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आचार्य श्री वर्धमान सागर से ग्रहण की है दीक्षा : विजयदशमी को दीक्षा लेकर कर रहे हैं धर्म की राह रोशन

सारांश
देश के विभिन्न राज्यों के नगरों में जन्मे पुण्यशाली भव्य जीव जो धर्मात्मा बनकर परमात्मा बनने की राह पर अग्रसर है, जिन्हें परम उपकारी वात्सल्य वारिधि शताधिक दीक्षा प्रदाता आचार्य शिरोमणि पंचम पट्टाधीश आचार्य श्री वर्धमान सागर जी ने विजयदशमी को कंकर से शंकर बनने की राह प्रशस्त कर अपने सिद्ध हस्त कर कमलों से जैनेश्वरी दीक्षा प्रदान की है। पढ़िए राजेश पंचोलिया की विशेष रिपोर्ट…

उदयपुर। विजयादशमी भी अक्षय तृतीया जैसी पवित्र तिथि है, जिस पर अनेक जैनेश्वरी दीक्षाएं होती हैं। जैन धर्म की दृष्टि से यह विषय कषाय रूपी बुराइयों पर असीम पुण्योदय रूपी अच्छाइयों का प्रतीक है। इस पुनीत अवसर पर अनेक भव्य आत्माओं ने दृढ़ इच्छा शक्ति से पुरुषार्थ कर दिगंबर जैनेश्वरी दीक्षा धरण की है। देश के विभिन्न राज्यों के नगरों में जन्मे पुण्यशाली भव्य जीव जो धर्मात्मा बनकर परमात्मा बनने की राह पर अग्रसर है, जिन्हें परम उपकारी वात्सल्य वारिधि शताधिक दीक्षा प्रदाता आचार्य शिरोमणि पंचम पट्टाधीश आचार्य श्री वर्धमान सागर जी ने कंकर से शंकर बनने की राह प्रशस्त कर अपने सिद्ध हस्त कर कमलों से जैनेश्वरी दीक्षा प्रदान की है।
जानते हैं इस अवसर पर किन-किन ने ली जैनेश्वरी दीक्षा
-जयपुर के महेंद्र ने मुनि श्री हितेंद्र सागर जी के रूप में 9 अक्टूबर, 2008 को दीक्षा ली।
– सनावद में जन्मीं अर्चना दीदी ने 9 अक्टूबर, 2008 को शाश्वत सिद्ध क्षेत्र श्री सम्मेद शिखर जी में आर्यिका श्री क्षीर मति बनकर श्री सम्मेद शिखर जी से ही 6 नवंबर, 2008 को समाधि मरण कर मानव जीवन को सार्थक किया।
– कर्नाटक के ब्रह्मचारी श्री महावीर ने भगवान श्री महावीर की राह पर चलने के लिए सम नाम आचार्य श्री वर्धमान सागर जी से 28 सितंबर, 2009 में मुनि दीक्षा ली।
-उदयपुर नगर से 10 से अधिक भव्य जीवों को आचार्य श्री वर्धमान सागर जी ने दीक्षाएं प्रदान की हैं। इनमें अनूठा संयोग है कि उदयपुर के प्रशंम सागर जी का, उदयपुर में 12 वर्ष के एक युग के बाद प्रथम बार उदयपुर में दीक्षा दिवस मनाने का अवसर मिल रहा है।आपकी दीक्षा 6 अक्टूबर, 2011 को हुई।
– कर्नाटक के जयपाल दीक्षा ग्रहण करके मुनि श्री अतिशय सागर 6 अक्टूबर, 2011 को बने।
– किशनगढ़ गौरव ने जीवन में अध्यात्म का शिखर चढ़ाकर क्षपक मुनि श्री भविक सागर जी बन 6 अक्टूबर, 2011 को दीक्षा ग्रहण की थी। सिद्ध क्षेत्र नैनागिर से 10 अप्रैल, 2013 को समाधि मरण प्राप्त किया है।
– संसार की नश्वरता को समझते हुए साधना के जिस मार्ग पर गृहस्थ अवस्था के पिता मुनि श्री चारित्र सागर जी ने 13 प्रकार के चारित्र को धारण किया, इस मार्ग पर परिवार से मोह छोड़कर भतीजी आर्यिका श्री महायश मति दीक्षा गुरु की दीक्षा स्थली पर आचार्य श्री से 5 अक्टूबर 22 को दीक्षा लेकर आर्यिका श्री निर्मोहमति एक वर्ष पूर्व बनी।
– दिल्ली की बाल ब्रह्मचारी नेहा पर आचार्य श्री ने स्नेह, वात्सल्य के नेह की वर्षा की और विश्व में यश फैलाने के लिए आर्यिका श्री विश्वयशमति 5 अक्टूबर, 22 को बनाया।
-दीक्षा गुरु की जन्मस्थली सनावद की 17वीं दीक्षार्थी बाल ब्रह्मचारिणी मात्र 26 वर्ष की उम्र में आर्यिका श्री पदमयश मति के रूप में 5 अक्टूबर, 2022 को दीक्षित हुईं।
– कोटा निवासी बाल ब्रह्मचारिणी ने परिवर्तित नाम को सार्थक कर जीवन की निशा को पूनम में परिवर्तित कर दिव्यता प्राप्त की और 5 अक्टूबर 2022 को आर्यिका श्री दिव्ययश मति बनीं।

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