीं देता है। हमें संस्थाओं में नए सिरे से बदलाव लाने होंगे। सुधा सागर जी महाराज जी ने भी कहा है कि समन्वय समिति में सबको जोड़ो, शामिल करो, इलेक्शन धर्म में नहीं चलेगा और ऐसा करना भी नहीं चाहिए।

हमारे नियमावली में इलेक्शन नहीं है, हमारे नियमावली में सिलेक्शन है। जो काम करता आएगा, उसको पद मिलेगा। 6 महीने के बाद काम करता हुआ नहीं दिखाई देता है तो उसको पद खाली करना पड़ेगा। इसी तरह से सभी भाषाओं में जैनों के पत्रक सबसे ज्यादा निकलते हैं, उसमें समाज के लिए कुछ भी नहीं लिखा जाता है तो उस पत्रक में प्रबोधन होना चाहिए। प्रबोधन मुख से होता है, भाषण से होता है, संगोष्ठी से होता है तो अगर उस पेपर में समाज की समस्याओं को लिया जाएगा तो वह कार्यकर्ता जैसा मार्गदर्शन करेगा।

एकता में बहुत बड़ी शक्ति होती है। चारुकीर्ति जी ने, हेगडे जी ने, श्वेतांबर समाज ने अल्पसंख्यक के लिए कदम उठाया तो आज दर्जा मिला है। अंत में यही कहूंगा कि जैनियों की भी एक संसद होनी चाहिए। अतः आवश्यकता है “समन्वय समिति” को ही संसद के रूप में लेकर उसमें ही सारे संस्थाओ से प्रश्न उठाये जाए व वही से निर्णय लेते हुए आदेश पारित किया जाए व वह आदेश पूरे भारत में, समस्त दिगम्बर जैन समाज माने।

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Rekha Jain

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