जैन मंदिर मे जैन संत परम पूज्य मुनि श्री108 सुयश सागर जी महाराज के सानिध्य में जैन समाज ने देवाधिदेव 1008 भगवान नेमिनाथ का जन्म-तप कल्याणक बड़े ही धूमधाम से मनाया। पढ़िए राजकुमार अजमेरा और नवीन जैन की रिपोर्ट…
झुमरीतिलैया। जैन समाज ने देवाधिदेव 1008 भगवान नेमिनाथ का जन्म-तप कल्याणक बड़े ही धूमधाम से मनाया। प्रातः जैन मंदिर मे जैन संत परम पूज्य मुनि श्री108 सुयश सागर जी महाराज के सानिध्य में जैन धर्म के 22वें तीर्थंकर गिरनार वाले बाबा के जन्मकल्याणक के पावन अवसर पर 1008 नेमिनाथ भगवान की भव्य प्रतिमा पर स्वर्णमयी कलश से प्रथम अभिषेक एवं शांति धारा करने का सौभाग्य सोहन लाल-शाकुन्तला देवी सोगानी रांची वाले को प्राप्त हुआ। सौधर्म इन्द्र बनने का सौभाग्य विशाल पाटनी, तामसा महाराष्ट्र को प्राप्त हुआ। उसके पश्चात 108 जोड़ों के द्वारा नेमीनाथ भगवान का जन्म महोत्सव की झलकियों के साथ विधान की पूरे पूजा की गई है। नाचते-गाते भक्ति की सागर में डूब कर श्रद्धालु भक्तों ने श्री 1008 नेमिनाथ भगवान के चरणों में जन्म और तप कल्याणक का अर्घ्य समर्पित किया। इस अवसर पर जैन संत में अपने उद्बोधन में कहा कि भगवान का जो जन्म कल्याण मनाते हैं, वे बड़े भाग्यशाली होते हैं। उनके जीवन में हमेशा खुशियां और समृद्धि का वास होता है। मनुष्य अपना जन्मदिवस तो हमेशा मनाता है परंतु भगवान का जन्म दिवस सौभाग्यशाली व्यक्ति ही मना पाता है। भगवान के जन्म दिवस पर उनके गुणों और त्याग तपस्या महानता की महिमा का गुणगान होता है। उनके पद चिह्नों और उनके बताए रास्तों पर चल कर ही मनुष्य का जीवन धर्ममय और सार्थक बन सकता है। भगवान नेमिनाथ को मोक्ष निर्वाण प्राप्त गुजरात के गिरनार पर्वत पर मिला था इसलिए इन्हें गिरनार वाले बाबा के नाम से भी जाना जाता है। श्रद्धालु भक्तजन इस पर्वत पर 9999 सीढ़ी चढ़कर भगवान के चरण का दर्शन करते हैं।
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